ईरान ने इंटरनेशनल एजेंसी इंटरपोल से की डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ कार्रवाई की मांग

2-3 जनवरी 2020 की वो रात ईरान कभी नहीं भूल पाएगा. क्योंकि यही वो रात थी, जब ईरान के सबसे एलीट मानी जानेवाली कुद्स फ़ोर्स के कमांडर मेजर जनरल कासिम सुलेमानी और मोबालाइजेशन फ़ोर्स के डिप्टी कमांडर अबू महदी अल मुहांदिस को अमेरिका ने एक साथ एक ड्रोन हमले में मार गिराया था.

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ईरान काफी समय से ट्रंप के खिलाफ गुस्से में है ईरान काफी समय से ट्रंप के खिलाफ गुस्से में है

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 3:48 PM IST
  • बढ़ती जा रही हैं डोनाल्ड ट्रंप की मुश्किलें
  • बुरे वक्त में ईरान ने किया गहरा वार

ईरान ने भी अपने दुश्मन नंबर वन डोनाल्ड ट्रंप के कमज़ोर वक़्त को भांप कर उन पर करारा वार किया है. जी हां, ईरान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ सीधे इंटरनेशनल एजेंसी इंटरपोल से कार्रवाई की मांग की है. क्योंकि इराक की राजधानी बगदाद में हुए उस अमेरिकी हमले को लेकर इराक की अदालत ने सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ़ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है.

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2-3 जनवरी 2020 की वो रात ईरान कभी नहीं भूल पाएगा. क्योंकि यही वो रात थी, जब ईरान के सबसे एलीट मानी जानेवाली कुद्स फ़ोर्स के कमांडर मेजर जनरल कासिम सुलेमानी और मोबालाइजेशन फ़ोर्स के डिप्टी कमांडर अबू महदी अल मुहांदिस को अमेरिका ने एक साथ एक ड्रोन हमले में मार गिराया था. एक वो दिन था और एक आज का दिन, ईरान के लिए ये ज़ख्म मानों हर गुज़रते दिन के साथ अब नासूर बन चुके हैं. लेकिन कहते हैं ना कि हर किसी का वक़्त कभी ना कभी बदलता ज़रूर है. तो अब लगता है कि एक साथ कई लोगों का वक़्त बदलने लगा है.

उधर, राष्ट्रपति चुनाव में जो बिडेन के हाथों करारी शिकस्त खाने के बाद ट्रंप के सामने व्हाइट हाउस छोड़ने की बड़ी मुसीबत आन खड़ी हुई है और इधर, ईरान ने भी अपने दुश्मन नंबर वन डोनाल्ड ट्रंप के कमज़ोर वक़्त को भांप कर उन पर करारा वार किया है. जी हां, ईरान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ सीधे इंटरपोल से कार्रवाई की मांग की है. क्योंकि उस अमेरिकी हमले को लेकर इराक की अदालत ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ़ गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया है.

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इस वारंट के बाद इराक फ्रांस में इंटरपोल के मुख्यालय से ट्रंप के खिलाफ कार्रवई की मांग की है. जिसका मतलब ये हुआ कि इराक इंटरपोल से अनुरोध कर रहा है कि ट्रंप उसके यहां अभियुक्त हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जाए. आमतौर पर जब कोई अपराधी देश छोड़कर दूसरे देश में भाग जाता है या वो किसी दूसरे देश का होता है तो इंटरपोल के जरिए रेड नोटिस जारी किया जाता है. 

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ईरान ने इंटरपोल से ये भी आग्रह किया है कि ट्रंप सहित 47 अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जाए. जो इस ड्रोन हमले के पीछे शामिल थे. ईरान ने इससे पहले जून में भी इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की अपील की थी, लेकिन तब उसकी यह अपील खारिज कर दी गई थी.

2 और 3 जनवरी को ये हमला तब हुआ था, जब ईरान के टॉप कमांडर सीरिया से बगदाद एयरपोर्ट पहुंचे ही थे. उनके चाहने वाले भी एयरपोर्ट पर जमा थे और प्लेन के लैंड होते ही उन्हें विमान के पास ही लेने पहुंच गए. जहां दो एसयूवी दोनों को लेने के लिए खड़ी हुईं थीं. एक कार में जनरल कासिम और दूसरी में अबू महदी अल-मुहांदिस बैठ गए. जैसे ही दोनों की कार एयरपोर्स से बाहर निकली. वैसे ही रात के अंधेरे में अमेरिकी एमक्यू-9 ड्रोन ने उस पर एक के बाद एक कई मिसाइलें दाग दीं. 

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अमेरिका की इस एयरस्ट्राइक में मेजर जनरल कासिल सुलेमानी और अबू महदी अल-मुहांदिस समेत 8 लोगों की मौत हो गई. हमले के फौरन बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने ट्विटर अकाउंट से अमेरिका का झंडा ट्विट कर के इशारा दे दिया. जिसके फौरन बाद अमेरिका ने इस हमले की आधिकारिक जिम्मेदारी भी ले ली.

ईरान और अमेरिका की दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है. अक्सर दोनों देशों के बीच तनाव की ख़बरें पूरी दुनिया में हलचल पैदा कर देती है. ईरान के सबसे ताक़तवर सैन्य कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी के अमेरिकी हवाई हमले में मौत के बाद से ही दोनों देशों की दुश्मनी अपने चरम पर है. अमरीका के साथ ईरान की दुश्मनी का पहला बीज पड़ा 1953 में तभी पड़ गया था, जब अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख़्तापलट करवा दिया. निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक़ को गद्दी से हटाकर अमेरिका ने सत्ता ईरान के शाह रज़ा पहलवी के हाथ में सौंप दी.

इसकी मुख्य वजह थी, तेल. असल में ईरान के तत्कालीन प्रधानमंत्री की सोच धर्मनिरपेक्ष थी और ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे. वो ईरानी शाह की ताक़त पर भी लगाम लगाना चाहते थे. ये पहला मौक़ा था जब अमेरिका ने शांति के दौर में किसी विदेशी नेता को कुर्सी से हटा दिया था. इस घटना के बाद इस तरह से तख़्तापलट अमेरिका की विदेश नीति का हिस्सा बन गया. 

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