कैसे चेक होती है आपके कार की मजबूती? जानिए ग्लोबल NCAP क्रैश-टेस्ट की पूरी प्रक्रिया

ग्लोबल NCAP रेटिंग केवल फ्रंट ऑफ़सेट क्रैश टेस्ट पर आधारित होती है. दो कारों के बीच आमने-सामने की टक्कर को टेस्ट करने के लिए एक फ्रंट ऑफ़सेट क्रैश टेस्ट डिज़ाइन किया गया है. भारत में बनने वाली कारों की सेफ्टी जांच के लिए Global NCAP 'सेफर कार ऑफ इंडिया' प्रोग्राम चलाता है.

Advertisement
Tata Punch Global NCAP Crash Test Tata Punch Global NCAP Crash Test

अश्विन सत्यदेव

  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST

आप जब भी कोई बड़ी खरीदारी करते हैं तो इस बात की पूरी तस्दीक करते हैं कि उत्पाद के गुणवत्ता और मजबूती में कोई कसर न हो, ये बात उस वक्त और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब मामला कार खरीदारी का हो. क्योंकि थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन जब तक आप कार में सफर करते हैं तब तक वाहन की मोटी स्टील की वो चादरें और सेफ्टी फीचर्स ही आपकी सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं. 

Advertisement

यदि आप एक कार के मालिक हैं, या नई कार खरीदने की योजना बना रहे हैं तो इस बात पर गौर जरूर किया होगा कि आपकी मौजूदा कार या फिर जो वाहन आप खरीदने की सोच रहे हैं वो आपके लिए कितनी सुरक्षित है या होगी. खैर कारों के साथ आने वाले कैश टेस्ट रिपोर्ट और रेटिंग्स इस बात को काफी हद तक आसान बना देते हैं, जिससे आप ये जान सकें कि भला आपकी कार कितनी सेफ है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर ये क्रैश टेस्ट कैसे होते हैं, किन मानदंडों पर इस प्रक्रिया को संपन्न किया जाता है, या फिर इसके पैरामीटर क्या होते हैं? आज हम आपको अपने इस लेख में इन्हीं बातों से रूबरू कराएंगे - 

क्या होता है क्रैश टेस्ट: 

सबसे पहले तो यह जान लें कि, आखिर क्रैश टेस्ट क्या होता है? यह एक तरह का परीक्षण होता है जो कि वाहनों की मजबूती और उसके द्वारा वाहन में यात्रियों की सुरक्षा के साथ-साथ सड़क पर चल रहे पैदल यात्रियों (Pedestrian) को भी कम नुकसान हो इस बात को तय करता है. यह सिस्टम और व्हीकल कंपोनेंट के लिए सुरक्षित डिज़ाइन मानकों को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है. इसके लिए दुनिया भर में कई अलग-अलग संस्थाएं हैं जो कि वाहनों का क्रैश टेस्ट कर उन्हें सेफ्टी रेटिंग देती हैं, जिनके आधार पर यह तय किया जाता है कि उक्त वाहन यात्रियों को कितनी सुरक्षा प्रदान करता है. इसमें व्यस्क और बच्चों दोनों के लिए अलग-अलग रेटिंग मिलती हैं. भारत में बेचे जाने बहुतायत वाहनों को Global NCAP और Euro NCAP द्वारा क्रैश टेस्ट किया गया है. 

Advertisement

दुनिया भर में कार क्रैश टेस्ट की संस्थाएं: 

  • ऑस्ट्रेलियन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (ANCAP)
  • ऑटो रिव्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (ARCAP)
  • चीन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (C-NCAP)
  • यूरोपीय न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Euro NCAP)
  • अलज़ाइमाइनर डॉयचर ऑटोमोबाइल-क्लब - जर्मनी (ADAC)
  • जापान न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (JNCAP)
  • लैटिन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम- लैटिन अमेरिका(लैटिन NCAP) 

इसके अलावा भी कुछ संस्थाए हैं जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात सुरक्षा प्रशासन (NHTSA), विशेष रूप से अमेरिका के लिए फेडरल मोटर व्हीकल सेफ्टी स्टैंडर्ड (FMVSS) और न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (NCAP), संयुक्त राज्य अमेरिका में राजमार्ग सुरक्षा बीमा संस्थान (IIHS) इत्यादि. भारत में ज्यादातर ग्लोबल NCAP और यूरो NCAP द्वारा किए गए वाहनों के क्रैश टेस्ट ही मशहूर हैं. 

