Bihar Election 2025: सीवान में कैसे चला शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब का जादू? जानें पूरी इनसाइड स्टोरी

सीवान में ओसामा शहाब की जीत में उनके पिता शहाबुद्दीन की पुरानी पकड़, स्थानीय जातीय समीकरण और RJD की रणनीति का बड़ा असर रहा. रघुनाथपुर के चुनाव में इन्हीं वजहों से ओसामा को मजबूत समर्थन और शानदार जीत मिली.

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ओसामा की जीत सीवान की सियासत का नया अध्याय है (फोटो-ITG) ओसामा की जीत सीवान की सियासत का नया अध्याय है (फोटो-ITG)

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:16 AM IST

Siwan Election Osama Shahab Victory: बिहार की राजनीति में सीवान हमेशा से सत्ता, शक्ति और संगठन का प्रतीक रहा है. साल 2025 के विधानसभा चुनाव में वहां पुराना रंग एक बार फिर देखने को मिला, जब मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब ने रघुनाथपुर सीट से चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की. 26 राउंड की गिनती के बाद आरजेडी के ओसामा शहाब ने 88278 वोटों के साथ जनता दल (यूनाइटेड) के विकास कुमार सिंह को 9248 वोटों के अंतर से हराया है. विकास कुमार को कुल 79030 वोट मिले. क्या यह सिर्फ पिता की विरासत का असर था या फिर ज़मीनी समीकरणों का बारीकी से बुना गया राजनीतिक गणित? अब ओसामा शहाब को सीवान का नया सुल्तान कहा जा रहा है.

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बाहुबली शहाबुद्दीन की विरासत
सीवान का नाम आते ही सबसे पहले जिस नाम की चर्चा होती है, वह मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम. RJD के कद्दावर और विवादित नेता के रूप में वह दशकों तक सीवान की सियासत और गद्दी पर राज करते रहे. उनके खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन इसके बावजूद उनका जनाधार कम नहीं हुआ. यही कारण था कि प्रदेश में नेतृत्व बदला, पार्टिया. बदलीं, लेकिन सीवान की धरती पर शहाबुद्दीन फैक्टर कभी कमजोर नहीं पड़ा. ओसामा इसी राजनीतिक विरासत के वारिस के रूप में उभरते दिखाई दिए. पिता की तरह मजबूत पकड़, वही सामाजिक नेटवर्क और वही प्रभाव उनके चुनाव अभियान की रीढ़ बन गया.

RJD का बड़ा दांव
राष्ट्रीय जनता दल ने जब रघुनाथपुर से ओसामा शहाब को टिकट दिया, तब यह केवल उम्मीदवार चुनने का फैसला नहीं था. बल्कि यह एक सोची-समझी राजनीति थी. आरजेडी जानती थी कि शहाबुद्दीन का परिवार अभी भी सीवान में बड़ा वोट-बेस नियंत्रित करता है. यही दांव चुनाव में कारगर साबित हुआ. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी, JDU और अन्य दलों ने ओसामा को टिकट दिए जाने के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी थी. विपक्ष ने शहाबुद्दीन की आपराधिक पृष्ठभूमि का मुद्दा उठाते हुए RJD की नैतिकता पर सवाल खड़े किए थे. लेकिन प्रचार-प्रसार, जनसभाओं और चुनाव इस विरोध का असर नहीं दिखा.

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ओसामा का साइलेंट कैंपेन
चुनावी रैलियों में ओसामा शहाब बहुत अधिक भाषण देते नहीं दिखे. न बड़े वादे किए और न ही तेज तर्रार बयानबाज़ी. लेकिन उनका नाम ही नारा बन गया. स्थानीय गांवों, पंचायतों और मोहल्लों में RJD के कार्यकर्ता घर-घर जाकर यह संदेश दे रहे थे कि शहाबुद्दीन साहब के बेटे को जिताना है. यानी उम्मीदवार की व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा, पारिवारिक पहचान चर्चा में रही. कई रिपोर्टों ने इस अभियान को साइलेंट लेकिन असरदार बताया.

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जातीय वोटों का ध्रुवीकरण
सीवान की राजनीति जातीय आधार पर हमेशा से संगठित रही है. यादव, अतिपिछड़े, अल्पसंख्यक और कुछ अन्य समूह RJD का मजबूत वोट-बेस माने जाते हैं. ओसामा के चुनाव मैदान में आ जाने से उनका वोट-बेस और भी एकजुट हुआ. वहीं विपक्ष की कोशिश थी कि स्थानीय क्षत्रप, अगड़ी जातियों और छोटे गुटों को गोलबंद किया जाए. लेकिन शहाबुद्दीन की विरासत का भावनात्मक असर कई जगह पर हावी रहा, जिसने ओसामा को बढ़त दिलाई.

