कोरोना वायरस को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दुनिया भर के देशों को कहा है कि वो मेगाट्रायल यानी महा-परीक्षण करें. आपको जानकर खुशी होगी कि ये महा-परीक्षण शुरू भी हो चुका है. इसके लिए WHO ने चार सबसे कारगर दवाइयों का परीक्षण करने को कहा है. इन्हीं दवाइयों से अब तक लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक होते आए हैं. आइए जानते हैं कि ये दवाइयां कौन सी हैं...(फोटोः रॉयटर्स)
WHO का मानना है कि इन्हीं चार दवाइयों में से कोई एक या किसी का मिश्रण लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है. इन चारों से मिलकर बनाई जाने वाली दवा ही कोरोना वायरस को हरा सकती है. (फोटोः रॉयटर्स)
इन चार दवाइयों के साथ दुनिया भर के डॉक्टर दो अन्य दवाइयों पर भी ध्यान दे रहे हैं. इन दोनों दवाइयों को सार्स और मर्स के दौरान बनाया गया था. लेकिन इन दवाओं को वैश्विक स्तर पर अनुमति नहीं मिली थी. (फोटोः रॉयटर्स)
WHO द्वारा बताई गई इन चार दवाओं से होगा ये कि जो लोग बेहद गंभीर हैं, वे जल्द ठीक होंगे. जो स्वास्थ्यकर्मी लगातार कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं, वो सुरक्षित रहेंगे. साथ ही जो लोग हल्के या मध्यम स्तर की बीमारी से ग्रसित हैं वो पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे. (फोटोः रॉयटर्स)
इनमें से पहली दवा है रेमडेसिवीर. इसे जिलीड साइंसेज ने इबोला के इलाज के लिए बनाया था. रेमडेसिवीर किसी भी वायरस के RNA को तोड़ देता है. इससे वायरस इंसान के शरीर में घुसकर नए वायरस पैदा नहीं कर पाता. (फोटोः रॉयटर्स)
अमेरिका के पहले कोविड-19 कोरोना वायरस के मरीज को सबसे पहले रेमडेसिवीर दवा दी गई थी. वह बेहद गंभीर था. लेकिन अगले दिन ही उसकी तबियत ठीक हो गई. इसकी रिपोर्ट द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में भी प्रकाशित हुई है. (फोटोः रॉयटर्स)
इसके बाद दूसरी दवा है क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन. इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी वकालत की थी. कहा था कि ये दवा गेम चेंजर हो सकती है. WHO की वैज्ञानिक समिति ने पहले इस दवा को खारिज कर दिया था. (फोटोः रॉयटर्स)
13 मार्च 2020 को जेनेवा में हुई WHO की वैज्ञानिक समिति की बैठक में क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को महा-परीक्षण पर भेजने की बात कही गई. क्योंकि इस दवा को लेकर वैश्विक स्तर पर मांग आई थी. (फोटोः रॉयटर्स)
क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा से इंसान के शरीर की उस कोशिका का अंदरूनी हिस्सा खत्म हो जाता है, जिसपर वायरस हमला करता है. इससे कोरोना वायरस के बाहरी सतह पर मौजूद प्रोटीन के कांटे बेकार हो जाते हैं. वायरस कमजोर हो जाता है. (फोटोः रॉयटर्स)
तीसरी दवाएं हैं रिटोनावीर/लोपिनावीर. इन्हें कालेट्रा नाम से भी जाना जाता है. वर्ष 2000 में इसका उपयोग अमेरिका में सबसे ज्यादा HIV को रोकने के लिए किया गया था. ये दवा शरीर में बहुत तेजी से घुलती है. (फोटोः एपी)
हल्के स्तर के संक्रमण के लिए रिटोनावीर का उपयोग किया जाता है, जबकि अधिक संक्रमण हो तो लोपिनावीर का उपयोग होता है. ये दवाएं शरीर में वायरस के हमले वाले स्थान पर जाकर वायरस और इंसानी कोशिका के संबंध को तोड़ देती हैं. (फोटोः एपी)
रिटोनावीर/लोपिनावीर का कोरोना वायरस पर पहला ट्रायल चीन के वुहान में ही किया गया था. 199 मरीजों को हर दिन दो बार दो-दो गोलियां दी गईं. इनमें से कई मरीज मारे गए. लेकिन दवा का असर कुछ मरीजों में दिखाई दिया था. इसकी रिपोर्ट 15 मार्च 2020 को भी द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुई थी. (फोटोः रॉयटर्स)
चौथी दवा है रिटोनावीर/लोपिनावीर और इंटरफेरॉन-बीटा का मिश्रण. इस दवा का उपयोग सऊदी अरब में मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) महामारी के दौरान संक्रमित मरीजों पर किया गया था. इससे शरीर के ऊतक यानी टिश्यू को नुकसान पहुंचता है लेकिन वायरस का प्रभाव खत्म होने लगता है. (फोटोः रॉयटर्स)
WHO के कहने पर कई देश जैसे अमेरिका, यूरोप में फ्रांस, स्पेन, अर्जेंटीना, ईरान, दक्षिण अफ्रीका, चीन, दक्षिण कोरिया आदि महा-परीक्षण में जुट गए हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि इन्हीं दवाओं में से कोई दवा कोरोना वायरस का इलाज बनकर सामने आ जाए. (फोटोः रॉयटर्स)