दरिंदगी, तस्करी और मौत से जंग... दिल दहला देगी दो साल की बेबी फलक की दर्दनाक कहानी

दिल्ली के एम्स में भर्ती दो साल की फलक की कहानी ने पूरे देश को झकझोर दिया था. इंसानी दरिंदगी, मानव तस्करी और मौत से जंग की ये दर्दनाक सच्चाई किसी भी इंसान का कलेजा छलनी कर सकती है. पढ़ें एक मासूम के साथ दरिंदगी की खौफनाक कहानी.

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बेबी फलक की कहानी किसी भी इंसान को दहला सकती है (फोटो-ITG) बेबी फलक की कहानी किसी भी इंसान को दहला सकती है (फोटो-ITG)

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 06 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:40 PM IST

Baby Falak case 2012: शेफाली शाह की वेब सीरीज़ दिल्ली क्राइम के सीज़न 3 की हर तरफ चर्चा हो रही है. समीक्षकों ने नेटफ्लिक्स की इस सीरीज़ को खूब सराहा है. यहां तक कि इस सीरीज़ ने अंतर्राष्ट्रीय एमी पुरस्कार जीता है. जघन्य अपराधों का संवेदनशील चित्रण करने वाली इस सीरीज़ का यह सीजन साल 2012 के कुख्यात बेबी फलक केस पर आधारित है. जिसकी कहानी आपको सन्न कर देगी. आइए आपको बताते हैं कि आखिर दिल्ली का बहुचर्चित बेबी फलक केस क्या था?

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13 साल पहले दो साल की उस मासूम बच्ची को लहूलुहान हालत में एम्स ट्रॉमा सेंटर लाया गया था.कोई नहीं जानता था कि वो कौन है? कहां से आई है? या किसने उसके साथ ये बर्बरता की? सब उसे बचाने में जुट गए थे. डॉक्टर, नर्सें और देशभर के लोग जो उसके लिए दुआ कर रहे थे. लेकिन किस्मत ने इस नन्ही जान पर रहम नहीं किया. फलक की कहानी सिर्फ एक बच्ची की नहीं, बल्कि उस समाज की है जहां मासूमियत भी सुरक्षित नहीं.

18 जनवरी 2012, नई दिल्ली
वो एक ठंडी शाम थी. दिल्ली के एम्स ट्रॉमा सेंटर में अचानक एक 15 साल की लड़की दाखिल हुई. उसकी गोद में दो साल की एक मासूम घायल बच्ची थी, जो बेहोश थी. उस लड़की ने खुद को बच्ची की मां बताया और स्टाफ से बोली कि बच्ची बिस्तर से गिर गई थी. डॉक्टरों ने बच्ची को देखा तो उसे देखकर वो सन्न रह गए. उस मासूम का सिर फट चुका था, दोनों बाजू टूटे हुए थे. पूरे शरीर पर इंसानी दांतों से काटने के निशान थे. उसके गालों पर गर्म लोहे से दागे जाने के निशान थे. यह कोई सामान्य गिरना नहीं लग रहा था. डॉक्टरों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बच्ची को आईसीयू में भर्ती किया गया. 

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नर्सों ने दिया नया नाम 'फलक'
डॉक्टरों का कहना था कि उन्होंने कभी इतनी बुरी हालत में किसी बच्चे को नहीं देखा. यह केस 'बैटर्ड बेबी सिंड्रोम' का लग रहा था, जो भारत में दुर्लभ था. जो लड़की बच्ची को लेकर वहां आई थी, वो अचानक गायब हो गई थी. बच्ची की पहचान और नाम अज्ञात था. लिहाजा, ICU में तैनात नर्सों ने ही उसे प्यार से 'फलक' नाम दे दिया. धीरे-धीरे देशभर के लोगों का ध्यान उस बच्ची पर गया और हर कोई उसके ठीक होने की दुआ करने लगा. लेकिन पुलिस के लिए असली सवाल था ये था कि आखिर ये बच्ची कौन थी? और उसके साथ ये दरिंदगी किसने की थी?  

