भारत में इंटरनेट आज भी एक असमान कहानी जैसा है. जहां शहरों में फाइबर लाइनें तेज चलती हैं, वहीं लाखों गांव अभी भी धीमे नेटवर्क के भरोसे हैं. आसमान में उड़ रहे सैटेलाइट से डायरेक्ट इंटरनेट देने भारत आ रहा है Starlink. ये अरबपति Elon Musk की कंपनी है जो सैटेलाइट इंटरनेट बेचती है.
Starlink सिर्फ एक नई सर्विस नहीं, बल्कि इंटरनेट पहुंचाने का एक बिल्कुल अलग तरीका है, जिसे समझना जरूरी है. हाल ही में Starlink India की वेबसाइट से प्लान लीक हो गया.
Starlink India की वेबसाइट ने फिलहाल जो प्लान अपनी साइट पर दिखाया था, वह प्रीमियम कैटेगरी में आता है. करीब 8600 रुपये महीने का इंटरनेट और लगभग 34000 रुपये की हार्डवेयर किट, यानी सेटअप आसान है, लेकिन लागत ज्यादा है.
हालांकि Starlink ने क्लैरिफिकेशन जारी करके बताया कि ये प्लान गलत हैं और वेबसाइट पर गलती से अपलोड कर दिए गए थे. अभी ऑफिशियल इंडिया प्लान नहीं आया है. Starlink को केंद्र से हरी धंडी जरूर मिल गई है, लेकिन कई अप्रूवल्स अब भी पेंडिंग हैं, इसलिए ऑफिशियल अनाउंसमेंट का इंतजार करना होगा.
Starlink के बारे में जानें सबकुछ
बहरहाल, आपके लिए अब ये जानना जरूरी है कि ये Starlink या सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करते हैं, क्या प्रॉबल्म सॉल्व करते हैं और भारतीय इंटरनेट यूजर्स और मार्केट पर कैसे इंपैक्ट डाल सकते हैं.
Starlink की असली ताकत उसके सैटेलाइट नेटवर्क में है. दुनिया की ट्रेडिशनल सैटेलाइट इंटरनेट सर्विसेज़ बहुत ऊंचाई पर घूमने वाले भारी सैटेलाइट पर निर्भर रहती हैं, जो धरती से लगभग 36,000 किलोमीटर ऊपर होते हैं. इतनी दूरी का मतलब है कि डेटा को आने-जाने में टाइम लगता है और इंटरनेट में देरी महसूस होती है.
Starlink इस पूरी सोच को बदल देता है. इसके छोटे-छोटे सैटेलाइट लगभग 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ते हैं, और इतनी कम दूरी की वजह से इंटरनेट की लेटेंसी कम होती है और स्पीड बेहतर मिलती है. हालांकि ये सर्विस सस्ती नहीं है.
स्टारलिंक इंटरनेट कैसे काम करता है और आसमान में कितने LEO सैटेलाइट हैं?
Starlink इंटरनेट का पूरा सिस्टम आपकी छत पर लगी एक स्मार्ट डिश और आसमान में घूम रहे Low Earth Orbit यानी LEO सैटेलाइट पर चलता है. जब आप कोई वीडियो चलाते हैं, वेबसाइट खोलते हैं या कॉल करते हैं, तो आपका डेटा पहले आपके Wi-Fi राउटर से डिश तक जाता है. यह डिश सीधे आसमान में लगभग 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर घूम रहे Starlink सैटेलाइट से कनेक्ट हो जाती है.
वहां से डेटा या तो किसी ज़मीन वाले ग्राउंड स्टेशन तक जाता है या फिर लेज़र लिंक के ज़रिए एक सैटेलाइट से दूसरे सैटेलाइट तक जाता हुआ इंटरनेट सिस्टम से जुड़ता है. इतना कम फ़ासला तय होने की वजह से लेटेंसी भी कम रहती है और स्पीड तेज मिलती है.
अभी आसमान में Starlink के लगभग 8,500 से ज़्यादा एक्टिव LEO सैटेलाइट काम कर रहे हैं और कुल लॉन्च किए गए सैटेलाइट 9,000 के करीब पहुंच चुके हैं, इसलिए लगभग हर लोकेशन पर किसी न किसी सैटेलाइट का सिग्नल हमेशा मिलता रहता है.
स्टारलिंक या सैटेलाइट इंटरनेट, ट्रेडिशनल इंटरनेट से कैसे अलग है?
ट्रेडिशनल इंटरनेट जमीन पर बिछे फाइबर केबल, मोबाइल टावर और अंडरसी केबल पर चलता है. मतलब आपके घर तक इंटरनेट पहुंचने से पहले उसे कई लेयर, कई जंक्शन और कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. इसी कारण बहुत दूर के इलाकों में या पहाड़, जंगल जैसी जगहों पर इंटरनेट पहुंचाना मुश्किल हो जाता है. Starlink इस पूरे सिस्टम को उलट देता है.
यहां जमीन की केबल की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. आपकी छत की डिश सीधे आसमान में लो-हाइट पर घूम रहे सैटेलाइट से कनेक्ट हो जाती है और उसी सैटेलाइट से डेटा आगे पास होता है. कम दूरी की वजह से लेटेंसी कम होती है और जहां केबल नहीं पहुंच सकती, वहां भी हाई-स्पीड इंटरनेट मिल सकता है. यानी ट्रेडिशनल इंटरनेट 'ज़मीन पर' चलता है जबकि Starlink 'आसमान से' सीधे आपके घर तक आता है.
Starlink की कहां जरूरत है?
