
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित बोंडी बीच पर हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. इस हमले को अंजाम देने वाले दोनों आतंकी पाकिस्तानी मूल के बताए जा रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक मुख्य आतंकी का नाम साजिद अकरम था, जिसकी उम्र 50 साल थी, जबकि दूसरा आतंकी उसका 24 साल का बेटा नवीद अकरम था. रिश्ते में ये दोनों बाप-बेटे थे.
ये बेहद खतरनाक रहा कि एक पिता इस्लामिक जेहाद के नाम पर अपने 24 साल के बेटे के साथ आतंकी हमला करने निकलता है. बोंडी बीच पर जहां यहूदी समुदाय के लोग अपना वार्षिक त्योहार मना रहे थे, वहां करीब 10 मिनट तक अंधाधुंध 50 से ज्यादा गोलियां चलाई गईं. ये हमला सिर्फ एक आतंकी वार नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक डरावनी चेतावनी था.
पहलगाम की याद दिलाती तस्वीरें
बोंडी बीच की ये तस्वीरें हमें इसी साल 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले की याद दिलाती हैं. उस हमले में भी आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं को बेरहमी से मौत के घाट उतारा था. इस हमले में भी यहूदियों को सिर्फ उनके धर्म की वजह से निशाना बनाया गया. इससे एक बार फिर साबित होता है कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन आतंकवादी हमलों में मरने वालों का धर्म जरूर होता है.
बाप-बेटे का रिश्ता और कट्टरपंथ की हद
इस हमले की सबसे खतरनाक और चौंकाने वाली बात ये है कि दोनों आतंकी बाप-बेटे थे. सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं कि कोई पिता अपने बेटे के साथ ऐसा हमला कैसे कर सकता है. लेकिन जांच एजेंसियों के मुताबिक इस मामले में पिता से ज्यादा कट्टर उसका बेटा नवीद अकरम था.

साजिद अकरम का ऑस्ट्रेलिया सफर
न्यू साउथ वेल्स पुलिस के अनुसार, साजिद अकरम साल 1998 में स्टूडेंट वीजा पर ऑस्ट्रेलिया आया था. साल 2001 में उसने ऑस्ट्रेलिया की एक महिला से शादी की, जिसके बाद उसे पार्टनर वीजा मिला. इसके बाद उसे तीन बार निवासी वापसी वीज़ा यानी RRV जारी किया गया. ये वीजा उन लोगों को मिलता है जो ऑस्ट्रेलिया से बाहर जाकर वापस लौटते हैं. दूसरी तरफ नवीद अकरम का जन्म ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और वह ऑस्ट्रेलिया का नागरिक था. इसके बावजूद नवीद अपने पिता से ज्यादा कट्टर निकला.
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IS कनेक्शन और खुफिया एजेंसियों की चिंता
पुलिस के मुताबिक साल 2019 में ऑस्ट्रेलिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकी इसाक-अल-मतारी को गिरफ्तार किया गया था, जो खुद को IS का ऑस्ट्रेलियन कमांडर बताता था. उस समय जांच एजेंसियों को शक था कि नवीद अकरम इस आतंकी और IS के संपर्क में हो सकता है. ये भी दावा है कि नवीद पाकिस्तान के कुछ आतंकियों से संपर्क में था और इसी वजह से उसे खतरा माना गया था. लेकिन कार्रवाई नहीं होने के कारण नवीद ने अपने पिता के साथ मिलकर इस हमले को अंजाम दिया.
साजिश, हथियार और गन क्लब कनेक्शन
जांच में पता चला है कि नवीद अकरम ने काफी पहले स्कूल छोड़ दिया था और ईंट-चुनाई का काम करता था. जब इजरायल और हमास के बीच गाजा युद्ध चल रहा था, उसी दौरान पिता-बेटे ने इस हमले की साजिश रची. बड़ा खुलासा ये भी हुआ कि साजिद अकरम एक गन क्लब का सदस्य था और उसके पास 6 लाइसेंसी बंदूकें थीं. इसी हथियारों का इस्तेमाल इस हमले में किया गया.
कट्टरपंथ की भयावह तस्वीर
जब पुलिस ने साजिद अकरम को मार गिराया, उस वक्त उसका बेटा नवीद अकरम अपने पिता को देखने के बजाय यहूदियों के खिलाफ नारे लगाते हुए गोलीबारी करता रहा. इस हमले में 10 साल की एक बच्ची भी मारी गई. यही कट्टरपंथ की सबसे खतरनाक तस्वीर है.
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री का सख्त संदेश
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने कहा है कि इस आतंकी हमले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इसकी हर पहलू से जांच होगी. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए पूरी ताकत लगाएगी.

