Unnao Rape Case: उन्नाव रेप केस केवल एक नाबालिग लड़की के साथ हुई दरिंदगी की कहानी नहीं है, बल्कि सिस्टम, राजनीति और पीड़ितों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल भी है. इस मामले में आरोपी कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी का एक प्रभावशाली विधायक कुलदीप सिंह सेंगर था. पीड़िता और उसका परिवार पिछले आठ वर्षों से इंसाफ के लिए संघर्ष करता रहा. इसके बाद पीड़िता को इंसाफ तो मिला, लेकिन यह इंसाफ अधूरा है. यही बात पूरे देश में आक्रोश और बहस का विषय बन गई है.
4 जून 2017: रेप के आरोप
17 वर्षीय नाबालिग लड़की ने आरोप लगाया कि उन्नाव से बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने उसके साथ बलात्कार किया. पीड़िता का कहना था कि वह नौकरी दिलाने में मदद के बहाने विधायक से मिलने गई थी. वहीं पर उसका जबरन यौन शोषण किया गया. इस आरोप के बाद स्थानीय स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
11 जून 2017: गायब हो गई थी पीड़िता
रेप का आरोप लगाने के कुछ ही दिन बाद पीड़िता अचानक लापता हो गई. परिवार ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. कई दिनों बाद पीड़िता औरैया जिले के एक गांव से बरामद हुई. इस घटना ने मामले को और संदिग्ध बना दिया. परिवार ने आरोप लगाया कि पीड़िता पर दबाव बनाया जा रहा है.
3 जुलाई 2017: मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी
न्याय न मिलने से हताश होकर पीड़िता दिल्ली पहुंची. यहां उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर विधायक कुलदीप सेंगर और उसके भाई पर रेप केस दर्ज करने की मांग की. यह चिट्ठी बाद में सार्वजनिक हो गई और मीडिया में चर्चा का विषय बनी. इसके बाद भी पुलिस की कार्रवाई बेहद धीमी रही.
सिस्टम की चुप्पी और राजनीतिक दबाव
2017 के पूरे साल में यह केस ठंडे बस्ते में पड़ा रहा. आरोपी विधायक खुलेआम घूमता रहा और पीड़िता को लगातार धमकियां मिलने की बात सामने आई. परिवार का आरोप था कि सत्ता और पुलिस मिलकर आरोपी को बचा रही है. इस दौरान पीड़िता मानसिक और सामाजिक दबाव से जूझती रही.
3 अप्रैल 2018: पिता पर हमला
यही वो दिन था, जब पीड़िता के पिता को कथित तौर पर अतुल सिंह और उसके सहयोगियों ने बेरहमी से पीटा. पिटाई के बाद गंभीर हालत में पीड़िता के पिता को ही पुलिस के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने उल्टा उनके खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया. यह घटना केस में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई.
8 अप्रैल 2018: आत्मदाह की कोशिश
इंसाफ न मिलने से टूट चुकी पीड़िता ने 8 अप्रैल 2018 को मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह की कोशिश की. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया. मीडिया और सामाजिक संगठनों ने सरकार पर सवाल उठाए. इसके बाद मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया.
9 अप्रैल 2018: पुलिस हिरासत में पिता की मौत
आत्मदाह की कोशिश के अगले ही दिन पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. पीड़िता के परिवार ने इसे हत्या करार दिया. इस मौत ने पुलिस प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए. विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों ने CBI जांच की मांग तेज कर दी. लेकिन सूबे की सरकार चुप रही.
10 अप्रैल 2018: CBI को केस
फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए रेप केस CBI को सौंप दिया. कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष जांच के लिए यह जरूरी है. इसके बाद जांच की दिशा बदली और बीजेपी के दबंग विधायक पर शिकंजा कसना शुरू हुआ. यह पीड़िता के लिए पहली बड़ी राहत थी. लेकिन इंसाफ मिलना बाकी था.
