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'इस्लाम कबूल करने, बीफ खाने का दबाव...', सूडान से स्वदेश लौटे आदर्श ने बताई आपबीती

सूडान में गृहयुद्ध के दौरान अपहरण किए गए ओडिशा के आदर्श बेहरा तीन महीने की पीड़ा के बाद सुरक्षित भारत लौट आए हैं. भुवनेश्वर एयरपोर्ट पर उनका भावुक स्वागत हुआ. आदर्श ने आतंकियों द्वारा अमानवीय यातना, जबरन बीफ खिलाने और इस्लाम कबूल करने के दबाव का आरोप लगाया. उनकी वापसी से परिवार और गांव ने राहत की सांस ली.

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सूडान में सत्ता पर कंट्रोल को लेकर गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है. (Photo: AFP/file)
सूडान में सत्ता पर कंट्रोल को लेकर गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है. (Photo: AFP/file)

ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले के कोटकान गांव रहने वाले आदर्श बेहरा आखिरकार तीन महीने के दर्दनाक संघर्ष के बाद युद्धग्रस्त सूडान से सुरक्षित स्वदेश लौट आए हैं. मंगलवार को भुवनेश्वर एयरपोर्ट पर जैसे ही आदर्श पहुंचे, वहां का माहौल भावुक हो गया. माता-पिता और पत्नी ने आंसुओं के साथ उनका स्वागत किया. इससे परिवार को सुकून मिला, जो बीते कई महीनों से आदर्श की सलामती को लेकर गहरी चिंता बनी हुई थी.

अपने अनुभव साझा करते हुए आदर्श ने बताया कि उन्हें कई दिनों तक पर्याप्त भोजन तक नहीं दिया गया. उन्होंने कहा, "मुझे रोज सिर्फ कुछ बिस्किट और ब्रेड दी जाती थी. कई बार मैंने ठीक से खाना भी नहीं खाया."

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आदर्श ने यह भी आरोप लगाया कि कैद के दौरान उन पर जबरन बीफ खाने का दबाव बनाया गया और इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया. उन्होंने कहा कि मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की यातनाएं झेलनी पड़ीं, जिन्हें याद करना आज भी उनके लिए आसान नहीं है.

तीन वर्षों से सूडान में काम कर रहे थे आदर्श

आदर्श बेहरा पिछले तीन वर्षों से सूडान में एक निजी प्लास्टिक कंपनी में काम कर रहे थे. इसी दौरान देश में भड़के गृहयुद्ध ने उनकी जिंदगी को अचानक खतरे में डाल दिया. आदर्श के अनुसार, युद्ध के हालात के बीच उन्हें आतंकियों ने अगवा कर लिया था. कैद के दौरान उन्हें गंभीर और अमानवीय यातनाओं से गुजरना पड़ा.

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सीएम मोहन माझी का किया धन्यवाद

स्वदेश लौटने के बाद आदर्श ने अपनी सुरक्षित वापसी के लिए भारत सरकार और ओडिशा सरकार का आभार जताया. उन्होंने कहा, "मैं मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करता हूं. उनके सहयोग से ही मैं सुरक्षित ओडिशा लौट सका हूं."

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आदर्श की वापसी की खबर से उनके गांव और आसपास के इलाके में भी खुशी की लहर है. ग्रामीणों ने इसे किसी चमत्कार से कम नहीं बताया. तीन महीने तक अनिश्चितता और डर के साए में जी रहे परिवार के लिए यह वापसी नई जिंदगी मिलने जैसी है.

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