पाकिस्तान कनेक्शन और दुनिया के दोहरे मापदंड
भारत में जब 26/11, उरी, पुलवामा और पहलगाम जैसे आतंकी हमले हुए, तब भारत ने बार-बार दुनिया को पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क के बारे में चेताया. लेकिन तब दुनिया ने इसे भारत-पाक विवाद कहकर नजरअंदाज कर दिया. आज जब ऑस्ट्रेलिया में आतंकी हमले का पाकिस्तान कनेक्शन सामने आ रहा है, तब वही देश इसे गंभीर खतरा मान रहे हैं. ये दुनिया के दोहरे मापदंड को दिखाता है.
कार से IS का झंडा और IED बरामद
न्यू साउथ वेल्स पुलिस के मुताबिक आतंकियों की गाड़ी से इस्लामिक स्टेट का काला झंडा मिला है. इसके अलावा उसी गाड़ी में दो IED यानी इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस लगाए गए थे. अगर ये विस्फोट हो जाते, तो नुकसान और भी बड़ा हो सकता था. लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने समय रहते दोनों बमों को नाकाम कर दिया.
यहूदियों को क्यों निशाना बनाता है IS
बोंडी बीच वही जगह है जहां हजारों यहूदी हनुक्का पर्व मनाने के लिए जुटते हैं. आतंकियों ने अपने घर से यह कहकर निकलना बताया था कि वे मछली पकड़ने जा रहे हैं, लेकिन असल मकसद हमला करना था. उनकी गाड़ी पर IS का काला झंडा लगा हुआ था. IS की शुरुआत 2003 में इराक युद्ध के दौरान हुई थी और इसका मकसद तथाकथित इस्लामी खिलाफत स्थापित करना है. आरोप है कि साजिद और नवीद अकरम जिन हैंडलर्स के संपर्क में थे, वे पाकिस्तान से हो सकते हैं.
इजरायल की चेतावनी और ऑस्ट्रेलिया पर सवाल
इस हमले के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ऑस्ट्रेलिया सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि यहूदियों के खिलाफ नफरत कैंसर की तरह फैल रही है. नेतन्याहू का दावा है कि उन्होंने पहले ही चेताया था कि फिलिस्तीन समर्थक नीति के चलते ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर हमले बढ़ सकते हैं.

हनुक्का पर्व और हमला
यह हमला उस वक्त हुआ जब यहूदी समुदाय के लोग हनुक्का यानी रोशनी का त्योहार मना रहे थे. मान्यता है कि यरुशलम के मंदिर को यूनानी शासकों से मुक्त कराने के बाद एक दीया आठ दिन तक बुझा नहीं था. तभी से यह पर्व मनाया जाता है. इस बार भी हजारों यहूदी बोंडी बीच पर इकट्ठा हुए थे. इसी दौरान हमला हुआ, जिसमें 16 लोगों की मौत और 42 लोग घायल हो गए.
त्योहारों को निशाना बनाते आतंकी
7 अक्टूबर 2023 को जब इजरायल में हमास का हमला हुआ था, तब भी यहूदी सिम्हाट टोरापर्व मना रहे थे. 22 अप्रैल को पहलगाम में भी लोग छुट्टियां मनाने आए थे. और अब ऑस्ट्रेलिया में हनुक्का के दौरान हमला हुआ. साफ है कि आतंकी त्योहारों और छुट्टियों के दौरान निहत्थी भीड़ को निशाना बनाते हैं.

मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप क्यों
ऑस्ट्रेलिया में इस हमले को मुस्लिम तुष्टिकरण का नतीजा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसी साल 21 सितंबर को ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी थी. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में यहूदी विरोधी प्रदर्शन बढ़े, लेकिन सरकार पर कार्रवाई न करने के आरोप लगे.
एंथनी अल्बानीज़ पर आरोप है कि शहरी इलाकों में मुस्लिम वोट उनकी लेबर पार्टी को मिलते हैं, इसलिए उनका झुकाव मुस्लिम पक्ष में रहा. सिडनी ओपेरा हाउस में यहूदियों के खिलाफ नारे लगने पर भी कार्रवाई नहीं हुई. इसी वजह से ऑस्ट्रेलिया में गुस्सा है कि अगर तुष्टिकरण नहीं होता, तो शायद ये हमला भी न होता.
साम्प्रदायिक माहौल और सूअर के सिर की घटना
हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया में साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ गया है. सिडनी के एक कब्रिस्तान में सूअर के कटे हुए सिर फेंके गए. इसका मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया.
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ऑस्ट्रेलियाई मुसलमानों का बड़ा बयान
ऑस्ट्रेलिया के मुसलमानों ने साफ कहा है कि वे इन आतंकियों को इस्लाम का प्रतिनिधि नहीं मानते. उन्होंने ऐलान किया है कि मारे गए आतंकियों का न जनाजा पढ़ा जाएगा और न ही उन्हें किसी कब्रिस्तान में दफनाने दिया जाएगा. मुसलमानों का कहना है कि इस हमले के लिए पूरे समुदाय को दोषी ठहराना गलत है. और ये बात सही भी है.
अगर सारे मुसलमान गलत होते, तो इस हमले में 16 नहीं, सैकड़ों लोग मारे जाते.
अहमद अल-अहमद, एक मुस्लिम हीरो
इस हमले के दौरान जिस शख्स ने आतंकी नवीद अकरम को धक्का देकर उसकी बंदूक छीनी, उसका नाम अहमद अल-अहमद है. अहमद एक मुसलमान हैं. अगर उन्होंने आतंकी को पीछे न खदेड़ा होता, तो कई और लोगों की जान जा सकती थी. 44 साल के अहमद निहत्थे होकर हथियारबंद आतंकी से भिड़ गए. वह घायल भी हुए, लेकिन सैकड़ों यहूदियों की जान बचा ली. उन्होंने अपने भाई से कहा कि अगर उन्हें कुछ हो जाए, तो परिवार को बताना कि वे लोगों की जान बचाते हुए मरे.
दो तस्वीरें, दो रास्ते
एक तरफ अहमद अल-अहमद हैं, जो मुसलमान होकर लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. दूसरी तरफ साजिद और नवीद अकरम हैं, जो धर्म के नाम पर नरसंहार करते हैं. आज ऑस्ट्रेलिया में फल की दुकान चलाने वाले अहमद अल-अहमद को पूरी दुनिया हीरो कह रही है. और यही संदेश भी दिया जा रहा है कि जेहाद के नाम पर गुमराह होने वालों को उनसे सीख लेनी चाहिए, क्योंकि कोई भी धर्म जान लेना नहीं सिखाता.