असली धुरंधर: जुर्म, सियासत और एनकाउंटर में मौत... ल्यारी के रहमान डकैत की पूरी कहानी

जब से धुरंधर फिल्म आई है, रहमान डकैत का किरदार चर्चाओं में है. जिसे फिल्म में अक्षय खन्ना ने जीवित कर दिया है. रहमान डकैत के कुख्यात डॉन से PPP के सहयोगी बनने तक का सफर हैरान करने वाला है. और वैसी ही हैरान करने वाली थी उसकी मौत. जानें कराची अंडरवर्ल्ड के किंग रहमान डकैत की पूरी कहानी.

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रहमान डकैत की जिंदगी भी किसी फिल्म से कम नहीं थी (फोटो-ITG) रहमान डकैत की जिंदगी भी किसी फिल्म से कम नहीं थी (फोटो-ITG)

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:34 AM IST

Lyari Gang Wars & Rahman Dakait Story: हाल ही में रिलीज़ बॉलीवुड फिल्म ‘धुरंधर’ ने कराची के अंडरवर्ल्ड का काला सच स्क्रीन पर उतार दिया. कराची के ल्यारी टाउन से पैदा होने वाला खौफ भी महसूस करा दिया. लेकिन सच यह है कि 'धुरंधर' की कहानी भी कराची के सबसे कुख्यात गैंगस्टर रहमान डकैत की असल दास्तान के सामने फीकी पड़ जाती है. क्योंकि रहमान डकैत की जिंदगी में फिल्म जैसा रोमांच नहीं, बल्कि खौफ और बगावत की खूनी हकीकत थी. 

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ल्यारी में रहमान डकैत सिर्फ नाम नहीं था, बल्कि वो एक ऐसी ताकत था जिसने अपराध, राजनीति, बदले और पहचान की लड़ाई को कराची के दिल में कानून से भी बड़ा बना दिया था. पुलिस के लिए वो सिर्फ एक अपराधी नहीं, बल्कि वह चुनौती था जिसने पूरे शहर को दहला दिया था. उस दौर में ल्यारी के हालात इस कदर खराब थे कि कराची पुलिस ने एक फुल-स्केल ऑपरेशन चलाकर गैंगस्टर रहमान डकैत का खात्मा किया था, जिसकी दहशत दशकों तक ल्यारी के बच्चों की लोरियों में भी सुनाई देती थी.

कौन था रहमान डकैत?
कुख्यात रहमान डकैत का असली नाम सरदार अब्दुल रहमान बलोच था. उसका जन्म 1975 में कराची के ल्यारी इलाके में हुआ था. उसके पिता दाद मुहम्मद और मां खदीजा बीबी एक गरीब बलोच परिवार से आते थे. ल्यारी, PPP का मजबूत गढ़ था, हमेशा से अपराध और गरीबी का केंद्र रहा. बचपन से ही रहमान को अपने परिवार की ड्रग तस्करी की दुनिया का सामना करना पड़ा. उनके पिता और चाचा शेरू 1964 से हेरोइन स्मगलिंग में लिप्त थे. यह परिवार अफशानी गली के कलाकोट में रहता था, जहां ड्रग नेटवर्क की जड़ें गहरी थीं. छोटी उम्र में ही रहमान ने देखा कि कैसे काला नाग जैसे प्रतिद्वंद्वी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए. ल्यारी की तंग गलियां उसके लिए जुर्म का पहला स्कूल बनीं.

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जुर्म की विरासत
रहमान के परिवार में अपराध कोई नई बात नहीं थी. उसके पिता दाद मुहम्मद ने 1960 के दशक में अफगानिस्तान से हेरोइन तस्करी शुरू की थी. चाचा शेरू के साथ मिलकर उन्होंने ल्यारी को ड्रग हब बना दिया. 1970 के दशक में भुट्टो सरकार के दौरान यह नेटवर्क फला-फूला. इसी दौरान दूसरा गैंग चलाने वाला काला नाग भी सामने आ गया. रहमान के परिवार पर हमला हुआ. लेकिन बाद में मामला उसकी मौत से संभल गया. रहमान डकैत दाद मुहम्मद की इकलौती औलाद था. जिसने बचपन में ही ड्रग पेडलिंग सीखी थी. गरीबी और जातीय बलोच पहचान ने उसे जुर्म की ओर धकेला. और जब ल्यारी में बलोच बिरादरी का समर्थन उसे मिला, तो वो स्थानीय हीरो बनकर उभरा. पिता और परिवार की विरासत ने ही रहमान को एक खूंखार अपराधी बना दिया था.

