रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) भारत आ रहे हैं, इसकी चर्चा दुनियाभर में जोरों पर है. भारत और रूस की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है. अब पुतिन और पीएम मोदी के बीच क्या बातचीत होती है, इसपर पड़ोसी देश पाकिस्तान से लेकर सभी छोटे बड़े देशों की नजरें होंगी. खासकर अमेरिका देख रहा होगा कि दोनों देश क्या-क्या फैसले लेते हैं.
दरअसल, भारत और रूस के बीच दोस्ती के साथ-साथ व्यापार भी बढ़ रहा है. पिछले 5 साल में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 5 गुना से अधिक बढ़ा है, जो 2021 में 13 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 68 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है.
इसलिए भारत और रूस के बीच ऐसी दोस्ती है. जिसे अमेरिका समेत कई देश पचा नहीं पा रहे हैं. इसी कड़ी में भारत पर अमेरिका ने 50 फीसदी टैरिफ थोप दिया. रूसी तेल खरीदना तो केवल बहाना था, असल में अमेरिका भारत-रूस के बीच दोस्ती में दरार देखना चाहता है. लेकिन ऐसा संभव नहीं है. क्योंकि दोनों की दोस्ती दशकों पुरानी है, और दोनों देश एक-दूसरे के महत्व को समझता है.
दर्जनों बार रूस ने सच्ची दोस्ती का परिचय दिया है, जब-जब अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत को रूस की मदद चाहिए थी, रूस ने खुलकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का साथ दिया. पिछले 7 दशक में कई ऐसे किस्से हैं, जो दिखाता है कि दोनों में दोस्ती मजबूत है, और आज भी दोनों देशों का एक ही राग है... कोई कुछ करे या कहे हम ये दोस्ती नहीं तोड़ेंगे. 1947–48 से भारत और सोवियत संघ (USSR) के बीच गहरे राजनीतिक संबंध बनना शुरू हुए.
भारत और रूस के संबंध केवल राजनीतिक या रक्षा लक्ष्यों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनकी आर्थिक साझेदारी कई दशकों से खास मजबूती दिखाती रही है. 1950 के दशक से लेकर आज तक दोनों देशों ने संकट, युद्ध, आर्थिक अस्थिरता और वैश्विक दबावों के बीच एक-दूसरे का भरोसेमंद सहयोगी बनकर साथ निभाया है. भारत–रूस की आर्थिक दोस्ती के 10 प्रमुख सबूत आज आपको बताते हैं.
1. रुपये-रूबल में ट्रेड (डॉलर की सीधी चोट)
साल 1953 में भारत और सोवियत संघ के बीच 'Indo–Soviet Trade Agreement' पर हस्ताक्षर हुए. जिसके तहत दोनों देश रुपये और रूबल में व्यापार करने लगे. दोनों देशों को व्यापार बढ़ाने के लिए डॉलर पर निर्भरता कम करना था, क्योंकि उस समय दोनों देशों के पास पर्याप्त डॉलर रिजर्व नहीं थे. इस व्यवस्था ने भारत को मशीनरी, विमान, औद्योगिक प्रौद्योगिकी और हथियार उपलब्ध कराए, जबकि रूस भारतीय दवाइयों, चाय और इंजीनियरिंग उत्पादों का प्रमुख खरीदार रहा. रुपये-रूबल में ट्रेड के लिए 1950 से 1980 का समय एक तरह से स्वर्णकाल था. 1991 में USSR टूटने के बाद यह प्रणाली लगभग खत्म हो गई. लेकिन 2022 के बाद ( रूस–यूक्रेन युद्ध) फिर से रुपये और रूबल में पेमेंट को लेकर चर्चा बढ़ गई है.
2. रूस की मदद से भिलाई स्टील प्लांट की शुरुआत (भारत की औद्योगिक क्रांति)
साल 1955 में स्थापित भिलाई स्टील प्लांट (Bhilai Steel Plant) भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट्स में से है. यह पूरी तरह सोवियत तकनीक और इंजीनियरिंग से तैयार हुआ. इस प्लांट ने भारत के बुनियादी ढांचे, रेल ट्रैक, भारी मशीनरी और निर्माण क्षेत्र के विकास को नई ऊंचाइयां दीं.
