9 साल सुनवाई, 84 गवाह और फ्रिज... पुलिसवाले ने किया था पुलिसवाली का कत्ल, समंदर में फेंके थे लाश के टुकड़े

कत्ल का एक ऐसा मामला जिसमें कातिल भी पुलिस. मरने वाली भी पुलिस और जांच करने वाली पुलिस. लेकिन वारदात को करीब 9 साल का वक्त गुजरने के बावजूद अब तक मरने वाली की लाश तक बरामद नहीं हो सकी. आम तौर पर कत्ल के ऐसे मामले इंसाफ की कसौटी पर दम तोड़ देते हैं, लेकिन ये मामला अलग मिसाल बन गया.

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पुलिस अब आरोपी वर्दीवाले की तलाश कर रही है पुलिस अब आरोपी वर्दीवाले की तलाश कर रही है

दिव्येश सिंह / विद्या

  • मुंबई,
  • 09 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 11:47 AM IST

Assistant Sub Inspector Ashwini Bidre: बात साल 2016 की है. महाराष्ट्र पुलिस की एक लेडी एएसआई (ASI) को अगवा किया गया और फिर उसका कत्ल कर दिया गया. बाद में कातिल ने उसकी लाश के टुकड़े किए और उन्हें समंदर में फेंक दिया. इस कत्ल के इल्जाम में कोई शातिर बदमाश या माफिया नहीं, बल्कि एक पुलिस इंस्पेक्टर को ही गिरफ्तार किया गया. अब पूरे 9 साल बाद मुंबई की एक अदालत ने आरोपी इंस्पेक्टर को दोषी करार दिया है और इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर बताया है. चलिए जानते हैं क्यों ऐसा हुआ.

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कत्ल का एक ऐसा मामला जिसमें कातिल भी पुलिस. मरने वाली भी पुलिस और जांच करने वाली पुलिस. लेकिन वारदात को करीब 9 साल का वक्त गुजरने के बावजूद अब तक मरने वाली की लाश तक बरामद नहीं हो सकी. आम तौर पर कत्ल के ऐसे मामले इंसाफ की कसौटी पर दम तोड़ देते हैं, क्योंकि लाश के गायब हो जाने के साथ ही ये शक रह ही जाता है कि पता नहीं जिसे मुर्दा बताया जा रहा है, वो वाकई मरा भी है या नहीं.

लेकिन इस केस में ऐसा नहीं है. मरने वाली की लाश नहीं मिलने के बावजूद ना सिर्फ पुलिस ने अपनी तफ्तीश पूरी की, बल्कि उसी तफ्तीश में मिले सुबूतों की बिनाह पर कोर्ट ने आरोपियों को गुनहगार भी करार दिया. और तो और कोर्ट ने अब इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर की कैटेगरी में भी रखा है. और सजा सुनाने की तारीख 11 अप्रैल तय की है.

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मामला मुंबई के करीब ठाणे का है, जहां के सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर अभय कुरुंदकर ने अपने ही महकमे की असिस्टेंट सब इंस्पेकटर अश्विनी बिदरे की हत्या कर दी थी. 11 अप्रैल 2016 को कुरुंदकर ने ना सिर्फ अपनी सहकर्मी अश्विनी बिदरे की हत्या कर दी, बल्कि उसकी लाश को टुक़ड़ों में काट कर ऐसे ठिकाने लगाया कि लाख कोशिश करने के बावजूद पुलिस और नेवी के एक्सपर्ट्स उसे ढूंढ नहीं सके. ये और बात है कि पुलिस की निगरानी में गोताखोर मुंबई के करीब वसई क्रीक में कई दिनों तक लाश की तलाश करते रहे, जिसे कुरुंदकर ने कथित तौर पर वारदात को अंजाम देने के बाद ठिकाने लगा दिया था.

असल में कुरंदर और बिदरे दोनों शादीशुदा थे. लेकिन फिर दोनों एक दूसरे के साथ रिलेशन में थे. अश्विनी बिदरे ने अपने पति को छोड़ दिया था और ठाणे में अकेली रहती थी. इस बीच अश्विनी ने कुरुंदकर पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था, लेकिन कुरंदकर इसके लिए तैयार नहीं था. जिसके चलते दोनों में अक्सर लड़ाइयां होती थीं और आखिरकार ये लड़ाई अश्विनी के कत्ल के साथ ही खत्म हुई. 