13 साल की उम्र किया था पहला जुर्म
रहमान डकैत की आपराधिक यात्रा 13 साल की उम्र में शुरू हो गई थी. एक छोटे विवाद में उसने अपने पड़ोसी को चाकू मार दिया था. यह घटना ल्यारी की गलियों में सनसनी की तरह फैल गई थी. या यूं कहें कि खुद ही सनसनी बन गई थी. पुलिस ने उसे भागने तो दिया, लेकिन यह उसके लिए पहला सबक था. ड्रग बेचने की वजह से वो हिंसा की ओर मुड़ गया था. एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार, यह पड़ोसी पर चाकू से वार उसके पहले वायलेंट क्राइम के रूप में दर्ज है. ल्यारी के गैंग कल्चर में ऐसे कृत्य नौजवानों को स्टेटस देते थे. रहमान ने भागकर छिपने की कला सीखी थी. यह घटना उसके पिता की हत्या से जुड़ी थी, जब इकबाल उर्फ बाबू डकैत ने दाद मुहम्मद का कत्ल कर दिया था. उसी वक्त से रहमान बदले की आग में झुलस रहा था.

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मां की हत्या का जुर्म
19 साल की उम्र में रहमान डकैत ने ऐसी वारदात को अंजाम दिया कि लोगों का दिल दहल गया था. उसने अपनी मां खदीजा बीबी की बेरहमी से हत्या कर दी थी. एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसने अपनी मां को गला घोंटकर मारा था और फिर छत के पंखे से लटका दिया था. इल्जाम ये था कि उसकी मां का किसी प्रतिद्वंद्वी गैंग मेंबर से संबंध था. यह घटना ल्यारी में किसी सदमे से कम नहीं थी. हालांकि पुलिस ने इसे घरेलू विवाद बताया था, लेकिन इस वारदात के बाद रहमान फरार हो गया था. मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, यह क्राइम उसकी क्रूरता का प्रतीक बन गया था. उसका परिवार टूट चुका था, लेकिन रहमान के जुर्म का सफर तेज हो गया था. बलोच समुदाय में भी उसकी चर्चा होने लगी थी. इसी हत्याकांड उसे 'डकैत' का टाइटल दिलाया था.

हाजी लालू के गैंग में एंट्री
1990 के दशक के अंत में रहमान ने हाजी लालू के गैंग में एंट्री ली. लालू ल्यारी के चौधरी थे, जिनके पास ड्रग्स, हथियार और रंगदारी का साम्राज्य था. रहमान ने लालू के बेटों के साथ काम किया. फिर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के संरक्षण से यह गैंग फलने फूलने लगा. विकिपीडिया के अनुसार, लालू की गिरफ्तारी से पहले रहमान ने नेटवर्क को मजबूत किया. ल्यारी में छोटे अपराध कम करने का श्रेय भी उसे मिला. वे स्थानीय विवाद सुलझाने लगा. इसके बाद हाजी लालू ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. यह दौर रहमान के लिए ट्रेनिंग ग्राउंड था. गैंगवार की तैयारी यहीं से शुरू हुई थी.