भारत के लिए यह मॉडल बेहद दिलचस्प है क्योंकि यहां ऐसे इलाके अब भी हैं जहां फाइबर लाइन बिछाना बहुत मुश्किल है. पहाड़ों, जंगलों, दूर बसे गांवों और ऐसी जगहों में, जहां नेटवर्क आज भी संघर्ष करता है, Starlink का इंटरनेट आसमान से सीधा घरों तक पहुंच सकता है.
यूज़र के घर पर लगी एक छोटी डिश आसमान में मौजूद Starlink सैटेलाइट से डायरेक्ट कनेक्ट होती है. यह डिश स्मार्ट है और खुद ही आसमान में सही सैटेलाइट ढूंढती है और खुद ही दिशा एडजस्ट करती रहती है. किसी इंजीनियर के बार-बार आने की जरूरत नहीं. Elon Musk का Starlink LEO (Low Earth Orbit) सैटेलाइट यूज करता है.
इस सिस्टम का दूसरा हिस्सा है Starlink का ग्राउंड नेटवर्क. ज़मीन पर बने ग्राउंड स्टेशन और सैटेलाइट्स के बीच चलने वाली लेज़र लिंक टेक्नोलॉजी. कई बार सैटेलाइट आपस में ही डेटा पास कर देते हैं और इंटरनेट का सिग्नल दुनिया के किसी भी हिस्से तक भेज देते हैं. इसी वजह से Starlink उन जगहों पर भी काम कर सकता है जहां किसी और तरह का इंटरनेट पहुंचना लगभग नामुमकिन है.
हर किसी के लिए नहीं है Starlink
लोगों को लगता है कि Starlink भारत में इंटरनेट की तमाम समस्याएं सॉल्व कर देगा, लेकिन ऐसा नहीं है. जहां तक स्पीड का सवाल है तो Starlink से बेहतर स्पीड भारत में सभी कंपनियां देती हैं. लेकिन स्टारलिंक सिर्फ स्पीड की प्रॉबल्म नहीं सॉल्व करता है, बल्कि कनेक्टिविटी की इश्यू ठीक करता है. ट्रेडिशनल इंटरनेट फाइबर कट होने पर बंद हो जाते हैं, लेकिन Starlink सैटेलाइट बेस्ड है, इसलिए यहां फाइबर कट होने की भी कोई समस्या नहीं है.
भारत में कई ऐसे इलाके हैं जहां फाइबर पहुंच ही नहीं सकता, उन इलाकों के लिए ये स्टारलिंक किसी वरदान से कम नहीं है. ये सस्ता नहीं है महंगा और हर लोग इसे भारत में अफोर्ड भी नहीं करे सकते हैं.
भारत पर Starlink का क्या असर पड़ेगा?
अगर Starlink भारत में लॉन्च होता है तो इसका सबसे बड़ा असर उन इलाकों में दिखेगा जहां आज भी भरोसेमंद इंटरनेट नहीं पहुंच पाता, जैसे पहाड़ी क्षेत्र, दूर बसे गांव, बॉर्डर एरिया, जंगलों के आसपास के इलाके और छोटे कस्बे. इन जगहों में स्कूल, हेल्थ सेंटर, छोटे बिज़नेस और सरकारी दफ़्तर अब तक खराब नेटवर्क की वजह से कई बार डिजिटल सुविधाओं से दूर रह जाते थे.
Starlink के आने से ऐसे इलाकों में फास्ट और स्टेबल इंटरनेट पहुंच सकता है, जिससे ऑनलाइन क्लास, टेली-मेडिसिन, डिजिटल पेमेंट, CCTV मॉनिटरिंग और ई-गवर्नेंस जैसी चीज़ें आसानी से हो सकेंगी. हालांकि कीमत ज़्यादा होने की वजह से ये तुरंत हर घर तक नहीं पहुंचेगा, लेकिन डिजिटल इंडिया में यह उन लोगों तक इंटरनेट ले जाएगा जो आज भी कवरेज मैप के बाहर हैं. लंबे समय में, अगर प्राइस कम हुए और कंपटीशन बढ़ा, तो Starlink भारत के इंटरनेट सिस्टम में बड़ा मोड़ साबित हो सकता है.
बैकअप इंटरनेट के तौर पर भी किया जाएगा यूज
Starlink ने दावा किया है कि इसका अपटाइम 99.9% तक है. आम तौर पर ट्रेडिशनल इंटरनेट महीने में कभी कभार बंद हो जाते हैं या स्पीड कम हो जाती है. कंपनी का दावा सही निकला तो Starlink इंटरनेट महीनों सालों बिना रूके काम करता रहेगा.
फायदे साफ हैं, स्पीड अच्छी, लेटेंसी कम, इंस्टॉलेशन आसान और कवरेज लगभग हर जगह. लेकिन चुनौतियां भी मौजूद हैं. भारी बारिश, घने बादल या छत पर मौजूद रुकावटें कभी-कभी सिग्नल को कम कर सकती हैं. इसके अलावा भारत जैसा प्राइस-सेंसिटिव मार्केट इतनी महंगी सर्विस को कितनी जल्दी अपनाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा.
Starlink का भारत में आना सिर्फ एक नई इंटरनेट सर्विस का लॉन्च नहीं है, यह इस बात का संकेत है कि कनेक्टिविटी का फ्यूचर अब आसमान में तैयार हो रहा है. जैसे मोबाइल नेटवर्क ने कम्युनिकेशन को बदल दिया था, उसी तरह सैटेलाइट इंटरनेट उन जगहों को बदल सकता है जहाँ आज भी फोन में 'नो सिग्नल' लिखा आता है.