डॉक्टरों की पहली रिपोर्ट
एम्स के ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टर सुमित सिन्हा और उनकी टीम फलक का इलाज कर रहे थे. स्कैनिंग से पता चला कि उसके दिमाग में खून का थक्का था. इंसानी काटने के निशान उसके छोटे शरीर पर फैले हुए थे, जो किसी करीबी रिश्तेदार की क्रूरता की ओर इशारा कर रहे थे. डॉक्टरों ने कहा कि बच्ची का ये हाल लगातार प्रताड़ना की वजह से हुआ था. फलक को वेंटिलेटर पर रखा गया था. वह कोमा में थी. सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. 

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नाबालिग लड़की हिरासत में
उधर, पुलिस इस मामले की छानबीन में जुट गई थी. इसी के चलते पुलिस ने 15 साल की उस लड़की को हिरासत में ले लिया था, जो बच्ची को अस्पताल लेकर आई थी. वो लड़की घबरा रही थी और साफ तौर पर कुछ बता नहीं पा रही थी. पुलिस ने उस लड़की को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के हवाले कर दिया. बाद में उसे जुवेनाइल होम भेज दिया गया. 

फलक की मां और परिवार की तलाश
दिल्ली पुलिस उस मासूम की असली मां की तलाश शुरू कर चुकी थी. इसी के चलते 1 फरवरी 2012 को पुलिस ने दावा करते हुए कहा कि उन्होंने बच्ची की असली मां 'मुन्नी' को ढूंढ निकाला है. 27 साल की मुन्नी बिहार की रहने वाली थी. जांच आगे बढ़ी तो सामने आया कि मुन्नी के तीन बच्चे थे. फलक, उसका पांच साल का भाई और तीन साल की बहन सनोबर. मुन्नी को दो महिलाओं ने धोखा दिया था. वे दोनों वादा करके उसे बिहार से दिल्ली लाईं, फिर दूसरे विवाह के नाम पर उसे बेच दिया. उन दोनों ने मुन्नी की शादी राजस्थान के एक किसान से करवा दी थी. बदले में उसके बच्चों को रखने का वादा किया. लेकिन उन दोनों महिलाओं ने उसके तीनों बच्चों को अलग अलग लोगों को बांट दिया. फलक की बहन सनोबर को बिहार भेज दिया. फलक और उसके भाई को कहीं और भेजा. आखिरकार फलक एक किशोरी के पास पहुंच गई. वो 15 साल की नाबालिग लड़की खुद एक शादीशुदा आदमी के साथ रह रही थी. हकीकत ये थी कि मुन्नी की जिंदगी मानव तस्करों के झांसे में आ गई थी. 

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मानव तस्करी का शिकार बना फलक का परिवार
मुन्नी ने पुलिस को बताया कि सितंबर 2011 में लक्ष्मी नाम की महिला ने उसे दिल्ली लाने का लालच दिया. फिर लक्ष्मी और कांति चौधरी नामक महिलाओं ने उसे धोखे से दूसरी शादी के लिए राजस्थान भेज दिया. उन दोनों ने मुन्नी के बच्चों को दिल्ली में ही रखने का वादा किया था. लेकिन लक्ष्मी ने फलक को मनजोत नाम के आदमी को सौंप दिया. मनजोत ने उसे राजकुमार को दे दिया. राजकुमार एक आपराधिक पृष्ठभूमि का शख्स था. उसका असली नाम मोहम्मद दिलशाद बताया गया. उसने फलक को अपनी 15 साल की प्रेमिका को सौंप दिया था. जबकि वो नाबालिग लड़की खुद तस्करी की शिकार थी. उस नाबालिग लड़की के बारे में पता चला कि उसके पिता विजेंद्र ने उसे बेचा था. उसे खरीदने वाले संदीप और आरती ने उसे वेश्यावृत्ति में धकेल दिया. यही नहीं, राजकुमार ने भी जमकर उसका शोषण किया. अब मासूम फलक भी इसी चक्र में फंस गई थी. 

