वेस्टमिंस्टर एबे में किंग चार्ल्स की ताजपोशी इस बार आसान नहीं होगी. वजह ये है कि इसपर खुश होने वाले लोगों के साथ-साथ वे लोग भी हैं, जो इसे देश का आखिरी रॉयल फेस्टिवल बनाना चाह रहे हैं. वे चार्ल्स को अपना राजा नहीं मानते. तो क्या उन्हें कोई दूसरा किंग चाहिए? नहीं. वे चाहते हैं कि इसके बाद वहां कोई राजा या रानी न रहे. इसके लिए वे सड़कों पर विरोध तक करने लगे.
मातम के दौरान भी लोग प्रोटेस्ट करने लगे थे. सितंबर 2022 में क्वीन के जाने के बाद लोग सड़कों पर तख्तियां लेकर खड़े मिलते, जिनपर लिखा होता- नॉट माई किंग. आमतौर पर यूके में अलग-अलग मुद्दों पर प्रोटेस्ट होता रहता है, कोई बखेड़ा खड़ा नहीं होता, लेकिन क्वीन की मौत के बाद पुलिस ने प्रोटेस्टर्स को कुछ घंटों के लिए पकड़ना शुरू कर दिया था.
किसलिए है नाराजगी?
एक समय पर दुनिया की सबसे ताकतवर राजशाही रह चुके यूनाइटेड किंगडम में अब उसपर गुस्सा दिखने लगा है. लोग नाराज हैं. वे मानते हैं कि ये सब पुराने चोंचले हैं जिन्हें अब खत्म हो जाना चाहिए. ज्यादातर लोग मानते हैं कि इससे आम लोगों की जेब पर बोझ पड़ता है. बता दें कि रॉयल फैमिली के राज्याभिषेक या निधन जैसे मौकों पर भारी-भरकम खर्च होता है. ये खर्च ब्रिटिश सरकार उठाती है. मतलब टैक्सपेयर्स से पैसे वसूले जाते हैं.

नॉट माई किंग प्रोटेस्ट में शामिल कुछ विरोधी ये भी कहते हैं कि राजशाही के दौर में यूके ने जितने देशों और लोगों को परेशान किया, रॉयल फैमिली उन सबकी याद दिलाती है, इसलिए ये ओहदा खत्म हो जाना चाहिए.
ज्यादा गुस्सा ताजपोशी के दौरान होने वाले खर्च पर
अनुमान है कि इसमें लगभग सौ मिलियन पाउंड (हजार करोड़) का खर्च आएगा. चूंकि ये समारोह देश की जिम्मेदारी है तो इसका खर्च भी करदाता उठाएंगे. इससे पहले साल 1953 में क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की ताजपोशी में ब्रिटिश सरकार ने लगभग डेढ़ मिलियन पाउंड खर्च किए थे. ये आज के हिसाब से 50 मिलियन पाउंड के करीब है, यानी सवा पांच सौ करोड़ रुपए. देश में इस समय महंगाई उछाल पर है. लोग खाने के लिए चैरिटी संस्थाओं के भरोसे हैं. ऐसे में भव्य आयोजन सबको अखर रहा है.
क्या कहता है सर्वे?
नेशनल सेंटर फॉर सोशल रिसर्च ने हाल ही में एक सर्वे करवाया, ये समझने के लिए कि लोगों में दिल में राजपरिवार को लेकर कैसे भाव हैं. इसपर केवल 29% लोगों ने ही कहा कि राजसत्ता बहुत जरूरी है. वहीं ज्यादातर युवा इसके खिलाफ आ रहे हैं. ये वजह भी है किंग चार्ल्स ने समारोह में आने वाले मेहमानों की लिस्ट को काटछांटकर 2 हजार विदेशी मेहमानों तक पहुंचा दिया. वहीं उनकी मां क्वीन एलिजाबेथ की ताजपोशी में 8 हजार गेस्ट आए थे.