13 अप्रैल 2018: कुलदीप सेंगर की गिरफ्तारी
CBI जांच के बाद 13 अप्रैल 2018 को कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार किया गया. कुछ ही दिनों में CBI ने चार्जशीट दाखिल कर दी. इस गिरफ्तारी ने यह साफ कर दिया कि मामला केवल आरोपों तक सीमित नहीं है. राजनीतिक दबाव के बावजूद कार्रवाई हुई.
28 जुलाई 2019: सड़क हादसा या साजिश
यही वो तारीख थी, जब सेंगर की एक और खौफनाक साजिश सामने आई. रायबरेली में पीड़िता की कार को एक ट्रक ने टक्कर मार दी. इस हादसे में पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई. खुद पीड़िता गंभीर रूप से घायल हुई. बाद में इस मामले में भी कुलदीप सेंगर के खिलाफ केस दर्ज हुआ. साफ था कि जेल में होने के बाद भी वो दरिंदा अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.
1 अगस्त 2019: सुप्रीम कोर्ट का दखल
विवाद और अन्याय बढ़ता देख देश की सबसे बड़ी अदालत ने संज्ञान लिया और सुप्रीम कोर्ट ने इस केस से जुड़े पांच मामलों को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया. कोर्ट ने निर्देश दिया कि 45 दिन में सुनवाई पूरी की जाए. यह आदेश पीड़िता की सुरक्षा और निष्पक्ष सुनवाई के लिहाज से अहम माना गया.
5 अगस्त 2019: रोजाना सुनवाई
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई. पीड़िता को AIIMS दिल्ली में शिफ्ट किया गया. कोर्ट की सख्ती के चलते ट्रायल तेज हुआ. यह पहली बार था जब केस निर्णायक मुकाम पर पहुंचा.
11 सितंबर 2019: एम्स में अदालत
पीड़िता की हालत को देखते हुए AIIMS में ही अस्थायी अदालत लगाई गई. यहीं पीड़िता का बयान दर्ज किया गया. यह भारतीय न्याय व्यवस्था में एक असाधारण कदम था. इसका मकसद पीड़िता को सुरक्षित माहौल देना था. इंसाफ मिलने की दिशा में भी ये अहम कार्रवाई थी.
16 दिसंबर 2019: सेंगर दोषी करार
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 16 दिसंबर 2019 को बीजेपी नेता कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी करार दिया. हालांकि सह-आरोपी शशि सिंह को बरी कर दिया गया. कोर्ट ने माना कि सेंगर ने नाबालिग से बलात्कार किया. यह फैसला पीड़िता की लंबी लड़ाई की बड़ी जीत थी.
20 दिसंबर 2019: उम्रकैद की सजा
इसके बाद अदालत ने सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई और उस पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. उसे IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया. यह सजा देशभर में एक कड़ा संदेश मानी गई.
23 दिसंबर 2025: हाईकोर्ट से जमानत
फिर इस मामले में इस साल नया मोड आया. दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर 2025 को सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित करते हुए जमानत दे दी. हालांकि, वह तुरंत रिहा नहीं हो सका क्योंकि पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में उसकी 10 साल की सजा अलग से चल रही है. कोर्ट ने सख्त शर्तें लगाईं. दिल्ली में रहना होगा, हाजिरी देनी होगी और पीड़िता से दूरी बनाकर रखनी होगी.
अधूरा इंसाफ? पीड़िता का दर्द
इसी रोज हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पीड़िता, उसकी मां और सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भायना ने इंडिया गेट पर प्रदर्शन किया. परिवार का कहना है कि जिस सिस्टम से उन्हें न्याय की उम्मीद थी, उसी ने उनका भरोसा फिर से तोड़ दिया. उन्नाव रेप केस आज भी सवाल बनकर देश के सामने खड़ा है. सवाल उठता है कि क्या सत्ता के सामने इंसाफ कमजोर पड़ जाता है?
परवेज़ सागर