पुलिस की तफ्तीश में पता चला कि कत्ल के बाद कुरुंदकर ने बाकायदा वुड कटर से अश्विनी कुरुंदकर की लाश के टुकड़े किए. उन्हें फ्रिज में रखा और फिर किस्तों में लाश के टुकड़े ठिकाने लगाता रहा. शरीर के बाकी हिस्से तो गायब कर चुका था, लेकिन चूंकि धड़ फ्रिज में नहीं समा सका, तो उसने उसे एक बक्से में बंद कर वसई क्रीक में फेंक दिया.

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इस मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने कुरुंदकर के साथ-साथ इस केस में सबूत मिटाने में उसकी मदद करने वाले उसके तीन और साथियों को भी गिरफ्तार किया और कुरुंदकर की निशानदेही पर लाश की तलाश करती रही, लेकिन पुलिस को इसमें कामयाबी नहीं मिली. ऐसे में पुलिस की जांच सरकमस्टैंशियल एविडेंसेज यानी परिस्थिजन्य साक्ष्यों पर ही टिकी रही. 

इसमें पुलिस के पास मकतूल और आरोपियों के कॉल डिटेल्स, गवाहों के बयान, केमिनकल एनालिसिस रिपोर्ट जैसी चीज़ें अहम रहीं, जिससे साबित हुआ कि कुरुंदकर ने ही अपने मकान में अश्विनी बिदरे की हत्या की थी. पुलिस ने वो फ्रिज भी बरामद कर लिया था, जिसमें अश्विनी की लाश के टुकड़े करने के बाद उसे ठिकाने लगाने से पहले छुपाया गया था.

खास बात ये रही कि जिस वक्त कुरुंदकर और उसके साथियों ने बिदरे के धड़ को वसई क्रीक के गहरे पानी में ठिकाने लगाया, उस वक्त कुरुंदकर और उसके बाकी साथियों की लोकेशन ठीक वसई क्रीक के पास ही पाई गई. ये भी कुरुंदकर और बाकी गुनहगारों का जुर्म साबित करने में काफी अहम साबित हुआ.

अश्विनी बिदरे नवी मुंबई में अकेली रहती थी, जबकि उसका पति कोल्हापुर में रहता था. अप्रैल 2016 में अचानक वो एक रोज़ अपने घर से गायब हो गई. जब उससे कोई कॉटैक्ट नहीं हो सका, तो फिर उसके भाई ने अश्विनी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई. तफ्तीश चलती रही लेकिन आखिरकार पुलिस ने इस सिलसिले में पूरे 9 महीने बाद जनवरी 2017 में एफआईआर दर्ज की और कुरुंदकर और उसके साथियों को दिसंबर 2017 को गिरफ्तार किया गया.

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इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में 84 गवाहों को पेश किया, जबकि आरोपियों का इकबालिया बयान भी अदालत के सामने पेश किया गया. मामले में गुनहगारों को दोषी करार देते हुए पनवेल कोर्ट के जज केजी पालदेवर ने 15 मार्च को कहा कि इस केस से जुड़े रिकॉर्ड्स सैकड़ों पन्नों में दर्ज हैं. इसमें काफी लंबी सुनवाई भी चली है. ऐसे में इस मामले में फैसला सुनाने भी वक्त लगने वाला है. 

अभियोजन पक्ष ने इस मामले में फरवरी महीने में अदालत से मौका-ए-वारदात का निरीक्षण करने और ठाणे कोर्ट नाका से भायंदर और मुकुंद प्लाजा वाया आरएनपी पार्क से वसई क्रीक तक के रूट का भी जायजा लेने की अपील की थी. प्रोसिक्यूशन यानी अभियोजन पक्ष का कहना था कि इन इलाकों का जायजा लेने से अदालत को आरोपियों के फोन की लोकेशन को भी समझने में सुविधा होती. 

हालांकि जज ने ये कहते हुए उन जगहों पर स्वयं जाकर जायजा लेने से इनकार कर दिया कि जो सबूत इस मामले में पुलिस ने अदालत के सामन पेश किए हैं, वो अपने आप में काफी हैं.

अजीब बात ये रही कि जिस कुरुंदकर पर इतना संगीन केस चल रहा था, उसे साल 2017 में वीरता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. जिस पर पनवेल की अदालत ने हैरानी भी जताई. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में उन अफसरों की भी जांच होनी चाहिए, जिन्होंने कुरुंदर पर इतने संगीन इल्जामों के बावजूद उसका नाम वीरता पुरस्कार के लिए रेकमेंड किया. फिलहाल कोर्ट ने इस मामले में कुरुंदर के अलावा उसके दो साथियों को भी गुनहगार ठहराया है, लेकिन एक आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है.

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