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शरद पवार ने सीट शेयरिंग में कांग्रेस-उद्धव सेना को पानी पिलाया, क्या है अगला टारगेट ? । Opinion

महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की उपस्थिति बहुत बड़े उलट फेर के लिए जानी जाती रही है. एमवीए में भी गुरुवार को जो फैसला हुआ वो एक तरह का बहुत बड़ा उलट फेर है. तीनों सहयोगियों का बराबर सीटों पर चुनाव लड़ना अपने आप में बहुत कुछ कहता है, जिसके परिणाम आने वाले दिनों में दिखेंगे.

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महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में ही रहते हैं शरद पवार, उनके दाहिन राहुल गांधी और बाएं उद्धव ठाकरे
महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में ही रहते हैं शरद पवार, उनके दाहिन राहुल गांधी और बाएं उद्धव ठाकरे

शरद पवार को यूं ही नहीं महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. एमवीए गठबंधन में गुरुवार को इस मराठा क्षत्रप ने जो किया वो कोई सोच भी नहीं सकता था. एमवीए में कांग्रेस और उद्धव शिव सेना के मुकाबले काफी कमजोर एनसीपी (शरद पवार) ने अपने लिए उतने ही टिकटों का जुगाड़ कर लिया जितने पर उनके दोनों सहयोगी चुनाव लड़ेंगे. यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है. महाराष्ट्र की राजनीति को बहुत नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि इस बार यह बुजुर्ग राजनीतिज्ञ पहले ही ऐसे इशारा कर रहा था कि सीट शेयरिंग में एनसीपी (एसपी) कम सीटों पर तैयार नहीं होने वाली है . और मौका आने पर ऐसा करके भी दिखा दिया. विपक्षी महा विकास अघाड़ी गठबंधन ने फिलहाल 20 नवंबर को होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए 288 में से 255 सीटों के लिए समझौता फॉर्मूला तैयार कर लिया. जिसमें तीनों सहयोगियों को 85-85 सीटें दी गई हैं. लेकिन यह शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) के लिए बड़ी उपलब्धि की तरह है. जिसने कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के बीच सत्ता संघर्ष में बढ़त हासिल कर ली है. अब देखना यह है कि एमवीए की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री कौन बनता है?

1- एनसीपी (एसपी) खेमे को अतिरिक्त सीटें पवार की राजनीतिक कौशल का नतीजा 

अब तक  एनसीपी (एसपी) ने मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं था. 83 वर्षीय शरद पवार अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के चयन और चुनाव प्रचार पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे थे. एनसीपी (एसपी) लगभग 70-75 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही थी. इससे साफ जाहिर हो रहा था कि सीएम पद की महत्वाकांक्षा या रेस में वह शामिल नहीं है. पर अब जब एनसीपी (एसपी) 85 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है, तो तीनों में से कोई भी पार्टी, जो सबसे ज्यादा सीटें जीतेगी, मुख्यमंत्री पद पर दावा कर सकती है.
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में, एनसीपी (एसपी) ने अपने सभी साथियों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था. पवार ने राज्य में छह नए चेहरों की जीत सुनिश्चित की थी.

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इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि महाराष्ट्र में एमवीए में शामिल तीनों दलों ने जो बराबार सीटों पर चुनाव लड़ने की रजामंदी दी है उसके पीछे पवार का राजनीतिक कौशल और उनकी सौदेबाजी की ही क्षमता का ही कमाल है. पवार ने अपने सहयोगियों के साथ कुछ सीटों का आदान-प्रदान भी किया, जिससे उन्हें कुछ और सीटें मिल गईं. उदाहरण के लिए, उन्होंने पश्चिमी महाराष्ट्र की पाटन सीट शिवसेना (यूबीटी) के लिए छोड़ दी, जहां पिछले 10 वर्षों में उनकी पार्टी ने जीत दर्ज नहीं की थी, और बदले में मराठवाड़ा क्षेत्र में कुछ अन्य सीटें हासिल कर ली. इसके अलावा उन्होंने चंद्रपुर सीट से निर्दलीय विधायक किशोर जॉर्जेवार को अपनी पार्टी में शामिल करने जा रहे हैं, जिससे उन्हें एक और सीट मिलने की उम्मीद बढ़ गई है.

2- शरद पवार ने अभी हाल ही में अपनी पार्टी के सीएम की इच्छा जताई थी?

