5 लाख हाउसिंग प्रोजेक्ट अटके, क्या रियल एस्टेट की मंदी ने छीन लिए घर खरीदारों के सपने?

भारत में रियल एस्टेट सेक्टर की मंदी बड़ी समस्या है, जिसका सीधा असर लाखों आम घर खरीदारों पर पड़ रहा है. उनकी मेहनत की कमाई अधूरी परियोजनाओं में फंसी हुई है, और वे आर्थिक और मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं.

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लाखों लोगों के घर का सपना है अधूरा (Photo-ITG) लाखों लोगों के घर का सपना है अधूरा (Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 10:57 AM IST

भारत का रियल एस्टेट सेक्टर पिछले कुछ समय से मुश्किलों का सामना कर रहा है. खासकर, टियर-1 और टियर-2 शहरों में, जहां पांच लाख से ज़्यादा हाउसिंग प्रोजेक्ट अटके हैं. इन रुकी हुई परियोजनाओं का सीधा असर न केवल बिल्डरों और निवेशकों पर पड़ रहा है, बल्कि उन लाखों आम घर खरीदारों पर भी पड़ रहा है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन भर का पैसा इन प्रोजेक्ट्स में लगाया है.

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रियल एस्टेट सेक्टर की मौजूदा मंदी के पीछे कई कारण हैं. सबसे प्रमुख कारणों में से एक आर्थिक सुस्ती और लिक्विडिटी क्रंच है. बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा लोन देने में सख्त रुख अपनाने से बिल्डरों के लिए प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए फंड जुटाना मुश्किल हो गया है. इसके अलावा, सरकारी नीतियों में बदलाव, जैसे कि रेरा (RERA) कानून का लागू होना, जिसने पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाया है, ने भी कुछ हद तक बिल्डरों के लिए काम को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है.

रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (RERA), का उद्देश्य घर खरीदारों के हितों की रक्षा करना था, लेकिन इसने कई बिल्डरों को परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए दबाव में डाल दिया. जो बिल्डर पहले से ही वित्तीय दबाव में थे, वे RERA के सख्त नियमों का पालन नहीं कर पाए, जिससे कई प्रोजेक्ट्स अधर में लटक गए.

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आम खरीदार हो रहे हैं सबसे ज्यादा परेशान

रुकी हुई परियोजनाओं का सबसे बड़ा खामियाजा आम घर खरीदारों को भुगतना पड़ रहा है. इन खरीदारों ने अक्सर अपनी जीवन भर की कमाई को इन घरों में निवेश किया है. इनमें से कई लोगों ने तो घर खरीदने के लिए बैंक से होम लोन भी लिया है और अब वे होम लोन की ईएमआई (EMI) और किराए दोनों का बोझ एक साथ उठा रहे हैं. यह उनके वित्तीय और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है.

एक आम घर खरीदार की दुर्दशा को समझना जरूरी है. उन्होंने एक घर का सपना देखा, प्रोजेक्ट में निवेश किया, और सालों तक इंतज़ार किया. लेकिन जब प्रोजेक्ट रुक गया, तो उनके सपने टूट गए. वे बिल्डर से संपर्क करते हैं, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलता. बैंकों से भी कोई राहत नहीं मिलती, क्योंकि उन्हें EMI का भुगतान करना ही होता है. इस स्थिति में, वे कानूनी लड़ाई लड़ने को मजबूर हो जाते हैं, जिसमें समय और पैसा दोनों लगता है.

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इस गंभीर समस्या को हल करने के लिए सरकार और नियामक निकायों को महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है. RERA ने पारदर्शिता तो लाई है, लेकिन यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एक तंत्र हो. केंद्र सरकार ने 2019 में रुकी हुई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए SMILE (Special Window for Affordable and Mid-Income Housing) फंड की घोषणा की थी. इस फंड का मकसद उन रुके हुए प्रोजेक्ट्स की मदद करना था, जिन्हें पूरा किया जा सकता है.

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हालांकि, इस फंड का क्रियान्वयन अभी भी धीमी गति से हो रहा है और सभी पात्र परियोजनाओं तक इसकी पहुंच सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है. इसके अलावा, राज्य सरकारों को भी RERA के नियमों को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने और अटकी हुई परियोजनाओं की निगरानी करने की आवश्यकता है. बिल्डरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना और उन्हें जवाबदेह ठहराना भी ज़रूरी है.

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समाधान और आगे की राह

बिल्डरों और घर खरीदारों को मिलकर एक समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए, जिसमें अदालतों के बाहर समझौते करना शामिल हो सकता है.

रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता और विश्वास को बहाल करने के लिए नियमों को और सख्त बनाना और बिल्डरों के लिए वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देना आवश्यक है. सरकार को रियल एस्टेट सेक्टर में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतियों को उदार बनाना चाहिए, जिससे परियोजनाओं को पूरा करने के लिए आवश्यक पूंजी मिल सके.

भारत में रियल एस्टेट सेक्टर की मंदी एक जटिल समस्या है, जिसका सीधा असर लाखों आम घर खरीदारों पर पड़ रहा है. उनकी मेहनत की कमाई अधूरी परियोजनाओं में फंसी हुई है, और वे वित्तीय और मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं. 

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