Mercedes-Benz 190 During Crash Test: Pic: Mercedes Benz

क्या कहता है इतिहास: 

क्रैश टेस्ट हमेशा ऑटोमोबाइल का हिस्सा नहीं थे. कारों के निर्माण के बाद तो कई वर्षों तक, किसी भी निर्माता ने यह सोचा भी नहीं था कि किसी कार को जानबूझकर दुर्घटनाग्रस्त (Car Crash) करना पैसेंजर की सुरक्षा का परीक्षण करने का एक व्यावहारिक तरीका हो सकता है. 1930 के दशक में अमेरिकी वाहन निर्माता कंपनी जनरल मोटर्स की बदौलत क्रैश टेस्ट की शुरुआत हुई. हालाँकि 20वीं सदी की शुरुआत से ही कारें मौजूद थीं, लेकिन संभवत: जनरल मोटर्स को छोड़कर किसी भी वाहन कंपनी का ध्यान इस तरफ नहीं गया था. 

Advertisement

तकनीकी का इजाद होना और व्यवहार में आते हुए उसका सुरक्षित होना यही तो हम सभी चाहते हैं. ऐसा ही कुछ साल 1934 में भी हुआ, इसके पहले तक किसी भी कार का क्रैश टेस्ट नहीं किया गया था. उस वर्ष, जनरल मोटर्स ने मिशिगन में मिलफोर्ड प्रोविंग ग्राउंड में अपना पहला बैरियर टेस्ट (Barrier Test) किया. जनरल मोटर्स मिलफोर्ड प्रोविंग ग्राउंड ऑटो इंडस्ट्री की पहली डेडिकेटेड ऑटोमोबाइल परीक्षण (टेस्टिंग) फेसिलिटी थी जब इसे 1924 में शुरु किया गया था. मिलफोर्ड, मिशिगन में स्थित 4,000 एकड़ (1,600 हेक्टेयर) में फैले इस ग्राउंड में आज भी कार्य किया जाता है. 

इसके बाद 10 सितंबर 1959 को मर्सिडीज-बेंज द्वारा किए गए कंपनी के पहले कार क्रैश टेस्ट ने इस दिशा में नए आयाम जोड़ें और ऑटोमोबाइल सेफ्टी की दुनिया में एक नए दौर की शुरुआत हुई. इस बात पर चर्चा फिर कभी विस्तान से करेंगे, तो आइये जानते हैं कि आज के समय में क्रैश टेस्ट को लेकर क्या नियम और प्रक्रिया है- 

Mahindra Scorpio-N Crash Test

क्या है Global NCAP: 

NCAP का मतलब न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम है. 1978 में अमेरिका में कार क्रैश के बारे में ग्राहकों को जानकारी देने के लिए इस प्रोग्राम को शुरू किया गया, जो कि वाहनों का परीक्षण करता है. यूएस-एनसीएपी मॉडल के ही आधार पर अन्य देशों में भी क्रैश टेस्ट प्रोग्राम शुरू किए गए, जो आज ऑस्ट्रेलियन एनसीएपी, यूरो एनसीएपी, जापान एनसीएपी, आसियान एनसीएपी, चीन एनसीएपी, कोरियाई एनसीएपी और लैटिन एनसीएपी के नाम से जाने जाते हैं। ग्लोबल एनसीएपी, यूके में रजिस्टर्ड एक स्वतंत्र संस्था है, जिसका गठन 2011 में वाहन दुर्घटना-टेस्टिंग और रिपोर्टिंग को बढ़ावा देने के लिए किया गया था. ये संस्था 'सेफर कार्स फॉर इंडिया' प्रोग्राम के तहत भारत में निर्मित वाहनों का क्रैश टेस्ट करती है. 

