लोकसभा हो या राज्यसभा या विधानसभा सभी में चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों को संविधान के प्रति श्रद्धा रखने की शपथ दिलाई जाती है. ऐसा न करने पर वे किसी भी सरकारी कामकाज में हिस्सा नहीं ले सकेंगे. हाल ही में लोकसभा का चुनाव संपन्न हुआ है और इस चुनाव में जीतने वाली गठबंधन पार्टियों के नेता अलग-अलग पदों के लिए शपथ ले रहे हैं. आइए बताते हैं कि आखिर क्या हैं इसके असल मायने.
चुनाव जीतने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर से जीत का सर्टिफिकेट मिल जाने के बाद संबंधित शख्स निर्वाचित कहलाता है लेकिन बिना शपथ के वे कोई सरकारी काम नहीं कर सकते. यही वजह है कि उन्हें सबसे पहले शपथ दिलाई जाती है. शपथ नहीं लेने पर वे निर्वाचित जरूर माने जाएंगे लेकिन सांसद नहीं माने जाएंगे.
मोदी ऐसे लेंगे प्रधानमंत्री पद की शपथ
प्रधानमंत्री पद की शपथ कुछ इस प्रकार होती है, "मैं (व्यक्ति का नाम) शपथ लेता हूं, कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा. मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा. मैं संघ के प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक एवं शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगा. मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा."
शपथ किन्हें दिलाई जाती है?
देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री को - सरकारी सेवा के लिए पद की गरिमा बनाए रखने, ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने और हर हाल में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है.
शपथ की प्रक्रिया हिंदी, अंग्रेजी या फिर किसी भी भारतीय भाषा में ली जा सकती है. केंद्र और राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त होने वाले सांसद और विधायक गोपनीयता की शपथ लेते हैं.
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अनुच्छेद 75 के मुताबिक होती है शपथ
प्रधानमंत्री अनुच्छेद 75 के मुताबिक राष्ट्रपति के सामने शपथ लेते हैं. मसलन, उन्हें राष्ट्रपति शपथ दिलाते हैं. शपथ के लिए एक निर्दिष्ट शपथ पत्र का पालन किया जाता है, जिसे प्रधानमंत्री पढ़ते हैं और स्वीकार करते हैं. शपथ के बाद एक आधिकारिक प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री की शपथ लेने की तारीख और समय शामिल होती है, जिस पर प्रधानमंत्री से हस्ताक्षर भी कराए जाते हैं.