अभेद्य नहीं है आयरन डोम, अमेरिका ही है बिग बॉस... ईरान से सीधी भिड़ंत में इजरायल को मिले ये सबक

इजरायल-ईरान युद्ध ने इजरायल को अपनी ताकत और कमजोरियों दोनों का आकलन करने का मौका दिया. आयरन डोम की सीमाएं, नागरिक सुरक्षा की कमी, जासूसी की ताकत, क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत और आर्थिक-सामाजिक प्रभाव इस युद्ध के प्रमुख सबक हैं. इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचाया, लेकिन अपनी कमजोरियों को भी देखा.

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इजरायली आयरन डोम से इंटरसेप्टर मिसाइल निकलती हुई. (फाइल फोटोः AFP) इजरायली आयरन डोम से इंटरसेप्टर मिसाइल निकलती हुई. (फाइल फोटोः AFP)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 24 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST

इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों, सैन्य अड्डों और मिसाइल सुविधाओं पर हमला किया, जबकि अमेरिका ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर में बी-2 स्टील्थ बॉम्बर से फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हमले किए. जवाब में, ईरान ने इजरायल पर 450 से अधिक मिसाइलें और 1000 ड्रोन दागे.

इस युद्ध में इजरायल की आयरन डोम रक्षा प्रणाली की सीमाएं उजागर हुईं. कई रणनीतिक कमजोरियां सामने आईं. आइए जानते हैं इजरायल के लिए इस युद्ध से मिले पांच प्रमुख सबकों को वह भविष्य में अपनी रक्षा रणनीति को और मजबूत कर सके.

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1. आयरन डोम की सीमाएं: मिसाइल रक्षा की चुनौती

इजरायल की आयरन डोम दुनिया की सबसे उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों और ड्रोनों को रोकने में सक्षम है. इस युद्ध में आयरन डोम ने ईरान की 450 मिसाइलों और 1000 ड्रोनों में से 90% को रोक लिया. इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर के अनुसार ईरान की हाज कासेम और खैबर शेकन मिसाइलों ने आयरन डोम को चकमा दिया. बटयम, तेल अवीव और बीर शेवा में नुकसान पहुंचाया. सोरोका मेडिकल सेंटर पर हमले में 76 लोग घायल हुए.

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X पर @EylonALevy ने लिखा कि आयरन डोम शानदार है, लेकिन यह सैकड़ों मिसाइलों के एक साथ हमले को नहीं रोक सकता. इस युद्ध ने दिखाया कि आयरन डोम की बैटरी संख्या और इंटरसेप्टर मिसाइलों की आपूर्ति सीमित है. इजरायल को एरो-2, एरो-3 और डेविड्स स्लिंग जैसी प्रणालियों को और मजबूत करना होगा, साथ ही लेजर-आधारित रक्षा प्रणालियों पर निवेश बढ़ाना होगा, जो सस्ती और तेज हैं.

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2. नागरिक सुरक्षा और बंकरों की कमी

इजरायल में युद्ध के दौरान सायरन की आवाजें और बंकरों में छिपने की मजबूरी आम हो गई. रॉयटर्स के अनुसार, इजरायल में 24-30 नागरिक मारे गए और 300-600 लोग घायल हुए, जिनमें ज्यादातर मिसाइल हमलों या बंकरों की ओर भागते समय घायल हुए. बटयम में नौ लोग मारे गए. तमरा में एक ही परिवार की चार महिलाएं मिसाइल हमले का शिकार बनीं. तेल अवीव और हाइफा में नागरिक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा.

इजरायल को और बंकर बनाने होंगे, क्योंकि नागरिकों की सुरक्षा सबसे जरूरी है. इस युद्ध ने दिखाया कि इजरायल के पास सार्वजनिक बंकरों और नागरिक सुरक्षा उपायों की कमी है. भविष्य में इजरायल को हर शहर में आधुनिक बंकर, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियां और आपातकालीन प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा. साथ ही, स्कूलों और अस्पतालों को और सुरक्षित करना होगा.

