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फितना, ख्वारिज और इस्लामी एजेंडा! आसिम मुनीर पाकिस्तानी सेना को कैसे 7वीं सदी के अरब में ले जा रहे हैं?

पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर संविधान में संशोधन करवाकर एक मौन तख्तापलट कर रहे हैं. सत्ता पर पकड़ मजबूत कर रहे हाफिज-ए-कुरान, मुनीर शुरुआती इस्लामी इतिहास के फितना और ख्वारिज जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके पाकिस्तानी सेना को सातवीं सदी के अरब में ले जा रहे हैं.

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पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर हाफिज-ए-कुरान हैं. (Photo: AP)
पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर हाफिज-ए-कुरान हैं. (Photo: AP)

भाड़े पर दूसरों की लड़ाई लड़ने वाली पाकिस्तानी सेना ने किसी तरह से अपना पेशेवर आर्मी का अवशेष कायम रखा है. सेना प्रमुख असीम मुनीर के नेतृत्व में ये निशान भी मिट रहे हैं. क्योंकि पाकिस्तानी सेना देश या जनता के लिए नहीं बल्कि इस्लाम के लिए लड़ने वाली लश्कर में तब्दील हो रही है.  पाकिस्तानी सेना का एक मजहबी शक्ति में रूपांतरण ऐसे समय में हो रहा है जब मुनीर संवैधानिक रूप से पिछले दरवाजे से सत्ता पर अपनी पकड़ को  मजबूत कर रहे हैं.

पाकिस्तान का रक्षा प्रतिष्ठान 'फितना अल ख़्वारिज और 'फितना अल हिंदुस्तान' जैसे काल्पनिक शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से लगे ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान के विद्रोहियों को "भारत की लड़ाई लड़ने वाला" बता रहा है. फितना और ख़्वारिज दोनों ही शब्दों के इस्लामी अर्थ हैं और ये सातवीं शताब्दी के अरब से जुड़े हैं. पाकिस्तानी सेना की कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी को मैनेज करने वाले इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (डीजी आईएसपीआर) के महानिदेशक नियमित रूप से फितना अल ख़्वारिज और फितना अल हिंदुस्तान जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं.

मुनीर उन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनका प्रयोग तब होता था जब इस्लाम पूरी दुनिया में विस्तार पा रहा था. इन इस्लामी शब्दों का प्रयोग करके आसिम मुनीर दूसरे धर्मों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना को इस्लामिक सिस्टम के रक्षक के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं. यह कोशिश  पाकिस्तान की उसी नीति के अनुरूप भी है जहां वह खुद को मुस्लिम उम्माह का चैम्पियन भी बताता है. इसका फायदा पाकिस्तान को ये होता है कि वो सऊदी अरब जैसे देशों से उधारी लेता है और कर्ज में डूबी अपनी अर्थव्यवस्था को किसी तरह खींचता रहता है. 

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आसिम मुनीर ने पाकिस्तान में मौन तख्तापलट शुरू किया है

शहबाज शरीफ की कथित नागरिक सरकार फील्ड मार्शल मुनीर के आगे नतमस्तक है, जबकि वह चुपचाप तख्तापलट कर रहे हैं. मुनीर कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों को हड़प रहे हैं और अनुच्छेद 243 में आमूलचूल परिवर्तन की तैयारी कर रहे हैं. पाकिस्तान की सीनेट ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पीटीआई सहित कुछ राजनीतिक दलों के विरोध के बीच 27वें संविधान संशोधन को मंजूरी देने के लिए मतदान किया है.

इस बदलाव के तहत तीनों सेनाओं के लिए एक यूनिफाइड कमांड स्ट्रक्चर बनाया जाएगा. इसके तहत मुनीर को संविधान के माध्यम से सेना का पूर्ण नियंत्रण हासिल हो जाएगा. अनुच्छेद 243 के अनुसार वर्तमान में सशस्त्र बलों की सर्वोच्च कमान राष्ट्रपति के पास है, लेकिन ऑपरेशनल कंट्रोल  पाकिस्तान की सरकार के पास होगी.

