सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की अदालतों में लंबित आपराधिक मुकदमों के ट्रायल से पहले आरोप तय करने में हो रही अत्यधिक देरी पर गंभीर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा कि वह अगले दो महीने में पूरे देश की अदालतों के लिए 'चार्ज फ्रेमिंग' पर गाइडलाइन जारी करेगा. जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने ये फैसला सुनाया. इस देरी से आपराधिक कार्यवाही में ठहराव आता है. ये देरी सालों और दशकों तक मुकदमों के लंबित रहने के प्राथमिक कारणों में से एक है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 251 (बी) के अनुसार, सत्र अदालत को विशेष रूप से विचारणीय मामलों में आरोप तय करने चाहिए. कानून ये भी कहता है कि पहली सुनवाई के बाद 60 दिनों के अंदर-अंदर आरोप तय कर दिए जाने चाहिए. पीठ ने अपनी सुविचारित राय व्यक्त करते हुए कहा कि वैधानिक जनादेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए कुछ निर्देश पूरे भारत के लिए जारी करना जरूरी है.
कोर्ट की मदद करेंगे सॉलिसिटर और अटॉर्नी जनरल
सुनवाई के दौरान जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि उनकी सुविचारित राय यही है कि वैधानिक जनादेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए कुछ निर्देश पूरे भारत के लिए जारी करना जरूरी है.
पीठ ने इस मामले से जुड़े एक मामले में सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल से कोर्ट की सहायता करने को कहा है. इसी के साथ कोर्ट ने सहायता करने के लिए इस मामले में सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा को अमाइकस क्याेरे यानी न्यायमित्र नियुक्त किया है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस अरविंद कुमार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि हमने देखा है कि देश भर में बहुत से मामलों में 3-4 साल से आरोप तय नहीं हो रहे हैं.
2 साल में आरोप तय नहीं
कोर्ट ने कहा कि एक मामले में हमने नोटिस जारी किया है. आरोपी न्यायिक हिरासत यानी जेल में हैं. इस मामले में चार्जशीट 2023 में दाखिल की गई थी, लेकिन दो साल बीतने के बावजूद अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि इनके कारण और निवारण के कारगर उपाय ढूंढने और उन पर अमल करना जरूरी है.