शरद पवार 2019 में उद्धव ठाकरे के नाम को आगे कर महाराष्ट्र में एंटी बीजेपी की सरकार बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पर इस बार पार्टी टूटने के बाद से शायद उन्होंने अपने आप को प्रूव करने की जिद पकड़ ली है. उन्होंने कई बार इस बीच ऐसे इशारे किए जिससे लगा कि अब वो एनसीपी (एसपी) से किसी को सीएम के रूप में देखना चाहते हैं. उन्होंने कुछ दिनों पहले यह भी इशारा किया था कि इस बार एनसीपी (एसपी) अधिक सीटों की डिमांड रखेगी. पवार ने जो कहा उसे करके दिखाया. अब उनके अगले टार्गेट पर नजर है.  कुछ दिनों पहले उन्होंने सांगली जिले के इस्लामपुर में हुई एक पार्टी रैली में महाराष्ट्र एनसीपी (एसपी) प्रमुख जयंत पाटिल की नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा की और कहा कि उन्हें उन पर पूरा भरोसा है. मुझे विश्वास है कि पाटिल राज्य को सही दिशा में ले जाएंगे. उनके इस बयान को राजनीतिक हलकों में उनकी पार्टी की ओर से पाटिल को संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने के रूप में देखा गया.

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पवार ने कांग्रेस और उद्धव सेना के बीच कई दौर की बातचीत और कठिन सौदेबाजी के बाद तीनों दलों के 85-85-85 सीट फॉर्मूला की घोषणा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) दोनों 100 सीटों पर दावा करने की कोशिश में एक-दूसरे से टकरा रहे थे. क्योंकि एमवीए की जीत की स्थिति में जिसकी सीटें ज्यादा होंगी मुख्यमंत्री पद पर उसका दावा उतना ही मजबूत होगा. शिवसेना (यूबीटी) उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना चाहती है, जबकि कांग्रेस के पास भी कई मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, जो हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी की सफलता से उत्साहित हैं, जहां वह राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

3- यूं ही नहीं कहा जाता है पवार को महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य

क्यूंकि महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार वो सब करने के लिए जाने जाते हैं जो कोई न जान सकता है और न समझ सकता है. उद्धव ठाकरे को कम विधायकों के साथ महाराष्ट्र की गद्दी दिलवाना हो या अपने भतीजे अजित पवार को बीजेपी कैंप में भेजकर डिप्टी सीएम बनवाना हो. उसे न केवल डिप्टी सीएम बनवाया बल्कि तुरंत वापस बुलाकर मोदी-शाह जैसे ताकतवर जोड़ी की किरकिरी भी करा दी.अभी उनके भतीजे अजित पवार शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम हैं और महायुति गठबंधन के साथ चुनाव भी लड़ रह हैं. पर अभी भी बहुत लोगों को ऐसा लगता है कि हो सकता है कि पवार चाचा ने अपने भतीजे को अपने एंटी गुट में किसी रणनीति के तहत प्लांट किया हो. क्योंकि भतीजा जब-जब चाचा से मिलता है एनडीए की धड़कन बढ़ जाती है. अब चाचा का नया कारनामा है कि एमवीए में एनसीपी ( एसपी) को कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी)के बराबर सीट हासिल करने की है.

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शायद यही कारण है कि शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. उनकी हर दल में पैठ है. मनमोहन सरकार में वो 10 साल तक केंद्रीय मंत्री रहते हैं. मोदी सरकार उन्हें पद्म विभूषण अवॉर्ड से सम्मानित करती है.इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी से बगावत कर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया और राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार ग्रहण करते हैं. 1980 में इंदिरा उनकी सरकार को बर्खास्त करती हैं.लेकिन शरद पवार 1983 आते-आते कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन कर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ एक बार फिर बना लेते हैं.

1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को मिली 54 सीटों पर जीत ने उन्हें वापस प्रदेश की राजनीति की ओर खींच लाती है. शरद पवार ने लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व करते हैं. 1987 में वो एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में वापसी करते हैं. राजीव गांधी के नेतृत्व में आस्था जता कर उनके करीब हो गए. शरद पवार को साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी हासिल कर लेते हैं.

1990 के विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में 141 पर कांग्रेस की जीत हो पाई थी लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायक की मदद से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की. ऐसा कर वो तीसरी बार सीएम बनने में कामयाब होते हैं.इतना ही नहीं 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद शरद पवार का नाम नारायण दत्त तिवारी, पी वी नरसिम्हा राव के साथ पीएम पद की रेस में भी शामिल था.

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