पाकिस्तान के उच्च सदन (सीनेट) में पारित होने के बाद इस संशोधन को मंगलवार को नेशनल असेंबील (निचले सदन) में भी मंजूरी दे दी गई. इसके बाद पाकिस्तान सत्ता की साझेदारी का सिस्टम ही खत्म हो जाता है और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ शक्ति का सर्वोच्च केंद्र बन जाते हैं. 

आसिम मुनीर जो इस महीने के अंत में सेना प्रमुख के पद से रिटायर होने वाले हैं, अब चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDF) का पदभार संभालेंगे. 

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इस बदलाव में फील्ड मार्शल की उपाधि भी शामिल की गई है जो पहले संविधान में मौजूद नहीं था. ऑनलाइन कानूनी समाचार सेवा ज्यूरिस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार उनकी फील्ड मार्शल की उपाधि आजीवन बनी रहेगी. 

पाकिस्तानी दैनिक द न्यूज ने उप-प्रधानमंत्री इसाक डार के हवाले से संशोधन पारित होने के बाद कहा, "भारत के साथ युद्ध के बाद देश ने सेना प्रमुख असीम मुनीर को नायक घोषित कर दिया है."

इस बीच संघीय संवैधानिक न्यायालय (FCC) की स्थापना के साथ पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों में कटौती होगी. 

क्या आसिम मुनीर ज़िया-उल-हक़ का सपना पूरा कर पाएंगे?

"जनरल जिया-उल-हक़ ने जो सपना देख रखा होगा और जो जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ हासिल नहीं कर पाए वह जल्द ही पूरा हो जाएगा," एफसीसी के जरिए सत्ता हथियाने की आलोचना करते हुए कराची स्थित डॉन अखबार में प्रतिष्ठित वकील मखदूम अली खान ने तीखी आलोचना करते हुए लिखा. 

जिया-उल-हक ने ही 1977 में तख्तापलट किया था और निर्वाचित प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को पद से हटाया था और एक कट्टरपंथी इस्लामी राज्य की नींव रखी थी. जिया ने ही पाकिस्तानी सेना का इस्लामीकरण शुरू किया था. मुनीर जो ज़िया के असली उत्तराधिकारी लगते हैं  शायद उनके इस महान सपने को साकार कर पाएं.

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जहां पाकिस्तान के सेना प्रमुखों को सैंडहर्स्ट में प्रशिक्षित, पश्चिमी संगीत के शौकीन और व्हिस्की प्रेमी, और सामाजिक मर्यादाओं में उदार माना जाता है, वहीं असीम मुनीर एक हाफिज-ए-कुरान शख्स हैं. यानी वो व्यक्ति जिसने कुरान रट लिया है. 

पहले के आर्मी चीफ के विपरीत जो "पेशेवर सैनिक" की छवि पर ज़्यादा जोर देते थे. मुनीर के लिए उनका मजहब उनकी सार्वजनिक छवि का एक अहम हिस्सा बन गया है. 

नवंबर 2024 में एक भाषण में मुनीर ने "ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में अल्पसंख्यकों पर हमलों" के लिए भारत की "हिंदुत्व विचारधारा" को जिम्मेदार ठहराया था.  इस साल अप्रैल में मुनीर ने पाकिस्तान के निर्माण की बुनियादी वजह "हिंदुओं और मुसलमानों के बीच गहरे मतभेदों" को उजागर किया था.

इसे एक तरह से भेद-भाव के तौर पर देखा गया और उसी महीने के अंत में पाकिस्तानी और पाकिस्तान-प्रशिक्षित आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 बेगुनाह नागरिकों की हत्या कर दी. आतंकियों ने निहत्थे नागरिकों को धर्म के आधार पर अलग-अलग किया गया और फिर आतंकवादियों ने उनके परिवारों के सामने ही उन्हें बिल्कुल नजदीक से गोली मार दी. 

आसिम मुनीर का इस्लामी एजेंडा पाकिस्तानी सेना में कैसे घुस गया है

असीम मुनीर के तकरीर मजहबी शब्दों और संदर्भों से भरे होते हैं, ये विचारधारा पाकिस्तानी सेना में इतनी गहराई तक घुस गई है कि पाकिस्तान के रक्षा प्रतिष्ठान ने काल्पनिक दुश्मन पैदा कर लिए हैं. 

