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इलाहाबाद हाई कोर्ट को मिले 24 नए जज, 160 में से अब भी 50 पद खाली

केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में 24 नए जजों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है. 10 वकीलों और 14 न्यायिक अधिकारियों को जज बनाया गया है. कर्नाटक हाई कोर्ट में तीन और हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में दो नए जज नियुक्त हुए हैं.

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 केंद्र ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 24 नए जजों की नियुक्ति को मंजूरी दी. (File Photo: PTI)
केंद्र ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 24 नए जजों की नियुक्ति को मंजूरी दी. (File Photo: PTI)

इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायिक प्रक्रिया को गति देने के लिए केंद्र सरकार ने 24 नए जजों की नियुक्ति को मंजूरी दी है. राष्ट्रपति भवन की अधिसूचना के अनुसार, 160 जजों की क्षमता वाले इस हाई कोर्ट में अब जजों की संख्या 109 हो गई है, जिससे रिक्तियां 74 से घटकर 50 रह गई हैं. इनमें 10 वकील और 14 वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी शामिल हैं, जिन्हें जज बनाया गया है.

नए जजों में 14 न्यायिक अधिकारियों के नाम हैं: डॉ. अजय कुमार (द्वितीय), चवन प्रकाश, दिवेश चंद्र सामंत, प्रशांत मिश्र (प्रथम), तरुण सक्सेना, रजिस्ट्रार जनरल राजीव भारती, पदम नारायण मिश्र, लक्ष्मीकांत शुक्ल, जय प्रकाश तिवारी, देवेंद्र सिंह (प्रथम), संजीव कुमार, वाणी रंजन अग्रवाल, अचल सचदेव, और बबीता रानी.

वहीं, जिन 10 वकीलों को जज बनाया गया है उनके नाम हैं: विवेक सरन, विवेक कुमार सिंह, गरिमा प्रसाद, सुधांशु चौहान, अवधेश कुमार चौधरी, स्वरूपमा चतुर्वेदी, सिद्धार्थ नंदन, कुणाल रवि सिंह, इंद्रजीत शुक्ल, और सत्यवीर सिंह. 

इन दो हाई कोर्ट में भी जजों की नियुक्ति

कर्नाटक हाई कोर्ट में तीन अधिवक्ताओं- गीता कड़बा भरत राजा शेट्टी, बोरकट्टे मुरलीधर पाई, और त्यागराज नारायण इनावली को दो वर्ष के लिए अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया है. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में दो अधिवक्ताओं- जिया लाल भारद्वाज और रोमेश वर्मा को जज बनाया गया है.

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देश के 25 हाई कोर्ट में 330 पद हैं खाली

देश के 25 हाई कोर्ट में कुल स्वीकृत पद 1,122 हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 792 जज कार्यरत हैं, जिससे 330 पद रिक्त हैं. विधि और न्याय मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, कई हाई कोर्ट कॉलेजियम ने 200 से अधिक रिक्तियों के लिए नाम अनुशंसित नहीं किए हैं. केंद्र को भेजे गए कई नामों की बैकग्राउंड जांच चल रही है, और कुछ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. यह कदम लंबित मामलों के बोझ को कम करने और न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा.

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