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गैंग की कमान रहमान के हाथ
साल 2001 में हाजी लालू की गिरफ्तारी हो गई और इसके बाद रहमान ने गैंग की कमान संभाली. उसने उजैर बलोच और बाबा लाडला को अपना करीबी बनाया और ड्रग ट्रेड को विस्तार दिया. रहमान ने ल्यारी को अपना किला बना लिया था. मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, वह एक्सटॉर्शन और हथियार तस्करी में माहिर हो गया था. छोटे अपराध कम करके रहमान ने 'रॉबिन हूड' जैसी इमेज बनाई. स्थानीय लोग कहते थे, 'रहमान के राज में रात को भी सुरक्षित घूम सकते थे.' इसी के साथ रहमान PPP नेताओं से नजदीकी बढ़ा रहा था. यह बदलाव ल्यारी की राजनीति को प्रभावित करने वाला था.

गैंगवार और अपराध का साम्राज्य
साल 2003-04 तक रहमान डकैत ल्यारी का सबसे ताकतवर डॉन बन चुका था. उसने अरशद पप्पू को चुनौती दी थी. यहीं से गैंगवार शुरू हो गई. मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक, रहमान ने बलोच युवाओं को संगठित किया. ड्रग्स और हथियारों से उसकी कमाई करोड़ों में पहुंच चुकी थी. वो पानी के टैंकरों और जमीन पर कब्जा करने लगा था. हालात ये थे कि ल्यारी को 'वाइल्ड वेस्ट' कहा जाने लगा था. इसी दौर में रहमान ने सोशल वर्क भी खूब किया. वो गरीबों की मदद करने लगा था. इसी चरित्र ने उसे लोकप्रिय बना दिया था. यही वजह थी कि PPP ने उसे वोट बैंक प्रोटेक्टर बना दिया था.

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PPP से गठजोड़, राजनीति में एंट्री
रहमान डकैत का PPP से गहरा कनेक्शन बन गया था. साल 1988 से ल्यारी PPP का गढ़ था. रहमान को वोट संरक्षक बनाया गया. मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, एक वक्त ये था कि रहमान बेनजीर भूट्टो का करीबी बन गया था. साल 2007-08 के मुशर्रफ विरोधी आंदोलन में उसकी खासी भूमिका थी. बदले में PPP उसे पुलिस से बचाती रही. मीडिया रिपोर्टस् में कहा गया कि वह पार्टी के सिक्योरिटी विंग जैसा बन गया था. गैबोल जैसे नेताओं से भी उसका टकराव हुआ. यह गठजोड़ जुर्म को वैधता देता था. रहमान डकैत ने PPP के झंड़े अपने गैंग ऑफिस पर लगा लिए थे. उस दौर की राजनीति ने उसे अजेय बना दिया था.

पीपुल्स अमन कमिटी का गठन
साल 2008 में रहमान ने पीपुल्स अमन कमिटी (PAC) बनाई. यह गैंग का कवर था. शांति संगठन का नाम. मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, PAC ने विवाद सुलझाए, वेलफेयर बांटा. लोगों की मदद की. लेकिन अंदर से एक्सटॉर्शन चलता रहा. उजैर बलोच को कमांडर बनाया गया. ल्यारी में PAC के ऑफिस खोले गए. PPP ने इसे समर्थन दिया था. उसी कमिटी ने इलाके में गैंगवार को नियंत्रित किया. रहमान डकैत ने तमाम छोटे अपराध रोके. सच कहा जाए तो पीएसी संस्था ल्यारी की पैरलल गवर्नमेंट बन गई थी. PAC का गठन हो जाने से रहमान की शक्ति चरम पर थी.

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गैंगस्टर अरशद पप्पू से खूनी जंग
रहमान का सबसे बड़ा दुश्मन था अरशद पप्पू. साल 2008 से गैंगवार तेज हो चुकी थी. पप्पू MQM का समर्थक था. नेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोनों की गैंगवार में रोज लाशें गिरतीं रहीं. रहमान डकैत ने PPP की ताकत से अपने दुश्मन पप्पू को ल्यारी से बाहर कर दिया. जिसके लिए उजैर और बाबा लाडला ने हमले लीड किए थे. यही वो वक्त था, जब इलाके में कथित तौर पर कटे सिरों से फुटबॉल खेलने की अफवाहें फैलीं थीं. इनकी जंग में सैकड़ों निर्दोष लोग भी मारे गए थे. रहमान ने अरशद पप्पू के पिता को भी निशाना बनाया था. यह जंग ल्यारी की जमीन को लाल करती जा रही थी. PPP-MQM का टकराव भी इसमें झलकता था.

