दिल्ली-एनसीआर और मुंबई जैसे बड़े शहरों के लोग साफ हवा के लिए तरस रहे हैं. साल के कई महीने लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. डॉक्टर लोगों को घरों में एयर प्यूरिफायर लगाने की सलाह दे रहे हैं, तो वहीं कई एक्सपर्ट कुछ हफ्तों के लिए शहर छोड़ने की चेतावनी दे रहे हैं. अब हमारे मेट्रो सिटीज का ये हाल हो गया है कि साफ हवा एक महंगी 'लग्जरी एमेनिटी' बन चुकी है.
इस गंभीर संकट के बीच, भारत के रियल एस्टेट सेक्टर में एक बड़ा बदलाव आया है. अब बिल्डर्स सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि 'सांस लेने लायक हवा' बेच रहे हैं. देश के कई बड़े शहरों में ऐसे प्रीमियम और अल्ट्रा-लग्जरी हाउसिंग प्रोजेक्ट्स आ रहे हैं, जिनके लिए दावा किया जा रहा है कि उनके घरों के अंदर की हवा AQI के मामले में पहाड़ों जैसी साफ और ताजी होगी.
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पहले लग्जरी घरों की पहचान महंगे टाइल्स, स्विमिंग पूल या डिजाइनर फिटिंग हुआ करती थी, लेकिन अब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) नया बेंचमार्क बन गया है. प्रदूषण की वजह से घर के अंदर भी कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर खतरनाक ढंग से बढ़ जाता है, जिससे सुबह थकान और सिरदर्द की शिकायत आम हो जाती है. इसी चुनौती से निपटने के लिए, खरीदार अब ऐसे वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन किए गए घरों की तलाश कर रहे हैं जो न केवल धूल और PM2.5 को रोकें, बल्कि नियंत्रित वेंटिलेशन भी सुनिश्चित करें.
गुरुग्राम, बेंगलुरु और नोएडा जैसे शहरों में कई बिल्डर ऐसे प्रोजेक्ट लेकर आ रहे हैं, जिसके लिए वो दावा कर रहे हैं कि उनके घरों में लोगों को सांस लेने के लिए साफ हवा मिलेगी. नोएडा के सेक्टर 168 में निंबस रियल्टी निंबस द अरिस्टा लक्स नाम का एक प्रोजेक्ट लेकर आ रहा है, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है उनके घरों के अंदर साफ हवा मिलेगी. कंपनी के सीईओ साहिल अग्रवाल कहते हैं- 'हमारे इस प्रोजेक्ट में कोशिश की गई है कि लोगों को पहाड़ों जैसी साफ हवा का अनुभव मिले. हम ऐसी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे घर के अंदर हवा हमेशा ताजी बनी रहे'.
कंपनी का दावा है कि आपके घर में जो हवा आती है, उसे पहले खास तकनीक से साफ किया जाता है. यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी अशुद्ध चीज को धोकर अंदर लाया जाए.
कई चरणों में सफाई: घर के बाहर की हवा को अंदर आने से पहले कई लेवल पर फिल्टर किया जाता है.
HEPA फिल्टर की सुरक्षा: इसमें HEPA फिल्टर की खास परतें लगी होती हैं. ये फिल्टर हवा से धूल और प्रदूषण के सबसे छोटे कणों (PM2.5) को भी पूरी तरह हटा देते हैं, जिससे आपके कमरों में हवा एकदम स्वच्छ और ताजी हो जाती है.
सबसे बड़ी बात, यह सिस्टम केवल प्रदूषण ही नहीं हटाता, बल्कि ट्रैफिक के धुएं, नालों या दूर कचरे के ढेर से आने वाली बुरी और असहज गंध को भी रोक देता है.
ये 'क्लीन एयर होम्स' केवल एक एयर प्यूरिफायर लगाने से अलग होते हैं. बिल्डर्स पूरे प्रोजेक्ट के डिजाइन और इन्फ्रास्ट्रक्चर में बदलाव कर रहे हैं. कई डेवलपर्स प्रोजेक्ट के निचले स्तरों को वाहन-मुक्त रखते हैं और ग्राउंड लेवल पर हरियाली विकसित करते हैं. यह सुनिश्चित करता है कि घरों के आस-पास का वातावरण गाड़ी के धुएं से मुक्त रहे.
बेंगलुरु के एक प्रोजेक्ट में हजारों पौधों की विशाल बायो वॉल बनाई गई है, जो प्राकृतिक रूप से हवा को फिल्टर करती है और प्रोजेक्ट के कार्बन फुटप्रिंट को कम करती है. ज्यादातर प्रीमियम प्रोजेक्ट्स अब IGBC (इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल) या GRIHA द्वारा प्रमाणित होते हैं, जो इनडोर एयर क्वालिटी मानकों को सुनिश्चित करता है. आधुनिक डिज़ाइन में 'Wind Corridors' और स्मार्ट वेंटिलेशन सिस्टम शामिल किए जा रहे हैं ताकि बाहर की साफ हवा को नियंत्रित तरीके से फिल्टर करके घर के अंदर लाया जा सके और CO₂ का स्तर सामान्य बना रहे.
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एक समय था जब लोगों की बुनियादी जरूरतें बस एक अच्छा घर, पानी और बिजली हुआ करती थीं. लेकिन आज हकीकत यह है कि 'साफ हवा' भी एक बुनियादी जरूरत बन चुकी है, जिसके लिए अब लोगों को मजबूरी में पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
पहले एयर प्यूरीफायर बेचने वाली कंपनियां साफ हवा की कमी का फायदा उठाकर मुनाफा कमा रही थीं, और अब इसी कमी ने रियल एस्टेट में एक नया ट्रेंड खड़ा कर दिया है. लोग अब करोड़ों रुपये के घर केवल इसलिए खरीदने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें यकीन होता जा रहा है कि शहर की हवा का प्राकृतिक रूप से साफ होना अब लगभग असंभव है.
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स्मिता चंद