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अगस्त 2024 में पाकिस्तानी सेना ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को फितना अल ख़्वारिज नाम देने का फैसला किया. इस साल मई में पाकिस्तान ने कहा कि बलूचिस्तान में सक्रिय सभी विद्रोही और उग्रवादी समूहों को फितना-अल-हिंदुस्तान कहा जाएगा. 

पाकिस्तान में बलूच विद्रोही अपने अधिकारों और सेना-शासन में व्याप्त पंजाबी प्रभुत्व के खिलाफ लड़ रहे हैं. टीटीपी मुख्य रूप से पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में सक्रिय है और एक पश्तो समर्थक आंदोलन है.

इस्लाम के शुरुआती इतिहास से उधार लिए गए नामों को रखकर मुनीर के नेतृत्व वाला शक्ति का केंद्र आतंकवाद-विरोधी अभियान को एक मजहबी लड़ाई के रूप में पेश कर रहा है. काल्पनिक दुश्मनों से लड़कर पाकिस्तानी रक्षा बल पवनचक्कियों पर हमला कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे स्पैनिश लेखक मिगुएल डे सर्वेंट्स सावेद्रा के उपन्यास का किरदार सांचो पांजा लड़ता है. 
 
फितना और ख्वारिज का क्या अर्थ है?

फितना और ख्वारिज दोनों ही अवधारणाएं 7वीं शताब्दी के प्रारंभिक इस्लामी इतिहास की हैं. ये कॉन्सेप्ट  632 ई. में पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद के दशकों में घटित हुई थीं. 

अरबी में फितना का अर्थ नागरिक विद्रोह होता है और यह 7वीं और 8वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज में आंतरिक संघर्षों और सत्ता संघर्षों को दर्शाता है.

पहला फितना 656 ई. में तीसरे खलीफा उस्मान इब्न अफ़्फ़ान की हत्या और 661 ई. में उनके रिश्तेदार मुआविया प्रथम के सत्ता पर काबिज होने के बाद हुआ था. 

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इस दौरान मुख्य युद्ध चौथे खलीफा बनने वाली अली पैगंबर मुहम्मद की पत्नी आयशा और सीरिया के गवर्नर और उमय्यद वंश के संस्थापक मुआविया के बीच हुआ था. 

दूसरा फितना अली के बेटे और पैगंबर के पोते हुसैन की कर्बला में शहादत के बाद हुआ. इस दौरान उमय्यदों के खिलाफ विद्रोह हुआ था. 

ख़्वारिज शब्द का संबंध अली की खिलाफत और पहले फितना के समय से है. ख़्वारिज अरबी शब्द ख़राजा से आया है जिसका अर्थ है "छोड़ना" या "विद्रोह करना".

अली के समर्थकों का एक समूह उनसे अलग हो गया क्योंकि वे नाराज थे कि अली ने अपने शासन के अधिकार पर जोर नहीं दिया और मुआविया के साथ खून-खराबा रोकने के लिए बातचीत (मध्यस्थता) स्वीकार कर ली. इस समूह को "ख्वारिज" कहा जाता था. इन्हीं में से एक ने साल 661 ईस्वी में जहरीली तलवार से अली की हत्या कर दी. इस वक्त वे आज के इराक़ के कूफ़ा की बड़ी मस्जिद में सुबह की नमाज अदा कर रहे थे.

फितना अल ख्वारिज, फितना अल हिंदुस्तान का उपयोग पाकिस्तान की कैसे मदद करता है?

इस्लामी ऐतिहासिक शब्दावली का इस्तेमाल करके असीम मुनीर बलूचिस्तान में विद्रोहियों के खिलाफ पाकिस्तान की लड़ाई को धार्मिक रंग देने और विद्रोहियों को विधर्मी करार देने की कोशिश कर रहे हैं. 

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इससे पाकिस्तान को टीटीपी के आरोपों का जवाब देने में भी मदद मिलती है, जिसने अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाले अभियान का समर्थन करने के बाद पाकिस्तानी शासन के खिलाफ युद्ध शुरू किया था. इस कड़ी में 2008 में तोरा बोरा की लड़ाई एक महत्वपूर्ण मोड़ थी जब तालिबान ने पाकिस्तान को एक विधर्मी मुल्क घोषित कर दिया और उससे लड़ने के लिए अलग-अलग समूहों को एकजुट किया. 

