अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने आखिरकार भारत को मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) की सप्लाई के लिए मना लिया है. दूसरी तरफ चीन और अमेरिका के बीच तनातनी बढ़ रही है. इस बीच यह जानना बहुत दिलचस्प है कि मलेरिया की इस दवा के लिए अमेरिका को काफी हद तक चीन पर निर्भर रहना होगा.
भारत मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा उत्पादक है. दुनिया में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा के कुल उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा भारत में होता है. भारत सरकार ने मंगलवार को इसके अमेरिका में निर्यात को मंजूरी दे दी है. भारत में हर महीने करीब 40 टन HCQ का उत्पादन होता है, यानी 200 एमजी की 20 करोड़ टेबलेट.
अमेरिका का एक वर्ग कोरोना के प्रसार में चीनी साजिश तक का आरोप लगा रहा है और दोनों देशों के बीच हाल में तनातनी भी बढ़ी है. चीन का कहना है कि वह कोरोना से निपट रहा है, लेकिन अमेरिकी विमान दक्षिण चीन सागर में उसकी सीमा का अतिक्रमण कर रहे हैं. इस माहौल में यह बात दिलचस्प है कि मलेरिया की दवा के लिए अमेरिका को काफी हद तक चीन पर निर्भर रहना होगा.
अमेरिका क्यों हो गया है इस दवा का दीवाना: इस दवा का मूल रूप से इस्तेमाल मलेरिया, रूमटॉइड आर्थराइटिस जिसे जोड़ों का गठिया कहते हैं और एक प्रकार के चर्मरोग ल्यूपस में होता है. अमेरिका में मलेरिया नहीं देखने को मिलता है, इसलिए कभी भी इस दवा के उत्पादन की जरूरत नहीं पड़ी.
वैसे भी भारत दुनिया का सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है और अमेरिका में दवाओं का बड़ा हिस्सा भारत से ही जाता है. मलेरिया
की मूल और सबसे पुरानी दवा क्लोरोक्वीन है, लेकिन इसमें थोड़े सुधार के
साथ हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन तैयार किया गया. इसका साइड इफेक्ट कम होता है. असल बात यह है कि इस दवा की एंटी वायरल विशेषताओं को देखते हुए इसे कोरोनावायरस के संक्रमण से उपचार में भी इस्तेमाल किया जाने लगा. इसलिए अमेरिका में इसकी मांग काफी बढ़ गई है.
ये है इसका चीन कनेक्शन: असल में भारत में इसका कच्चा माल जिसे एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) कहते हैं, चीन से आता है. भारत में उत्पादक कंपनियां इस कच्चे माल का करीब 70 फीसदी हिस्सा चीन से मंगाती है. चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से इस कच्चे माल की आपूर्ति में व्यवधान आ गया था, लेकिन अब यह फिर से शुरू हो गया है.
यानी इस दवा का उत्पादन काफी हद तक चीन पर निर्भर है. चीन से कच्चा माल
आएगा तो ही भारत इसका उत्पादन करेगा और फिर यह अमेरिका को निर्यात करेगा.
अभी काफी माल भारत में तैयार है. लेकिन आगे चलकर इसका उत्पादन चीनी कच्चे
माल पर निर्भर करेगा. इसी वजह से इस साल फरवरी में इस ड्रग के चीन से आने वाले कच्चे माल की कीमत करीब तीन गुना बढ़ गई.
जानकारों का कहना है कि भारत को हर साल एचसीक्यू के करीब 2.5 करोड़ टेबलेट की ही जरूरत होती है, यानी इसका उत्पादन भारत की अपनी जरूरतों से कई गुना ज्यादा निर्यात के लिए ही होता है. अब इसमें अगर कोविड 19 से निपटने और उपचार में इस्तेमाल को भी जोड़ दिया जाए तो भी भारत के पास उत्पादन क्षमता बहुत ज्यादा है.