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आगरा में कोहरे का कहर! ताजमहल का दीदार भी हुआ मुश्किल, टूरिस्ट मायूस

आगरा में घने कोहरे के कारण ताजमहल पूरी तरह से छिप गया. दृश्यता लगभग शून्य थी। मोहब्बत की यह अमर निशानी कोहरे की चादर में समा गई, जिससे हजारों देशी-विदेशी पर्यटक उसकी खूबसूरती को ठीक से देख नहीं पाए और उनकी उम्मीदें अधूरी रह गईं.

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ताजमहल पर छाई कोहरे की चादर (Photo- ITG)
ताजमहल पर छाई कोहरे की चादर (Photo- ITG)

उत्तर प्रदेश के आगरा में शनिवार की सुबह कुछ ऐसी रही, मानो कोहरे के समुद्र में ताजमहल गोते लगा रहा हों. मोहब्बत की अमर निशानी ताजमहल कोहरे की ऐसी चादर में समा गया जो पर्यटकों के लिए कल्पनातीत रहा. मौसम के मिजाज में आए बदलाव के कारण चारों तरफ घना कोहरा छाया रहा और ताजमहल देखने आए हजारों देशी-विदेशी पर्यटक उसकी विहंगामता और खूबसूरती से वंचित रह गए.

सुबह से ही आगरा की फिजा में कोहरा किसी रहस्यमयी पर्दे की तरह टंगा रहा. दृश्यता ना के बराबर रही. यमुना किनारे खड़ा ताजमहल दिखाई देने के बजाय पर्यटकों की कल्पना में ही उभरता रहा. ऐसा लग रहा था जैसे कोहरे ने ताजमहल को अपने आंचल में समेटकर छिपा लिया हो और शहर को सफेद धुएं के समुद्र में डूब गया हो.

पर्यटकों की आंखें बार-बार आसमान और सामने फैले धुंधले को चीरने की कोशिश करती रहीं. कोई आंखें फैला रहा था, कोई मोबाइल कैमरे में ज़ूम बढ़ा रहा था, लेकिन मौसम की धुंध के सामने हर कोशिश बेबस नजर आई. कोहरा यहां केवल मौसम का विषय भर नहीं था, बल्कि ताजमहल देखने आने वालों की उम्मीदों पर तुषारापात हो जाना था.

महाराष्ट्र के सोलापुर से ताजमहल देखने आईं कविता तिवारी ने मायूसी भरे स्वर में कहा कि वे पहली बार आगरा आई थीं. उनका कहना था कि ताजमहल देखने आए थे, पर फॉग की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा, पूरा आना ही वेस्ट हो गया.

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बेंगलुरु से आईं शारदा ने बताया कि कोहरे की वजह से ताजमहल का दीदार नहीं हो सका. उन्होंने कहा कि बस बाहर का गेट ही देख पाए, आगे सब कुछ सफेद धुंध में गुम था. उनके चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी, जैसे किसी ने सपने के बीच से ही पर्दा गिरा दिया हो.

ओडिशा के कटक से आईं रेखा वेंकटेश ने ठिठुरते हुए बताया कि आगरा पहुंचने पर कुछ भी दिखाई नहीं दिया. उन्होंने कहा कि इतना कोहरा और इतनी ठंड थी कि ताजमहल तो दूर, आसपास का नजारा भी साफ नहीं दिखा. फॉग की वजह से सब कुछ ढका रहा और उनका आना भी बेकार हो गया.

हैदराबाद से आए नागराज ने भी इसी पीड़ा को साझा किया. उनका कहना था कि फॉग बहुत ज्यादा था, जिसकी वजह से ताजमहल का कुछ भी नहीं देख पाए. उनके शब्दों में वह कसक थी, जो लंबे सफर के बाद अधूरे रह गए सपने से उपजती है.

पर्यटन पर निर्भर आगरा की सुबह उस दिन कोहरे की कैद में रही. ताजमहल अपनी जगह अडिग खड़ा रहा, लेकिन आंखों से ओझल होकर. ऐसा लगा मानो कोहरा कह रहा हो- आज ताजमहल नहीं, सिर्फ इंतज़ार मिलेगा.

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