टीटीपी को "फितना अल हिंदुस्तान" कहना भारत का नाम लेकर एक भटकाने वाली चाल है. इस संगठन ने पाकिस्तान की घरेलू समस्याओं से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है. इस्लामाबाद भारत को लेकर इतना नफरती रहा है कि उसकी अधिकांश विदेश नीति और उसके ज्यादातर आंतरिक मामले नई दिल्ली को बदनाम करने और उसे हजारों जख्म देकर नुकसान पहुंचाने पर केंद्रित हैं. 

जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री और पीटीआई प्रमुख इमरान खान असीम मुनीर के सबसे बड़े दुश्मन हैं, और उनके पार्टी के लोग रावलपिंडी के डीप स्टेट को चुनौती दे रहे हैं. कई मोर्चों पर लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में मुनीर एक इस्लामी आख्यान के इर्द-गिर्द जनता को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं और अपनी लड़ाइयों को "झूठे मुसलमानों" या ख़्वारिज के खिलाफ एक धार्मिक परीक्षा के रूप में पेश कर रहे हैं. 

पाकिस्तानी ताकतों का इस्लामीकरण भारत और दुनिया के लिए चिंता का विषय क्यों है?

पाकिस्तानी रक्षा बलों का इस्लामीकरण इसलिए ज़्यादा चिंताजनक है क्योंकि वह एक परमाणु शक्ति है. इस परमाणु बम के आतंकवादियों के हाथों में पड़ जाने के डर ने पश्चिमी देशों के माथे पर बल डाल दिए हैं. 

दरअसल डीजी आईएसपीआर लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी के पिता, परमाणु वैज्ञानिक सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद, अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन से मिले थे और आतंकवादियों को परमाणु हथियार की तकनीक सौंपने की कोशिश की थी. 

सोमवार को अफगानिस्तान के टोलो न्यूज़ ने अपने मुख्य लेख का शीर्षक दिया- काबुल-इस्लामाबाद संबंध पाकिस्तान सेना के सशक्तिकरण योजना की छाया में जूझ रही है. 

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार काबुल और इस्लामाबाद के बीच बिगड़ते संबंधों के लिए पाकिस्तान के सैन्य शासन को जिम्मेदार ठहराती रही है.

असीम मुनीर पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार की ताकत को दांव पर लगाकर शक्ति और प्रभाव हासिल कर रहे हैं, यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी बैठकों से स्पष्ट है. यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक खतरनाक विषमता पैदा करता है, यह मई में चार दिनों तक चले छोटे युद्ध में स्पष्ट हुआ था. जहां एक चुनी हुई सराकर जनता के प्रति जवाबदेह होगी, वहीं एक सैन्य शासक सैन्य तंत्र को संतुष्ट करने के लिए मानवीय क्षति की अनदेखी करेगा. 

1947 में भारत से अलग होने के बाद से विभाजन के समय मुजाहिदीन के हमलों से लेकर 1965 के युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध तक, पाकिस्तानी सेना का आतंकवादियों और जिहादी समूहों के साथ सहयोग करने का एक लंबा इतिहास रहा है. यह उनकी स्टटे पॉलिसी का हिस्सा रहा है. असीम मुनीर के नेतृत्व में उसी जिहादी तत्व को अब सीधे सेना में ही शामिल किया जा रहा है. 

संविधान संशोधन और पाकिस्तानी रक्षा बलों के इस्लामीकरण के माध्यम से मुनीर द्वारा हाल ही में सत्ता पर पकड़ मजबूत करना दुनिया खासकर भारत के लिए दोहरा झटका है. पाकिस्तान के पास अब एक सर्वशक्तिमान सेना प्रमुख है, जो हाफ़िज़-ए-कुरान है, और सेना को सातवीं शताब्दी के अरब में ले जा रहा है. पाकिस्तानी सैनिक लंबे समय से अपने जिहादी भाइयों के साथ लड़ते रहे हैं और कट्टरपंथ की नई खुली कोशिश इस कट्टरपन की इस राह को और आसान बना सकती है. 

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