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मायावती ने बनाया सत्ता की वापसी का DM फॉर्मूला... क्या मुस्लिमों का बसपा पर भरोसा बन पाएगा?

उत्तर प्रदेश की सियासी पिच पर एक के बाद एक मात खा रही बसपा को मायावती दोबारा खड़े करने की कवायद में है. 2027 के लिए दलितों के साथ मुस्लिमों को जोड़ने का लक्ष्य मायावती ने दिया है, लेकिन यूपी की सियासत में दलित-मुस्लिम केमिस्ट्री क्या बसपा बना पाएगी?

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बसपा के साथ मुसलमानों को जोड़ने का मायावती ने दिया टारगेट (Photo-PTI)
बसपा के साथ मुसलमानों को जोड़ने का मायावती ने दिया टारगेट (Photo-PTI)

उत्तर प्रदेश की सियासत में हाशिए पर खड़ी बसपा प्रमुख मायावती ने 2027 के लिए सियासी एक्सरसाइज़ शुरू कर दी है. मायावती ने बुधवार को 2027 में बसपा की सत्ता में वापसी का फॉर्मूला 'मुस्लिम भाईचारा कमेटी' की बैठक में समझाया. उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा कि मुस्लिम समाज को बताएं कि 22 फीसदी दलित और 20 फीसदी मुस्लिम मिलकर बीजेपी को चुनाव में हरा सकते हैं.

मायावती ने 2027 में विधानसभा चुनाव जीतने का जो समीकरण समझाया है, वह सियासी तौर पर बसपा के लिए विनिंग फॉर्मूला बन सकता है. उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम के वोट मिलकर 42 प्रतिशत बनता है. 2022 में बीजेपी 41.3 फीसदी वोट पाकर दूसरी बार सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा था.

बसपा प्रमुख मायावती सूबे की सियासी नब्ज समझ रही हैं और बसपा की वापसी के लिए दलित-मुस्लिम वोटों पर फोकस करने का प्लान बनाया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जमीनी स्तर पर दलित-मुस्लिम मतदाताओं को बसपा एकजुट करने में कामयाब हो पाएगी?

मुस्लिमों को साधने में जुटी मायावती

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मायावती ने बुधवार को 'मुस्लिम भाईचारा कमेटी' की बैठक कर मुस्लिम समाज को पार्टी से जोड़ने का टारगेट दिया है. इस दौरान मुस्लिम नेताओं को अगली दो पंक्तियों में बैठाया गया. मायावती ने सूबे की हर विधानसभा सीट पर 100-100 मुस्लिम समाज के नेताओं को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए कहा है. प्रदेश के सभी मंडलों में मुस्लिम भाईचारा कमेटी में दो-दो संयोजक बनाए गए हैं, जिसमें एक दलित और एक मुस्लिम समाज से है.

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बसपा के शासन काल में मुस्लिम समाज के लिए किए गए कामों की एक बुकलेट सभी नेताओं को बाँटी गई है, जिसमें 100 बड़े विकास कार्य और निर्णय का ज़िक्र किया गया है. मायावती ने अपनी पार्टी नेताओं को मुस्लिम बस्तियों में इस बुकलेट को ले जाकर दिखाने को कहा है. इसके साथ कहा कि लोगों को बताएँ कि बसपा सरकार में भी सबसे ज़्यादा मुस्लिमों के काम किए गए.

मायावती के निशाने पर सपा-कांग्रेस

उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी मुस्लिमों का भरोसा जीतने के लिए मायावती अब हर महीने बसपा की मुस्लिम भाईचारा कमेटी की बैठक ख़ुद लेंगी. 2017 के बाद इस कमेटी को बहाल किया गया है ताकि मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीता जा सके. मौजूदा समय में मुस्लिमों का बड़ा वोटबैंक सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ है, जिसे देखते हुए मायावती ने दोनों दलों को मुस्लिम विरोधी कठघरे में खड़े करने का दाँव चल रही हैं.

मुस्लिम समाज भाईचारा कमेटी की बैठक में मायावती ने कहा कि सपा और कांग्रेस ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक बनाकर रखा जबकि बसपा ने अपने शासनकाल में दंगा, शोषण और अन्याय से मुक्त यूपी बनाया. सपा और कांग्रेस की कथनी-करनी में अंतर है, क्योंकि वे सत्ता में आने पर वादे भूल जाते हैं.

उन्होंने कहा कि 2022 के विधानसभा और पिछले कई चुनावों में मुस्लिम समाज ने सपा और कांग्रेस को पूर्ण समर्थन दिया, फिर भी बीजेपी को नहीं हरा सकीं जबकि 2007 में मुस्लिमों का सीमित समर्थन मिलने के बाद भी बसपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई. उन्होंने मुस्लिम समुदाय से अपील करते हुए कहा कि आगामी 2027 के चुनाव में बसपा को सीधा समर्थन दें ताकि बीजेपी को हराया जा सके.