3. रूस-भारत फार्मा सहयोग
साल 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में मेडिसीन की भारी कमी थी. दोस्त को मदद की जरूरत थी और भारतीय फार्मा उद्योग ने रूस की खूब मदद की. जिससे सस्ती, बेहतर क्वालिटी वाली दवाओं ने भारत को रूसी बाजार में सबसे भरोसेमंद हेल्थ पार्टनर बना दिया. आज भी रूस में भारतीय जेनेरिक दवाइयों की बड़ी मांग है.
4. सस्ते रूसी तेल की आपूर्ति (नई सदी की साझेदारी)
महज 2 से 3 साल पुरानी बात है. यूक्रेन युद्ध के बाद जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें तेजी से बढ़ीं तो रूस ने भारत को तगड़ा ऑफर दे दिया. एक तरह से आर्थिक सुरक्षा कवच बनकर सामने आया. रूस ने भारत को भारी छूट पर कच्चा तेल बेचा, जिससे घरेलू ईंधन बाजार स्थिर रहा. यह आधुनिक दौर की आर्थिक दोस्ती का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है.
5. ONGC–Sakhalin तेल परियोजना डील (ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में गठजोड़)
रूस की Sakhalin-1 परियोजना में ONGC Videsh के निवेश ने भारत को लंबी अवधि के ऊर्जा सुरक्षा दी. इस प्रोजेक्ट से भारत को लंबी अवधि तक स्थिर और सस्ते में कच्चा तेल और गैस मिलती रही, जिससे भारत का आयात बिल काबू में रहा.
6. कुडनकुलम परमाणु प्लांट (भारत-रूत दोस्ती की ऐतिहासिक साझेदारी)
तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु प्लांट (Kudankulam Nuclear Power Plant) रूस की हाईटेक परमाणु टेक्नोलॉजी से संचालित है. यह भारत का सबसे बड़ा परमाणु बिजली घर है, जो हजारों मेगावॉट स्वच्छ और स्थिर बिजली उपलब्ध कराता है. यह भारत–रूस ऊर्जा साझेदारी का प्रतीक है.
7. ब्रह्मोस मिसाइल ज्वाइंट वेंचर (आर्थिक और रक्षा मोर्चे पर सफलता)
ब्रह्मोस को केवल रक्षा परियोजना मानना गलत होगा. यह एक भारत–रूस संयुक्त कंपनी है, जिसमें आर्थिक निवेश, तकनीकी लाभ और संभावित निर्यात कमाई सभी शामिल हैं. भविष्य में ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात दोनों देशों के लिए अरबों डॉलर का राजस्व ला सकता है.
8. खाद और कोयला व्यापार (कृषि सेक्टर में भी गठजोड़)
भारत रूस से बड़े पैमाने पर पोटाश, यूरिया और फॉस्फेट उर्वरक आयात करता है. इससे भारत की खाद सब्सिडी प्रणाली और किसानों की लागत पर सीधा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हाल के वर्षों में रूस भारत का सबसे बड़ा उर्वरक आपूर्तिकर्ता बना है।
9. स्पुतनिक-V वैक्सीन डील (हेल्थ सेक्टर में वैश्विक साझेदारी)
कोविड के समय रूस की Sputnik-V वैक्सीन को भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादन की अनुमति दी गई. भारतीय फार्मा कंपनियों ने न केवल देश की जरूरतें पूरी कीं, बल्कि रूस की वैक्सीन को दुनिया के तमाम देशों तक पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह हेल्थ डिप्लोमेसी का एक मजबूत उदाहरण था.
10. INSTC और आर्कटिक सहयोग: भविष्य की आर्थिक धुरी
भारत–रूस मिलकर International North-South Transport Corridor (INSTC) पर काम कर रहे हैं, जिससे भारत से रूस तक माल भेजने का समय 40 दिनों से घटकर महज 14 दिन हो जाएगा. इसके अलावा आर्कटिक में ऊर्जा, खनन और शिपिंग पर सहयोग से आने वाले दिनों में आर्थिक साझेदारी को नई दिशा देगा.
अमित कुमार दुबे