मेट्रो सिटीज में लोगों पर महंगे किराए की मार, तोड़ी मिडिल क्लास की कमर

बड़े शहरों में लोगों की सैलरी का बड़ा हिस्सा किराया देने में जा रहा है, जिसकी वजह से लोगों को अपनी जरूरत की चीजों में भी कटौती करनी पड़ रही है. हालात इस तरह के हो गए हैं कि लोगों को अब छोटे घरों में शिफ्ट होना पड़ रहा है.

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बढ़ते किराए से बेहाल महानगरों के लोग (Photo-AI Genrated) बढ़ते किराए से बेहाल महानगरों के लोग (Photo-AI Genrated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:54 PM IST

भारत के बड़े शहरों में रहने का सपना अब ऊंचे किराए की वजह से एक चुनौती बन गया है. मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद जैसे महानगरों में, 2020 से 2025 के बीच किराया 35% से 80% तक बढ़ गया है. यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि लाखों लोगों के जीवन में आया एक बड़ा बदलाव है. ऊंचे किराए का सीधा असर लोगों की बचत, खर्च और रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ रहा है.

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लोग न सिर्फ वित्तीय दबाव में हैं, बल्कि उनकी दैनिक दिनचर्या, सामाजिक जीवन और यहां तक कि करियर के फैसले भी प्रभावित हो रहे हैं. बड़े शहरों में औसतन किराया सैलरी का 40-50% हिस्सा खा जाता है, जो मिडिल क्लास लोगों के लिए बोझ बन चुका है.

उदाहरण के लिए, मुंबई में प्रति वर्ग फुट मासिक किराया राष्ट्रीय औसत से दोगुना है, जो लगभग 96 रुपये प्रति वर्ग फुट है. इससे लोग अपने दूसरे खर्चों में कटौती कर रहे हैं. बाहर खाना, फिल्म देखना, ट्रैवलिंग या शॉपिंग जैसी चीजें अब लग्जरी बन गई हैं.  

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आमदनी का बड़ा हिस्सा किराए में 

एक सर्वे के अनुसार, किराएदारों को अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा आवास पर खर्च करने से बचत और निवेश में कमी आ रही है. सोशल मीडिया पर अक्सर लोग अपनी आपबीती बताते नजर आते हैं. कुछ दिन पहले ही बेंगलुरु के शख्स ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बताया था कि 2bhk फ्लैट के लिए उससे 70 हजार किराया और 5 लाख रुपये का डिपोजिट मांगा जा रहा है.

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बेंगलुरु जैसे शहरों में आईटी ग्रोथ से किराया बढ़ा है, लेकिन इससे लोग छोटे स्पेस में सिमटकर रह रहे हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता गिर रही है. किराएदार अब मकान मालिकों से मनमाना किराया वसूल रहे हैं.  ऊंचे किराए से बचने के लिए लोग छोटे फ्लैट्स या शेयरिंग ऑप्शन चुन रहे हैं. हालत ऐसे हो गए हैं कि लोग सेंट्रल लोकेशंस छोड़कर बाहरी इलाकों में जा रहे हैं, जहां ट्रैवल टाइम बढ़ जाता है, दैनिक जीवन भी इस मार से अछूता नहीं है. ज्यादा किराए ने लोगों को अधिक किफायती बनाया है, लेकिन साथ ही तनाव बढ़ाया है,. रेडिट यूजर्स ने शेयर किया कि आईटी जॉब्स में असुरक्षा के बीच ऊंचा किराया बचत को खत्म कर देता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, कुछ लोग वर्क फ्रॉम होम का फायदा उठाकर पैरेंट्स के घर रह रहे हैं. 

लोग दूसरे शहरों में शिफ्ट होने को मजबूर

एक बड़ा ट्रेंड है माइग्रेशन टू टियर-2 सिटीज, ऊंचे किराए से थककर लोग मैसूर, कोयंबटूर, इंदौर और पुणे जैसे शहरों में जा रहे हैं, जहां जीवन सस्ता है और गुणवत्ता बेहतर. ये शहर न केवल किफायती हैं, बल्कि क्लीन एयर, कम ट्रैफिक और ग्रोथ देते हैं. रेडिट पर यूजर्स ने सुझाव दिया कि टियर-2 शहरों में शिफ्टिंग से जीवन बेहतर हो सकता है, क्योंकि बड़े शहरों का 'बेहतर जीवन' का मिथक टूट रहा है, हालांकि, यह बदलाव करियर और सोशल नेटवर्क को प्रभावित करता है, लेकिन बचत और शांति के लिए लोग इसे चुन रहे हैं.

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ऊंचे किराए की मार ने बड़े शहरों में जीवनशैली को अधिक व्यावहारिक लेकिन तनावपूर्ण बना दिया है. आर्थिक विकास पर असर पड़ रहा है. सरकार को रेंट कंट्रोल लॉज मजबूत करने, नई सप्लाई बढ़ाने और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने की जरूरत है. 

 

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