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बैंड बाजा और शव यात्रा...डोली जैसी सजी अर्थी लेकर मुस्कुराते हुए श्मशान पहुंची भीड़, VIDEO

जालौन के कोंच नगर में 107 वर्षीय गेंदारानी की अंतिम यात्रा अनोखी रही. परिजनों ने उन्हें दुल्हन की तरह सजी डोली में, बैंड-बाजे और भक्ति गीतों के साथ विदा किया. शोक की जगह यह यात्रा एक पूर्ण और सार्थक जीवन के उत्सव का प्रतीक बनी, जिसने सभी को भावुक कर दिया.

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सजी घजी अर्थी लेकर मुस्कुराते हुए श्मशान पहुंची भीड़ (Photo: ITG)
सजी घजी अर्थी लेकर मुस्कुराते हुए श्मशान पहुंची भीड़ (Photo: ITG)

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कोंच नगर में रविवार को एक ऐसी अंतिम यात्रा निकली, जो विदाई के पारंपरिक गमगीन माहौल से परे, जीवन के उत्सव और परिजनों के गहरे प्रेम का प्रतीक बन गई. 107 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कहने वालीं गेंदारानी के परिजनों ने उनकी शव यात्रा को एक अनोखा और भावनात्मक रूप दिया, जिसने पूरे क्षेत्र का ध्यान आकर्षित किया और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

डोली में सजी 'दुल्हन' की तरह विदाई

​परिजनों ने गेंदारानी के अंतिम सफर को यादगार बनाने के लिए उन्हें दुल्हन की तरह विदा किया. पारंपरिक अर्थी की जगह, उनके शव को एक सुंदर सजी हुई डोली में रखा गया. डोली को रंग-बिरंगे फूलों से ऐसे सजाया गया था, मानो कोई नववधू अपने ससुराल जा रही हो. गेंदारानी को भी सिर पर पगड़ी पहनाई गई,

भक्ति गीतों के साथ बैंड-बाजे की धुन

​इस यात्रा की सबसे खास बात थी इसका माहौल. शोक और रुदन की जगह, पूरे रास्ते बैंड-बाजे और डीजे पर भक्ति व पारंपरिक मंगल गीत बज रहे थे. यह दृश्य देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे परिजन 107 साल के एक परिपूर्ण जीवन की समाप्ति का शोक नहीं, बल्कि एक पुण्य आत्मा की मुक्ति का उत्सव मना रहे हों.


​कोंच नगर की सड़कों से जब यह अनूठी यात्रा गुजरी, तो हर देखने वाले की आँखें नम थीं, लेकिन होठों पर मुस्कान भी थी. लोगों का मानना था कि गेंदारानी का जीवन प्रेम और खुशियों से भरा रहा होगा, तभी उनकी अंतिम विदाई भी इतनी खुशगवार और भव्य तरीके से हो रही है.

'एक पूर्ण जीवन का सम्मान'

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​परिजनों ने बताया कि गेंदारानी एक खुशमिजाज और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. इतने लंबे और सार्थक जीवन के बाद उनके जाने को उन्होंने दुख की बजाय एक पूर्ण जीवन की उपलब्धि के रूप में देखा. उनका मानना था कि गेंदारानी को उसी सम्मान और खुशी के साथ विदा किया जाना चाहिए, जो उन्होंने अपने पूरे जीवन में बांटी. जालौन की यह घटना एक संदेश देती है कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, और यदि किसी ने एक सार्थक व लंबा जीवन जिया है, तो उनकी विदाई भी एक उत्सव के रूप में मनाई जा सकती है. यह यात्रा न केवल एक श्रद्धांजलि थी, बल्कि एक नई परंपरा की शुरुआत भी हो सकती है.
 

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