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3. जासूसी और खुफिया जानकारी की ताकत

इजरायल की मोसाद और सैन्य खुफिया इकाई 8200 ने इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई. अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, मोसाद ने ईरान में ड्रोन और हथियार तैनात किए. 21 IRGC कमांडरों और 10 परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया. इजरायल ने ईरान की वायु रक्षा प्रणालियों और मिसाइल सुविधाओं की सटीक जानकारी हासिल की, जिससे नतांज, पार्चिन और खोजिर जैसे ठिकानों को भारी नुकसान हुआ.

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हालांकि, इजरायल की खुफिया जानकारी में कुछ कमियां भी थीं. ईरान ने कुछ मिसाइलों को गुप्त स्थानों पर स्थानांतरित कर लिया था, जिसके बारे में इजरायल को पूरी जानकारी नहीं थी. X पर @tmgeopolitics ने लिखा कि मोसाद ने शानदार काम किया, लेकिन ईरान की मिसाइल तैनाती को पूरी तरह ट्रैक नहीं कर पाए. इजरायल को भविष्य में साइबर खुफिया, सैटेलाइट निगरानी और मानव खुफिया को और मजबूत करना होगा.

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4. क्षेत्रीय सहयोगियों और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत

इजरायल ने इस युद्ध में अमेरिका और G7 देशों का समर्थन हासिल किया. ऑपरेशन मिडनाइट हैमर में अमेरिका ने 7 बी-2 स्टील्थ बॉम्बर और 125 विमानों का उपयोग कर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया. जॉर्डन और सऊदी अरब ने भी अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी, जिससे इजरायली विमानों को रास्ता मिला. हालांकि, तुर्की और कतर जैसे देशों ने इजरायल की निंदा की, जिससे क्षेत्रीय अलगाव की स्थिति बनी.

X पर @InsightGL ने लिखा कि इजरायल को क्षेत्रीय सहयोगियों की जरूरत है, क्योंकि अकेले अमेरिका पर निर्भरता जोखिम भरी है. इस युद्ध ने दिखाया कि इजरायल को मध्य पूर्व के अन्य देशों, जैसे सऊदी अरब, UAE, और मिस्र के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ानी होगी. साथ ही, संयुक्त राष्ट्र और IAEA जैसे संगठनों के साथ कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करना होगा, ताकि भविष्य में वैश्विक समर्थन सुनिश्चित हो.

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5. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव का प्रबंधन

इस युद्ध में इजरायल को 12 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ. हाइफा की बाज़ान तेल रिफाइनरी बंद हो गई. तेल अवीव और बीर शेवा में बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा. 100,000 इजरायली विदेश में फंसे रहे. 40000 पर्यटक और विदेशी नागरिक (जिनमें 1,200 भारतीय शामिल थे) इजरायल से निकाले गए. स्कूल बंद रहे. नागरिकों में डर का माहौल था.

X पर @MAshrafHaidari ने अनुमान लगाया कि इजरायल की अर्थव्यवस्था को इस युद्ध से लंबे समय तक उबरने में वक्त लगेगा. इजरायल को भविष्य में आर्थिक लचीलापन बढ़ाना होगा, जैसे तेल आपूर्ति के वैकल्पिक स्रोत विकसित करना और पर्यटन को पुनर्जनन करना. साथ ही, नागरिक मनोबल को बनाए रखने के लिए सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सहायता कार्यक्रम शुरू करने होंगे.

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युद्ध का प्रभाव और भविष्य की रणनीति

इस युद्ध में इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को वर्षों पीछे धकेल दिया. नतांज में 15000 सेंट्रीफ्यूज नष्ट हुए. पार्चिन और खोजिर जैसे सैन्य ठिकाने तबाह हो गए. इजरायल को भी नुकसान उठाना पड़ा. 24-30 नागरिक मारे गए. 300-600 घायल हुए. 12 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ. फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, इजरायल ने ईरान की सैन्य क्षमता को कमजोर किया, लेकिन ईरान का शासन अभी भी स्थिर है.

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इजरायल को अब अपनी रक्षा रणनीति में बदलाव करना होगा. आयरन डोम को और उन्नत करना, बंकरों की संख्या बढ़ाना, खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना, क्षेत्रीय साझेदारी बढ़ाना और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना जरूरी है. साथ ही, लेजर रक्षा प्रणालियों और साइबर युद्ध क्षमताओं पर निवेश बढ़ाना होगा, ताकि भविष्य में मल्टी-फ्रंट हमलों का सामना किया जा सके.

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