Advertisement

कैसे होता है कार का क्रैश टेस्ट: 

NCAP क्रैश टेस्ट किए गए वाहनों को अपने परीक्षण के आधार पर स्कोर देता है और क्रैश-टेस्ट और कारों को स्कोर करने के लिए प्रत्येक NCAP का अपना प्रोटोकॉल होता है, और इसलिए इनके परिणाम में भी अंतर देखने को मिलता है. उदाहरण के लिए यूरो एनसीएपी फुल फ्रंटल, फ्रंट ऑफसेट, साइड इम्पैक्ट और साइड पोल टेस्ट करता है. दूसरी ओर ग्लोबल NCAP रेटिंग केवल फ्रंट ऑफ़सेट क्रैश टेस्ट पर आधारित होती है. दो कारों के बीच आमने-सामने की टक्कर को टेस्ट करने के लिए एक फ्रंट ऑफ़सेट क्रैश टेस्ट डिज़ाइन किया गया है. ग्लोबल एनसीएपी परीक्षण में, कार को 64 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलाया जाता है और 40 प्रतिशत ओवरलैप के साथ कार सामने की तरफ एक बैरियर से टकराता है, जो समान वजन की दो कारों जो कि 50 किलोमीटर प्रतिघंटा से दौड़ रही हों उनके बीच होने वाले क्रैश के बराबर है. 

भारत के लिए अलग है नियम: 

ग्लोबल NCAP और भारतीय नियामक प्राधिकरणों द्वारा किए गए फ्रंट ऑफ़सेट टेस्ट की गति में अंतर किया गया है. भारत सरकार के नए सुरक्षा मानदंडों के अनुसार (अक्टूबर 2017 से सभी नए मॉडलों पर लागू, और अक्टूबर 2019 से बिक्री पर सभी मॉडलों के लिए), देश में किसी भी वाहन की बिक्री के लिए उसको फ्रंट ऑफसेट और साइड इम्पैक्ट क्रैश आवश्यकताओं को पूरा करना अनिवार्य है.

Advertisement

भारत सरकार का फ्रंट ऑफ़सेट टेस्ट 56 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से किया जाता है, जो ग्लोबल एनसीएपी की फ्रंट ऑफ़सेट क्रैश टेस्ट की स्पीड से कम है, लेकिन फ्रंट इम्पैक्ट प्रोटेक्शन यानी कि सामने से होने वाले दुर्घटना के दौरान मिलने वाली सुरक्षा के मामले में ये संयुक्त राष्ट्र के रेगुलेशन 94 के अनुरूप है. एनसीएपी प्रोटोकॉल कारों में बेहतर सेफ्टी फीचर्स को शामिल करने के लिए हर दो साल में बदलते हैं. 

Car Crash Test

कारों को कैसे दी जाती है रेटिंग: 

आप जानते होंगे, को 5-स्टार पैमाने पर रेटिंग दी जाती है - स्टार रेटिंग जितनी अधिक होगी, कार उतनी ही सुरक्षित होगी. एनसीएपी के तहत प्रत्येक कार को व्यस्कों के लिए (एडल्ट ऑक्यूपेंट प्रोटेक्शन) और बच्चों के लिए (चाइल्ड ऑक्यूपेंट प्रोटेक्शन) के आधार पर स्कोर करता है. ये स्कोर मुख्य रूप से क्रैश-टेस्ट डमी के रीडिंग से प्राप्त होते हैं लेकिन यदि कार में कुछ बेहतर सेफ्टी फीचर्स शामिल हैं तो इससे उसे अतिरिक्त अंक दिए जा सकते हैं. 

हालांकि ग्लोबल एनसीएपी ने किसी भी कार द्वारा एक स्टार रेटिंग (One Star Rating) प्राप्त करने के लिए न्यूनतम आवश्यकता के रूप में ड्राइवर साइड एयरबैग को अनिवार्य कर दिया है. ऐसा कई बार हुआ है जब किसी कार को NCAP क्रैश टेस्ट में शून्य स्टार मिले हैं, लेकिन जब उनमें कुछ सेफ्टी फीचर्स शामिल कर दिए गए हैं तो उन्हें बेहतर रेटिंग मिली है, टाटा ज़ेस्ट और फॉक्सवैगन पोलो इसका प्रमुख उदाहरण हैं, जिनके गैर-एयरबैग वेरिएंट को जीरो स्टार और बाद में जोड़े गए एयरबैग वेरिएंट को 4-स्टार रेटिंग मिली है. 