पुरानी पकड़, नया चेहरा
ओसामा शहाब का नाम भले नया हो, लेकिन उनका नेटवर्क पुराना था- यानी उनके पिता का मजबूत नेटवर्क. यही नेटवर्क गांव-गांव तक पहुंचा, लोगों को जोड़ा, वोटरों को सक्रिय किया और बूथों तक कैडर को संगठित रखा. दूसरी तरफ ओसामा को युवा चेहरा होने का फायदा भी मिला. सोशल मीडिया, रील्स और स्थानीय डिजिटल प्रचार में ओसामा की छवि को यंग फ्यूचर लीडर के रूप में दिखाया गया, जो इलाके में मतदाताओं को आकर्षित करती रही.

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विरोधियों के हमले नाकाम
बीजेपी और कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने प्रचार में जगह-जगह शहाबुद्दीन के मामलों का जिक्र किया, ताकि नैरेटिव बदल सके. लेकिन स्थानीय मैदान में उसका कोई बड़ा असर नहीं हुआ. कई मतदाताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अपराध कौन सा नहीं किया? पर क्षेत्र में काम भी तो किया है. यानी पिता की विवादित छवि के बावजूद ओसामा का चुनावी समर्थन कम नहीं हुआ. बल्कि जनता की सहानुभूति और भावनात्मक जुड़ाव बढ़ता गया.

कानून-व्यवस्था के सवाल पर मुद्दे भारी
चुनावों के दौरान टीवी डिबेट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर यह सवाल बार-बार उठा कि अपराधी विरासत का प्रतिनिधित्व क्या लोकतांत्रिक मूल्यों से मेल खाता है? लेकिन सीवान की जनता ने इसे अपना मुद्दा नहीं माना. स्थानीय लोगों की प्राथमिकताएं रोजगार, सड़क, अस्पताल, सुरक्षा और क्षेत्रीय पहचान से जुड़ी दिखीं और इस बात का राजनीतिक फायदा ओसामा शहाब को मिला.

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प्रशासनिक और राजनीतिक पकड़
शहाबुद्दीन के दौर में प्रशासनिक सिस्टम पर उनकी पकड़ को लेकर कई रिपोर्टेस् चर्चा में रहीं हैं. उनके प्रभाव के कारण ही कई बार सीवान को बाइडायरेक्शनल पॉलिटिक्स का मॉडल कहा गया. जहां सत्ता और स्थानीय शक्ति समानांतर चलती हैं. आज उसी प्रभाव की हल्की छाया ओसामा की जीत के अभियान में भी देखी गई यानी बूथ प्रबंधन से लेकर रणनीतिक पहुंच तक, संगठनात्मक स्तर पर वह मॉडल फिर सक्रिय हुआ और ओसामा को जीत दिलाई.

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जादू या बेहतर रणनीति?
ओसामा शहाब की बढ़त और फिर जी को कई लोग जादू बात रहे हैं, लेकिन यह अधूरा सच है. असल में ओसामा का चुनाव चार स्तर का संयोजन था-
1. पिता की विरासत और सामाजिक प्रभाव
2. RJD का मजबूत संगठन और जातीय समीकरण
3. स्थानीय नेटवर्क और जमीनी सक्रियता
4. युवा चेहरे की नई राजनीतिक पैकेजिंग

यही वजह है कि ओसामा शहाब इस विधानसभा चुनाव एक मजबूत दावेदार बनकर उभरे. और फिर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधा.

क्या नया अध्याय लिखेंगे ओसामा!
अब बड़ा सवाल यह है कि ओसामा शहाब वास्तव में राजनीति में अपनी अलग पहचान बना पाएंगे या फिर हमेशा पिता की विरासत का ही विस्तार माने जाएंगे? सीवान की राजनीति में यह चुनाव सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि नए दौर की शुरुआत का संकेत माना जा रहा है. अब ओसामा जीत गए हैं, तो उन्हें क्षेत्र में विकास, कानून-व्यवस्था और सार्वजनिक हित की राजनीति को प्राथमिकता देकर यह दिखाना होगा कि वह पिता की छाया से आगे जाकर भी नेतृत्व की क्षमता रखते हैं. सीवान का अगला दशक इस बात पर निर्भर करेगा कि 'नाम की विरासत' के बाद 'काम की राजनीति' को कौन आगे बढ़ाता है.