आईसीयू में भर्ती होने के साथ ही फलक को ब्रेन सर्जरी की जरूरत थी. डॉक्टर दीपक अग्रवाल के मुताबिक, उसके दिमाग में पानी जमा हो रहा था. यही वजह थी कि उसकी छह ब्रेन सर्जरी हुईं थी. पहली सर्जरी में खून का थक्का निकाला गया था. शंट सर्जरी से उसके दिमाग का पानी निकाला गया. वह मेनिन्जाइटिस की चपेट में आ गई थी. फेफड़ों, खून और दिमाग में संक्रमण फैल गया था. डॉक्टरों ने कई एंटीबायोटिक्स उस पर आजमाए. वो एक महीने से ज्यादा वक्त तक वेंटिलेटर पर रही. उसे सांस लेने में तकलीफ थी. 17 फरवरी 2012 को वो ब्रेन इंफेक्शन से उबर गई थी. लेकिन उसे दो हार्ट अटैक हो चुके थे. लेकिन वो जिंदा थी. उस वक्त डॉक्टरों ने कहा था कि यह चमत्कारिक बच्ची है. 

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उस वक्त नर्सें कहतीं थीं कि फलक रोती थी तो पूरा वार्ड उसकी तरफ दौड़ पड़ता था. वह आंखें खोलती थी, उसके अंगों में हलचल दिखती थी. लेकिन वो दर्द से तड़पने लगती थी. उसका इलाज महंगा था, लेकिन एम्स की टीम ने हार नहीं मानी. फलक की जिंदगी उनके लिए एक जंग बन गई थी.

उम्मीद की रोशनी
फरवरी के अंत तक फलक की सेहत में सुधार दिखने लगा था. लिहाजा 2 मार्च 2012 को उसे वेंटिलेटर से हटा दिया गया. अब उसे सामान्य वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था. डॉक्टरों ने कहा कि वह पूरी तरह ठीक हो रही है. नर्सें बतातीं है कि फलक खुद सांस ले रही थी. वह नर्सों के साथ खेलने लगी थी. आईसीयू से बाहर आने पर सबने उसे 'मिरेकल बेबी' कहना शुरू कर दिया था. डॉक्टरों का मानना था कि डिस्चार्ज जल्द हो सकता है. लेकिन उसकी अनियमित दिल की धड़कनें समस्या बन रही थीं. उस वक्त फलक की कहानी मीडिया में छाई रही. पूरे भारत में लोग उसके लिए दुआएं मांग रहे थे. अमेरिका और कनाडा से एडॉप्शन के ऑफर आ रहे थे. लोग कहते थे कि अगर वो ठीक हो जाए तो हम गोद लेंगे. नर्सों का कहना था कि फलक से सब जुड़ गए थे. उसकी मुस्कान पर सब मुस्कुराते थे. लेकिन डॉक्टर जानते थे कि ब्रेन डैमेज स्थायी हो सकता है. फिर भी उम्मीद की किरण जल रही थी.

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नाबालिग लड़की का कबूलनामा
15 साल की जिस किशोरी को पुलिस ने हिरासत में लिया था, उसका नाम गुड़िया उर्फ लक्ष्मी था. उसने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि राजकुमार ने नवंबर 2011 में फलक को उसके हवाले किया था. मगर वह अकेली बच्ची को संभाल नहीं पा रही थी. फलक रोती रहती थी, तो वो उसने गुस्से में दीवार से मासूम का सिर ठोक दिया था. गर्म लोहे से उसके गाल दागे थे. उसी ने मासूम बच्ची के जिस्म पर जगह जगह काटा था. मासूम फलक के साथ उसी ने ये दरिंदगी की थी. 17 जनवरी की रात फलक रोती रही तो तब वो खुद उसे लेकर एक निजी अस्पताल में गई थी. जहां से उसे एम्स रैफर किया गया था.

पुलिस ने उस लड़की के बयान दर्ज किए. लड़की ने पुलिस को आगे बताया कि वह खुद शोषित थी. उसके पिता ने उसे बेच दिया था. संदीप नाम के एक शख्स ने तीन दिन तक उसके साथ बलात्कार किया था. इस काम में एक महिला भी उसके साथ थी. फिर संदीप ने उसे वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया था. इसी दौरान वो लड़की राजकुमार से मिली, लेकिन वह भी उसका जिस्म नोंचता रहा. उसका शोषण करता रहा.