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दलित-मुस्लिम पर क्यों बसपा का फ़ोकस

2017 के बाद से यूपी की राजनीति बदल गई है. एक समय था जब 30 फ़ीसदी वोट पाने वाली पार्टी आसानी से यूपी में सरकार बना लेती थी, लेकिन अब 40 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पाने के बाद ही सत्ता मिलना संभव है. बीजेपी लगातार दो बार से 40 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पाकर सत्ता में क़ाबिज़ है तो सपा गठबंधन 2022 में 36 फ़ीसदी वोट शेयर ही हासिल कर सका था.

2024 में 40 फ़ीसदी वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन ने हासिल किया तो बीजेपी का गेम ही पलट गया. यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 43.52 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ 80 में से 43 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी. मायावती अकेले चुनाव लड़ी थीं और बसपा 10 फ़ीसदी से कम वोटों पर सिमट गई थी.

सूबे के सियासी समीकरण और बदले हुए वोटिंग पैटर्न को देखते हुए मायावती दलित और मुस्लिम केमिस्ट्री बनाने पर ताना-बाना बुन रही हैं. यूपी में दलित 22 फ़ीसदी हैं और मुस्लिम 20 फ़ीसदी हैं. यह दोनों वोट एक साथ आ जाते हैं तो फिर यह आंकड़ा 42 फ़ीसदी हो जाता है.

सहारनपुर, आगरा, मेरठ, गाज़ियाबाद, अलीगढ़, आज़मगढ़, गोंडा, बस्ती, फ़िरोज़ाबाद, लखनऊ, मुरादाबाद जैसे ज़िलों में दलित मतदाताओं की तादाद अच्छी ख़ासी है तो मुस्लिम वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में मायावती चाहती हैं कि दलितों के साथ मुस्लिम वोटबैंक अगर उनके साथ आ जाए तो बीजेपी को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में आ सकती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इस केमिस्ट्री को अमलीजामा पहनाना आसान नहीं है.

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मायावती के लिए क्यों आसान नहीं?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा का सियासी आधार चुनाव दर चुनाव घटता जा रहा है. 2007 में मायावती ने 206 सीटें और 30.43 फ़ीसदी वोट शेयर हासिल कर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन इसी के बाद से लगातार बसपा का ग्राफ़ गिरता जा रहा है. मायावती का अपना कोर वोटबैंक भी साथ छोड़ रहा हैय

2022 में बसपा का वोट शेयर गिरकर 12 फ़ीसदी पर पहुँचा था तो 2024 में 9 फ़ीसदी पर पहुंच गया है. मायावती के ग़ैर-जाटव दलित तो पहले छिटक गए थे और 2024 में जाटव वोटों में भी सेंध लग गई है. बसपा पर सवाल सिर्फ सत्ता से दूर होने का नहीं बल्कि अस्तित्व को बचाए रखने का खड़ा हो गया है. ऐसे में मुस्लिम समुदाय क्या मायावती पर भरोसा जता पाएगा?

मायावती का दलित-मुस्लिम फ़ेल रहा

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी में मुस्लिम समुदाय का बड़ा वोटबैंक सपा-कांग्रेस के साथ है और दूसरी तरफ़ दलित वोट भी अब बसपा के साथ पहले की तरह नहीं जुड़ रहा. मायावती 2017 और 2022 में दलित-मुस्लिम केमिस्ट्री बनाने का दांव चली थीं. 2017 और 2022 में मुसलमानों को बड़ी संख्या में टिकट बसपा ने दिया था, लेकिन सियासी ज़मीन पर कोई करिश्मा नहीं दिखा सके. इसकी वज़ह यह रही है कि मुस्लिमों की पहली पसंद सपा और दूसरी कांग्रेस रही है.

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मायावती यूपी में तीन बार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला चुकी हैं, जिसके कारण मुसलमान उन पर यक़ीन करने में हिचकते रहे हैं. केंद्र और यूपी की सत्ता में बीजेपी के आने के बाद मायावती की सियासत बदली है, जिसे लेकर विपक्ष बसपा को बीजेपी की बी-टीम बताता रहा है. इसके चलते मुस्लिमों के बीच बसपा को लेकर एक सियासी संदेह बना रहा, दूसरा कारण सामाजिक स्थिति भी है, जिसके चलते दलित-मुस्लिम समीकरण को सियासी परवान नहीं मिल सकी.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो यूपी के बदले हुए सियासी पैटर्न में मुस्लिम समुदाय उसी दल के साथ खड़ा रहता है, जो बीजेपी को हराते हुए नज़र आ रहा होता है. यूपी की सियासी लड़ाई के सीन से बसपा बाहर नजर आती है और दलित वोट भी पहले की तरह मायावती के साथ नहीं है. ऐसे में मुस्लिम समुदाय मानता है कि बसपा के साथ जाकर बीजेपी को हरा नहीं सकता है. मायावती अगर अपना छिटका दलित वोट फिर से जोड़ लेती हैं तभी मुस्लिमों का झुकाव उनकी तरफ़ हो सकता है. इसके अलावा दलित-मुस्लिम केमिस्ट्री सफल नहीं होगी.

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