कुल मिलाकर, इस समय ब्रिटेन दो खेमों में बंटा हुआ है. एक तरफ राज्याभिषेक, फूल, पार्टियां होंगी, दूसरी तरफ तख्तों पर नॉट माई किंग लेकर खड़े हुए लोग. अब तक ब्रिटेन में प्रोटेस्ट आराम से होते रहे, लेकिन इस बार इसमें बड़ा बदलाव हो सकता है. इसकी वजह ये है कि वहां हाल ही में एंटी-प्रोटेस्ट कानून बना है.
किन बातों पर हो सकता है एक्शन?
यूनाइटेड किंगडम में धरना-प्रदर्शन को हरी झंडी मिली हुई है. यूरोपियन कन्वेंशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के आर्टिकल 10 और 11 के तहत इसकी छूट है. लेकिन एक हद तक ही. पब्लिक ऑर्डर एक्ट 1986 में कुछ ही समय पहले पुलिस, क्राइम, सेंटेंसिंग एंड कोर्ट एक्ट (PCSC) जुड़ा. यूके की सरकारी वेबसाइट पर इसका जिक्र है.
- प्रदर्शन के दौरान अगर शोर हो, जिसपर कोई शिकायत करे तो स्कॉटलैंड यार्ड जाकर प्रदर्शनकारियों पर एक्शन ले सकता है.
- प्रोटेस्ट के चलते अगर किसी को दफ्तर जाने में देर हो, जिससे काम का बड़ा नुकसान हो सकता हो, तो सख्त कदम लिया जा सकता है.
- मेडिकल जरूरत या किसी भी किस्म की इमरजेंसी तो भी वो पुलिस से मदद ले सकता है. पुलिस या तो लोगों को खदेड़ेगी, या फिर उन्हें अपने साथ ही ले जाएगी.
- रास्ते से प्रोटेस्टर्स को तुरंत हटाया जा सकता है, अगर पानी, खाना या ऑयल जैसी चीजों का ट्रांसपोर्टेशन प्रभावित हो रहा हो.
- न्यूड प्रोटेस्ट भी इस दायरे में आता है. वैसे तो वहां प्रोटेस्ट के दौरान कई बार लोग न्यूड होते देखे गए, लेकिन अगर इसका मकसद शॉक देना हो, तो पुलिसिया दखल होता है.
- शाही परिवार की गरिमा को चोट पहुंचाने पर सालभर की कैद, 5 हजार पाउंड जुर्माना या फिर दोनों ही सजाएं दी जा सकती हैं.

वर्तमान पीएम ने लिए सख्त कदम
ये सख्ती ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक की लीडरशिप में इसी साल जनवरी में बढ़ी. पब्लिक ऑर्डर बिल में कई और संशोधन हुए, जो पुलिस को छूट देते हैं कि वो प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई कर सके. इसके तहत पुलिस को इंतजार नहीं करना होगा कि प्रोटेस्ट करने वाले हुड़दंग मचाएं, जिसके बाद ही वो एक्शन ले. हुड़दंग की आशंका देखकर भी कार्रवाई हो सकती है. पीएम सुनक ने नए संशोधन पर कहा कि लोकतंत्र प्रोटेस्ट का हक देता, लेकिन ये 'एब्सॉल्यूट' नहीं. इसमें एक संतुलन होना चाहिए.
कितनी ताकत है किंग चार्ल्स के पास?
लोग किंग का विरोध तो कर रहे हैं, लेकिन क्या राजपरिवार के पास कोई ताकत भी है? क्या किंग चाहें तो नियमों में कोई फेरबदल कर सकते हैं? नहीं. वैसे तो इंग्लैंड अब भी कंस्टीट्यूशनल मोनार्की है, मतलब किंग या क्वीन देश के लीडर हैं. इससे होता ये है कि किंग खासे बिजी रहते हैं. वे ज्यादातर समय दूसरे देशों के बड़े नेताओं से मिलते रहते हैं. लेकिन उनके पास कोई असल ताकत नहीं. राजनैतिक तौर पर वे न्यूट्रल हैं. उनका काम हर साल संसद की शुरुआत करना, बिल्स पर साइन करना और हफ्ते के हफ्ते पीएम से मीटिंग करने से ज्यादा कुछ नहीं. मोटे तौर पर ये एक ऐसा पद है, जिसपर देश का खर्च तो होगा, लेकिन जिससे कोई फायदा शायद ही हो.