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पुलिस की तलाश और गिरफ्तारियां
पुलिस की टीम ने फलक केस में छापेमारी शुरू की. पहले लक्ष्मी और कांति चौधरी को गिरफ्तार किया. वे दोनों ही तस्करी की मुख्य आरोपी थीं. फिर संदीप और आरती को गिरफ्तार किया गया, जिन्होंने किशोरी को वेश्यावृत्ति में धकेला था. बाद में किशोरी के पिता विजेंद्र को भी पकड़ा लिया गया. जबकि राजकुमार फरार था, लेकिन 13 मार्च 2012 को उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में कुल 10 लोग गिरफ्तार किए गए थे. फलक का पांच साल का भाई उत्तम नगर के एक विक्रेता के घर से बरामद हुआ. जबकि उसकी बहन सनोबर मुजफ्फरपुर, बिहार में ट्रेस की गई. 

पुलिस ने इस मामले में पांच टीमें बनाईं थी. डीसीपी छाया शर्मा ने बताया था कि यह किडनैपिंग और मानव तस्करी का केस है. मुन्नी को राजस्थान से लाया गया. 15 फरवरी को मुन्नी फलक से मिली थी. उसका रो रो कर बुरा हाल था. उसे अंदाजा भी नहीं था कि उसकी बच्ची इस हाल में होगी. इसके बाद मुन्नी को नई दिल्ली के निर्मल छाया कॉम्प्लेक्स शेल्टर होम में रखा गया था. इन गिरफ्तारियों ने मानव तस्करी के एक बड़े नेटवर्क को उजागर किया था. लेकिन फलक की जिंदगी बचाने का समय निकल चुका था.

अंतिम संघर्ष और हार्ट अटैक
मार्च 2012 तक फलक ठीक लग रही थी. डॉक्टर डिस्चार्ज की तैयारी कर रहे थे. लेकिन 15 मार्च की रात 9:40 बजे उसे तीसरा हार्ट अटैक आया. वह बिस्तर पर सो रही थी. अचानक 'कार्डियक एरिद्मिया' से दिल की धड़कन बिगड़ गई. डॉक्टरों ने रिवाइव करने की पूरी कोशिश की, लेकिन 9:40 पर फलक के दिल की धड़कन हमेशा के लिए थम गई थी. डॉक्टर दीपक अग्रवाल ने कहा था कि यह अचानक हुआ. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 'कार्डियक एरिद्मिया' यानी हार्टबीट के अनियमित होने की पुष्टि हुई. वह जिंदगी के लिए 56 दिनों तक लड़ी. 6 सर्जरी झेलीं. दो हार्ट अटैक से उबरी. लेकिन तीसरा अटैक उसे हमेशा के लिए सुला गया. उसकी मौत पर अस्पताल में मातम का मंजर था. नर्सें रो रही थीं. तब एक नर्स ने कहा था कि फलक उनकी बेटी बन गई थी. अब वह नहीं रही, दिल टूट गया. उसकी मौत की खबर से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई थी. 

मासूम के अंतिम संस्कार उमड़ा था जनसैलाब
16 मार्च 2012 को फलक को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला कब्रिस्तान में दफनाया गया. हजारों लोग शोक में डूबे थे. उसके दफीने में एम्स के डॉक्टर भी शामिल हुए थे. मुन्नी फूट-फूटकर रोई थी. सनोबर और उसके भाई को सुरक्षा में रखा गया था. पुलिस ने कहा था कि केस मेडिको-लीगल है, जांच जारी है. 

गृह मंत्रालय ने इसे मानव तस्करी का केस घोषित किया था. साल 2010 में भारत में तस्करी के मामले 20% बढ़े थे. फलक की कहानी हजारों अनजान बच्चों का दर्द बयां करती है. मुख्य आरोपी राजकुमार उर्फ मोहम्मद दिलशाद और उसकी किशोर प्रेमिका लक्ष्मी को सजा मिली. फलक की कहानी ने पूरे देश को झकझोर दिया था और बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई नई नीतियों की मांग उठी थी. आज भी जब कोई 'बेबी फलक केस' का नाम लेता है, तो लोगों की आंखों में आंसू और दिल में सवाल उठता है कि इंसानियत इतनी बेरहम कैसे हो सकती है?

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