रहमान को कहा गया 'शेर-ए-ल्यारी'
साल 2009 तक रहमान डकैत 'शेर-ए-ल्यारी' बन चुका था. उसके खिलाफ 80 से ज्यादा केस थे, लेकिन PPP से संरक्षण मिलने की वजह से उसे कोई परेशानी नहीं थी. वो बिल्कुल आजाद था. लेकिन वक्त और हालात कभी एक जैसे नहीं रहते. उसी दौर में पीपीपी की वरिष्ठ नेता बेनजीर भुट्टो की सरेआम हत्या कर दी गई. और यहीं से रहमान की उल्टी गिनती शुरू हुई. मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, रहमान का नाम बेनजीर की हत्या में शामिल होने के शक में आ गया था. PAC ने ल्यारी पर कंट्रोल कर लिया था. रंगदारी से करोड़ों की कमाई हो रही थी. लेकिन इसी ताकत ने रहमान के दुश्मन बढ़ा दिए थे. साथ ही अब PPP नेताओं से भी टकराव होने लगा था. क्योंकि रहमान ने नेताओं से पैसे मांगने शुरू कर दिए थे. यही बात उसके पतन का कारण बन गई. ल्यारी में वो हीरो था, लेकिन बाहर खलनायक. चरम पर पहुंचकर वो एक खतरा बन गया था.

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रहमान का विवादास्पद एनकाउंटर
वो 9 अगस्त 2009 का दिन था. रहमान अपने तीन साथियों औरंगजेब, नजीर और अकील के साथ स्टील टाउन की तरफ जा रहा था. तभी रास्ते में जिले के एसएसपी (SSP) चौधरी असलम खान की टीम ने उसकी कार रोकी. पुलिस टीम का रवैया देखकर रहमान को शक हो गया था. मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक, रहमान और उसके तीन साथियों औरंगजेब, नजीर और अकील ने पुलिस पर गोलीबारी की. जिसके जवाब में पुलिस टीम ने भी फायरिंग शुरू कर दी. जब गोलियों की आवाज़ थमी तो ल्यारी का एक अध्याय खत्म हो चुका था. रहमान मारा जा चुका था. उसका जिस्म गोलियों से छलनी था. कहा जात है कि उसे 22 गोलियां लगीं थीं. पुलिस ने उसकी कार से हथियार बरामद किए थे. 

फेक एनकाउंटर का इल्जाम
लेकिन रहमान की विधवा पत्नी ने पुलिस पर फेक एनकाउंटर का आरोप लगाया. जिसके चलते SHC ने FIR का आदेश दिया. रहमान के परिवार को उसकी किडनैपिंग का शक था. वो तुरबत से लौटते हुए मारा गया था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उसे 3 फीट की दूरी से गोली मारने की बात सामने आई थी. रहमान की विवादास्पद मौत ने पुलिस को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था.

मौत के बाद विरासत
रहमान डकैत की मौत के बाद PAC बिखर गई. फिर उजैर बलोच ने कमान संभाली. उजैर ने अपने नेटवर्क विस्तार किया. कहा जाता है कि रहमान के फ्यूनरल में भी 7 लोग मारे गए थे. ल्यारी में कर्फ्यू लगाया गया था. रहमान की हत्या के इल्जाम से PPP को भी सियासी नुकसान हुआ था. हालांकि रहमान की मौत के बाद भी ल्यारी में गैंगवार जारी रही. साल 2013 में रेंजर्स को ऑपरेशन के लिए ल्यारी में उतारा गया. जिससे कुछ सुधार हुआ. रहमान डकैत को आज भी वहां 'रॉबिन हूड' कहा जाता है. रहमान की कहानी जुर्म और सियासत के गठजोड़ की दास्तान है. जहां विरासत खूनी है.

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