भारत पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ का प्रेशर बनाया तो चीन की नजरें भारत के विशाल मार्केट पर गड़ गईं. चीन ने भारत को जीरो टैरिफ वाले एक विशाल मार्केट में शामिल होने का न्योता दिया है और इसके पक्ष में लॉबिंग की है. लेकिन चीन का ये लुभावना ऑफर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से भी बड़ी टेंशन साबित हो सकती है.
भारत का विशाल बाजार, 1.4 अरब की आबादी, मध्य वर्ग की दमदार क्रय शक्ति इसे दुनिया के किसी भी महत्वाकांक्षी देश के लिए आकर्षक बाजार बनाती है. भारत को शामिल किए बिना किसी भी महाशक्ति की आर्थिक ताकत बुलंदी हासिल नहीं कर सकती है. इसलिए अमेरिका से टैरिफ को लेकर तनाव बढ़ने पर चीन ने भारत को 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) में शामिल होने का ऑफर एक बार फिर दिया है.
चीन 2019 से ही भारत को RCEP में शामिल करवाने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए चीन ने भारत को एक विशाल मार्केट में जीरो टैरिफ का लालच दिया है. लेकिन भारत ने चीनी महत्वाकांक्षाओं को पहचानते हुए अब तक इस संगठन में शामिल होने से इनकार किया है.
क्या है RCEP
RCEP यानी कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी 15 देशों के बीच का मुक्त व्यापार समझौता है. इसमें 10 आसियान देश और उनके FTA भागीदार- चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं. RCEP अभी विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है, जो वैश्विक GDP का लगभग 30% और लगभग 3 अरब लोगों को कवर करता है.
इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को आसान, सहज, सरल बनाना है और सभी 15 देशों के मार्केट को इंटीग्रेट करना है. RCEP समझौता नवंबर 2020 में अमल में आया था और 1 जनवरी 2022 से प्रभावी है.
RCEP का मुख्य उद्देश्य इन सदस्य देशों के बीच टैरिफ और गैर-टैरिफ अवरोधों को कम करना, समाप्त करना और निवेश और व्यापार को सुविधाजनक बनाना है.
ग्लोबल टाइम्स ने क्या लिखा है
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अमेरिका की ओर से भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ बढ़ाये जाने के बाद निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार पर भारत की भारी निर्भरता एक कमजोरी बनती जा रही है. अखबार लिखता है कि ऐसी स्थिति में एशियाई बाजारों की ओर भारत के रणनीतिक झुकाव की संभावना न केवल इन जोखिमों को कम करने में मदद कर सकती है, बल्कि भारत को अधिक गतिशीलता और मार्केट डाइवर्सीफिकेशन के अवसर भी प्रदान कर सकती है.
ग्लोबल टाइमस के अनुसार ऐसी परिस्थितियों में भारत के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश अनिवार्य हो गई है. इस बीच विशाल एशियाई बाजार और दोहन का इंतजार कर रही क्षमताएं भारत के लिए एक अधिक स्थिर विकास पथ का वादा करता है.
अखबार ने लिखा, "एशियाई बाजारों की आर्थिक और व्यापारिक क्षमताएं तो जाहिर हैं, और अगर भारत को एशिया के साथ अपने व्यापार में वास्तविक बदलाव लाना है, तो RCEP में शामिल होना निस्संदेह एक महत्वपूर्ण कदम है."
RCEP में जीरो टैरिफ का ऑफर
इस अखबार का मानना है कि RCEP का प्रभाव अगले 10 से 15 वर्षों तक लगातार बढ़ता ही जाएगा और तब तक समझौते के अंतर्गत 90 प्रतिशत सामानों पर टैरिफ की दर शून्य हो जाएगी. बाजार की क्षमता और व्यापार संभावनाओं को देखते हुए यह क्षेत्र भारत को अमेरिकी व्यापार की अस्थिरता के खिलाफ एक अत्यंत आवश्यक सुरक्षा प्रदान कर सकता है.
आगे अखबार ने भारत के आर्थिक नीति-निर्माताओं को सलाह देते हुए कहा है कि भारत को एशिया की ओर व्यापार बढ़ाने के लिए सबसे पहले एशियाई देशों में बाजार की मांग और उपभोग प्राथमिकताओं पर रिसर्च करना होगा. इसके अलावा अनुसंधान एवं विकास तथा प्रासंगिक उत्पादों के उत्पादन में निवेश बढ़ाना होगा. साथ ही भारत को एशियाई देशों के साथ औद्योगिक सहयोग और आदान-प्रदान को मज़बूत करना होगा. जिससे भारत की प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता बढ़ेगी.
भारत की क्या है चिंता
चीन ने भारत को ये ऑफर नया नहीं दिया है. ये ऑफर भारत के पास 2020 से ही है, बावजूद भारत RCEP में शामिल नहीं हो रहा है. RCEP को लेकर भारत की गंभीर चिंताएं और व्यापक रिजर्वेशन हैं.
भारत ने शुरू में ही कहा था कि RCEP अपने मूल उद्देश्यों को प्रतिबिंबित नहीं करता एवं इसके परिणाम न तो उचित हैं और न ही संतुलित.
दरअसल भारत की सबसे बड़ी चिंता अपने घरेलू उद्योगों को लेकर है. यदि चीन समेत एशिया के कुछ दूसरे देशों के बेहद सस्ते प्रोडक्ट को इंडियन मार्केट में आसान एंट्री मिल जाती है तो इससे भारतीय घरेलू उद्योग पूर्ण रूप से तबाह हो सकता है. क्योंकि सस्ते विदेशी सामानों के आगे भारत के अपेक्षाकृत महंगे प्रोडक्ट टिक नहीं पाएंगे.
चीन को बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन में पहले ही कुशलता हासिल है. ऐसे में भारत के लिए इस प्राइस वॉर का मुकाबला करना आसान नहीं होगा. इससे बचने के लिए भारत ऐसे मैकेनिज्म की मांग कर रहा था जो उसे ऐसे प्रोडक्ट पर टैरिफ बढ़ाने की अनुमति देगा जहां आयात एक निश्चित सीमा को पार कर चुका हो. लेकिन इस पर सहमति नहीं बन पाई.
भारत का चीन के साथ पहले से ही व्यापार घाटा बहुत ज्यादा है. 2024-25 वित्तीय वर्ष में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 99.2 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. भारत को डर है कि RCEP में शामिल होने से भारत में सस्ते चीनी सामानों की बाढ़ आ सकती है जिससे उसका व्यापार घाटा और बढ़ेगा.
दरअसल RCEP का आर्थिक प्रभाव भारत के बिना कम हो जाता है क्योंकि भारत एक बड़ा और तेजी से बढ़ता बाजार है.चीन के लिए RCEP आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उसकी क्षेत्रीय प्रभुत्व और BRI को बढ़ावा देता है.
भारत ने व्यापार और अतंरराष्ट्रीय संबंधों में अपने राष्ट्रीय हितों और आत्मनिर्भर भारत की नीति को प्राथमिकता दी है ताकि वह वैश्विक सप्लाई चेन में स्वायत्तता को बनाए रखे और चीन के साथ किसी भी प्रतिकूल स्थिति में दृढ़ता दिखा सके.
aajtak.in