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कौन थे शहाबुद्दीन?
बिहार के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन को 'सीवान का सुल्तान' या 'साहेब' कहा जाता था. बिहार की राजनीति में वह एक विवादास्पद लेकिन प्रभावशाली व्यक्तित्व थे. 1967 में सीवान के प्रतापपुर गांव में जन्मे शहाबुद्दीन ने राजनीति विज्ञान में एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल की. 1990 और 1995 में वे जिरादेई विधानसभा सीट से विधायक बने, जबकि 1996 से 2004 तक चार बार लगातार सीवान लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. जनता दल और बाद में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख सदस्य के रूप में, उन्होंने ऊपरी जातियों (राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण) का समर्थन हासिल किया, जो वामपंथी उग्रवादियों के खिलाफ उनकी लड़ाई से प्रभावित थे. हालांकि, उनकी राजनीतिक विरासत अपराध और हिंसा से जुड़ी रही, जिसने सीवान को उनके साम्राज्य का केंद्र बना दिया.

अपराध की छाया
शहाबुद्दीन का राजनीतिक उदय अपराध की लंबी सूची से जुड़ा था. 19 साल की उम्र में पहला मुकदमा दर्ज होने के बाद, वे हुसैनगंज पुलिस द्वारा 'ए' श्रेणी के अपराधी घोषित किए गए. 1997 में जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष चंद्रशेखर प्रसाद की हत्या, 1998 में सीपीआई-एमएल कार्यालय पर बम हमला, और 2004 में पत्रकार राजदेव रंजन पर एसिड अटैक जैसी कई घटनाओं ने उन्हें बदनाम किया. साल 2007 में सीपीआई-एमएल कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और हत्या के लिए उन्हें उम्रकैद की सजा मिली, जबकि 1996 में एसपी एसके सिंघल पर हमले के लिए 10 साल की सजा हुई. तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए भी, उनकी पत्नी हेना शहाब ने 2009 और 2014 में सीवान से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. शहाबुद्दीन की विरासत सीवान में डर और वफादारी का मिश्रण बनी रही.

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सीवान का साम्राज्य
1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव के राज में शहाबुद्दीन ने सीवान को अपना निजी साम्राज्य बनाया. जहां पुलिस नजरें फेर लेती थी और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पोस्टर तक नहीं चिपका पाते थे. डॉक्टरों से फीस तय करना हो या ट्रांसपोर्टरों से टैरिफ, सब कुछ 'साहेब' के इशारे पर होता था. फिर भी, समर्थकों के लिए वे न्याय के प्रतीक थे. भूमि विवाद सुलझाते, गरीबों की मदद करते. प्रतापपुर गांव में चौड़ी सड़कें, स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाएं उनके योगदान से बनीं. ऊपरी जातियों ने उन्हें वामपंथियों के भूमि हड़पने के खिलाफ समर्थन दिया. साल 2005 में उनके घर से एके-47, ग्रेनेड जैसे हथियार बरामद हुए, लेकिन उनकी लोकप्रियता बनी रही. 

हेना से ओसामा तक
शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी (2005) और सजा (2007) के बाद परिवार की राजनीति पर संकट आया. तब उनकी पत्नी हेना शहाब ने 2009, 2014 और 2024 में सीवान लोकसभा सीट से आरजेडी टिकट पर लड़ीं, लेकिन हर बार हार गईं. साल 2024 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में वे जेडीयू की विजय लक्ष्मी कुशवाहा से हार गईं, हालांकि आरजेडी के अवध बिहारी चौधरी से ज्यादा वोट पाईं. 2022 में एमएलसी चुनाव में परिवार समर्थित उम्मीदवार जीता. परिवार का आरजेडी से मतभेद बढ़ा, लेकिन 2024 चुनाव के बाद हेना और बेटे ओसामा ने पार्टी में वापसी की. ओसामा, लंदन से लॉ ग्रेजुएट हैं, उन्होंने साल 2024 में एक भूमि विवाद के चलते जेल का सामना किया, लेकिन कोई सजा नहीं हुई. अब साल 2025 में ओसामा की जीत परिवार की राजनीतिक बहाली का संकेत माना जा रहा है.

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