सर्दियों में स्मोग घटाने के लिए दिल्ली सरकार ने कोयला जलाने पर प्रतिबंध लगाने का सख्त फैसला लिया है. क्योंकि हर साल सर्दियां आते ही दिल्ली-NCR का पूरा इलाका जहरीले स्मोग की गिरफ्त में आ जाता है. वजह है गाड़ियों का प्रदूषण, पराली जलाना और कोयले से चलने वाले उद्योगों से निकलने वाला धुआं. इस फैसले के बाद से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के छोटे-मोटो उद्योगों को कोयले के बजाय बायोमास पर शिफ्ट होना पड़ रहा है.
साल 2020 तक दिल्ली-एनसीआर के सिर्फ 15 फीसदी लघु उद्योग ही बायोमास का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर करते थे. लेकिन अब लघु उद्योग की 1695 यूनिट्स में से करीब आधे बायोमास का इस्तेमाल करना शुरू कर चुकी हैं.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स को पानीपत स्थित एक छोटे कपड़ा रिसाक्लिंग यूनिट के मैनेजर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि आप हवा के रंग और उसकी गंध से पहचान सकते हैं कि किस उद्योग में कोयला इस्तेमाल हो रहा है. और कहां बायोमास. दिल्ली से पानीपत दिल्ली की दूरी मात्र 100 किलोमीटर है.
बायोमास से आया है हवा की क्वालिटी में सुधार
उसने कहा कि जब से हम बायोमास पर शिफ्ट हुए हैं तब से हवा की क्वालिटी में सुधार आया है. हवा की गुणवत्ता को नापना हमारे लिए तो कठिन है लेकिन हम ये महसूस कर सकते हैं. सेंटर ऑफ साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) ने साल 2020 में पानीपत की एक स्टडी की थी. जिसमें बताया था कि अगर कोयले से चलने वाले उद्योग बायोमास पर आ जाएं तो सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन में 70 से 80 फीसदी और नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा में 40 से 60 फीसदी की गिरावट आएगा.
पानीपत, सोनीपत और फरीदाबाद की कपड़ा रिसाइकिल करने वाली, डाई करने वाली और फूड प्रोसेसिंग कंपनियां बहुत तेजी से बायोमास की तरफ गईं. उन्होंने कोयले को बतौर ईंधन इस्तेमाल करना बंद कर दिया. बायोमास यानी खेती-बाड़ी से निकले हुए बेकार की चीजें. जैसे- पराली. इन्हें बायोमास में बदलकर उद्योग तक पहुंचाया जाता है. जिसकी वजह से प्रदूषण कम होता है.

कोयला बहुत पहले से है प्रदूषण की बड़ी वजह
ब्रिटिश सरकार ने भी साल 2021 में एक स्टडी की थी जिसमें बताया था कि बायोमास कोयले की कीमत से 14 फीसदी सस्ता पड़ता है. CSE ने साल 2017 में एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में पेटकोक कोयला ईंधन का किंग था. लेकिन बाद में जब इस पर प्रतिबंध लगा तो उद्योगों के पास शिफ्ट होने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. कोयला प्रदूषण का सबसे बड़ी वजह माना जाता है.
पानीपत के सीनियर पॉल्यूशन कंट्रोल अधिकारी कमलजीत सिंह ने कहा कि पेटकोक पर प्रतिबंध लगाने के बाद लोग साधारण कोयले पर आ गए. लेकिन अब सैकड़ों कोयला बेचने वाले व्यापरी बायोमास बेच रहे हैं. इस इलाके की 27 फीसदी कंपनियां नेचुरल गैस का इस्तेमाल करती हैं. 250 से ज्यादा यूनिट्स यानी 15 फीसदी उद्योग बिजली से चलते हैं.
A toxic smog engulfs India's capital every winter, as particles from bonfires of crop stubble and vehicle exhausts hang in the air, but New Delhi is enforcing a ban on coal burning from this month that is forcing industry to shift to biomass. https://t.co/0E9GcLoP5y
— Reuters Science News (@ReutersScience) January 25, 2023
लघु उद्योगों को बायोमास पर शिफ्ट होना आसान
कॉन्फेडेरेशन ऑफ बायोमास एनर्जी इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के चेयरमैन मोनीश आहूजा कहते हैं कि छोटे उद्योगों को बायोमास में शिफ्ट होना आसान है. क्योंकि नेचुरल गैस महंगी पड़ती है. बायोमास सस्ता है. पानीपत में 398 इंडस्ट्रियल यूनिट्स में से करीब 81 फीसदी बायोमास पर शिफ्ट हो चुकी हैं. जिससे कोयला इस्तेमाल करने में साल 2020 की तुलना में 56.2 फीसदी की गिरावट आई है.
ऐसी इंडस्ट्रीज ईंधन के तौर पर एग्रीकल्चर वेस्ट का इस्तेमाल करती हैं. जैसे पराली, ग्राउंडनट, सरसों से निकले ब्रिकेट्स आदि. लेकिन चिंता की बात ये है कि कोयले पर प्रतिबंध लगते ही बायोमास की कीमतों में तेजी से इजाफा हो रहा है. बायोमास की औसत कीमतों 36 फीसदी का इजाफा तो साल 2022 के अंत तक हो गया था. यानी 7711 रुपये प्रतिकिलो. जबकि यह साल 2021 के अंत में 5677 रुपये प्रतिकिलो था.