Advertisement

सेफ्टी के लिए क्या और कैसे होता है स्कोर:

व्यस्को की सेफ्टी में बेहतर स्कोर करने के लिए किसी भी कार को 17 अंकों में से ज्यादा से ज्यादा अंक हासिल करने होते हैं. व्यस्को के लिए ये अंक शरीर के अलग-अलग हिस्सों की सेफ्टी के आधार पर तय किए जाते हैं. इन्हें चार हिस्सों में बांटा गया है, जो इस प्रकार है. 

1)- हेड और नेक (सिर और गर्दन)
2)- चेस्ट और क्नी (सीना और घुटना)
3)- फीमर और पेल्विस (जंघा और पेडू, वस्ति-प्रदेश)
4)- लेग और फुट (पैर और पंजा)

वाहन के क्रैश टेस्ट के दौरान जो डमी इस्तेमाल किया जाता है उस पर तमाम सेंसर लगे होते हैं, जब क्रैश होता है तो उस दौरान डमी (Dummy) यानी पुतले के शरीर के जिस हिस्से को ज्यादा नुकसान पहुंचता है उसको कम अंक मिलते हैं, वहीं जो हिस्सा सुरक्षित रहता है उसे ज्यादा अंक दिया जाता है. इसके अलावा यदि वाहन में सीटबेल्ट रिमाइंडर, फोर-चैनल एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम (ABS) और किसी प्रकार के साइड-इफ़ेक्ट प्रोटेक्शन वाले फीचर्स दिए गए हैं तो कारों को अतिरिक्त अंक मिलते हैं. 

बच्चों की सेफ्टी के लिए स्कोर: 

बच्चों की सेफ्टी के लिए क्रैश होने वाली कार को कुल 49 अंक में ज्यादा से ज्यादा स्कोर करना होता है. इस टेस्ट में 18 महीने और 3 साल के बच्चे की डमी यानी पुतले को शामिल किया जाता है. ताकि इस बात की पूरी तस्दी की जा सके कि इन दोनों एज ग्रुप के बच्चो के लिए कार कितनी सुरक्षित है. ऐसी गाड़ियां जिनमें चाइल्ड रेस्ट्रेंट सिस्टम मार्किंग, थ्री पॉइंट सीट बेल्ट, आइसोफिक्स (ISOFIX) चाइल्ड एंकर्स इत्यादि दिए जाते हैं तो उन्हें अतिरिक्त अंक मिलते हैं. 

Advertisement

कारों का कैसे होता है चुनाव: 

आप सोच रहे होंगे कि, क्या भारत में बेची जाने वाली सभी कारों का क्रैश टेस्ट किया जाता है? ऐसा नहीं है ग्लोबल NCAP 'सेफर कार्स फॉर इंडिया' प्रोग्राम के तहत मास मार्केट की कारों का चुनाव करता है और इन गाड़ियों को सीधे शोरूम से मंगवाया जाता है. दिलचस्प बात ये है कि क्रैश टेस्ट में ज्यादातर बेस मॉडल को शामिल किया जाता है, ताकि एंट्री लेवल वेरिएंट कार खरीदारों की सेफ्टी को भी सुनिश्चित किया जा सके. इसके अलावा कार निर्माताओं को बेहतर रेटिंग प्राप्त करने के लिए उन वेरिएंट्स को भी भेजने की अनुमति होत है जिनमें ज्यादा सेफ्टी फीचर्स शामिल होते हैं. आपको बता दें कि, टाटा जेस्ट, फॉक्सवैगन पोलो और होंडा मोबिलियो को दो बार टेस्ट किया गया था, जबकि Renault की सबसे सस्ती हैचबैक कार Kwid को चार बार टेस्ट किया जा चुका है. अब तक ग्लोबल NCAP द्वारा भारत के 27 कारों को टेस्ट किया जा चुका है. 

भारतीय बाजार के कुछ सबसे सुरक्षित वाहन:

क्रमांक मॉडल ग्लोबल NCAP रेटिंग
1 टाटा पंच 5-स्टार
2 महिंद्रा एक्सयूवी 300 5-स्टार
3 टाटा अल्ट्रॉज 5-स्टार
4 टाटा नेक्सॉन 5-स्टार
5 महिंद्रा एक्सयूवी 700 5-स्टार

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement