‘केरलम्’ यानी नारियल के नाम से पहचान रखने वाला केरल आज गंभीर नारियल संकट का सामना कर रहा है. राज्य में नारियल और नारियल तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं, उत्पादन लगातार गिर रहा है और किसान भारी संकट में हैं. जलवायु परिवर्तन, कीटों का हमला, खेती योग्य जमीन की कमी और प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी इसकी बड़ी वजहें बताई जा रही हैं.
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम स्थित श्रीराम ऑयल मिल में शाम के वक्त भारी भीड़ थी. लोग नारियल तेल और उससे बनने वाले दूसरे उत्पाद लेने पहुंचे थे. लेकिन 40 साल से इस व्यापार में लगे ऑयल मिल मालिक हरिहरन कहते हैं कि आज केरल में पर्याप्त नारियल मिलना मुश्किल हो गया है. मिल को अब आसपास के राज्य तमिलनाडु पर निर्भर रहना पड़ता है.
हरिहरन बताते हैं, केरल में नारियल उत्पादन धीरे-धीरे कम हो रहा है. पहले हर घर में नारियल के पेड़ होते थे. घरेलू जरूरत पूरी होती थी और बाकी बिक जाता था. अब हालात बदल गए हैं. क्लाइंबर (पेड़ पर चढ़ने वाले मजदूर) नहीं मिलते. अब हमें तमिलनाडु पर निर्भर रहना पड़ता है.
केरल की पहचान पर संकट
‘केरा’ यानी नारियल- उसी से ‘केरल’ नाम पड़ा. लेकिन आज 'गॉड्स ओन कंट्री' अपनी पहचान खोने के डर से जूझ रहा है, क्योंकि यहां नारियल के पेड़ और उत्पादन लगातार घट रहे हैं.
राज्य में नारियल और नारियल तेल की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिला है. हरिहरन के मुताबिक, पिछले साल एक नारियल 30 रुपये से कम का था. अब 70 से 72 रुपये में मिल रहा है. ऐसे में नारियल तेल भी 1 किलो 400-410 रुपये तक पहुंच गया है.
क्यों घट रहा है नारियल उत्पादन?
जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर
कम अवधि में भारी बारिश, गर्म रातें और लू के थपेड़ों ने नारियल की पैदावार को बुरी तरह प्रभावित किया है. इससे कीटों का हमला भी बढ़ा है. सबसे बड़ा खतरा रेड पाम वीविल नामक कीट का है, जो पेड़ों को अंदर से खोखला कर देता है.
जमीन का बड़े पैमाने पर निर्माण में बदलना
तिरुवनंतपुरम के कोकोनट रिसर्च स्टेशन के असिस्टेंट प्रोफेसर और प्रभारी संतोष कुमार टी बताते हैं, गांव अधिकारियों से डेटा लें तो पता चलेगा कि बड़ी संख्या में नारियल के खेतों को इमारतों, अपार्टमेंट्स और विला में बदल दिया गया है.
कुशल श्रमिकों की भारी कमी
पहले प्रशिक्षित क्लाइंबर नारियल पेड़ों की सफाई करते थे, जिससे कीटों का असर कम होता था. अब ज्यादातर काम प्रवासी मजदूरों या मशीनों से होता है. लेकिन मशीनें पेड़ की चोटी तक नहीं पहुंचतीं, जहां सफाई सबसे जरूरी होती है.
रेस्तरां ने बदला रुख
कीमत बढ़ने से आम घरों ने नारियल खरीद कम किया है. हरिहरन बताते हैं, मांग तो है, क्योंकि केरल के घरों में नारियल जरूरी है. लेकिन लोग कम मात्रा में खरीद रहे हैं. रेस्तरां तो नारियल तेल छोड़कर दूसरे तेलों पर शिफ्ट हो चुके हैं.
वैश्विक मांग भी बढ़ी समस्या
नारियल और नारियल तेल की वैश्विक मांग बढ़ी है. तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में वैज्ञानिक तरीके से खेती बढ़ रही है, लेकिन केरल में आपूर्ति और मांग के बीच बड़ा अंतर बन गया है. इससे कीमत और बढ़ गई है.
क्या समाधान है?
कोकोनट रिसर्च स्टेशन के संतोष कुमार कहते हैं कि सही उपायों से संकट को रोका जा सकता है...
- नए पौधे बड़े पैमाने पर लगाए जाएं
- कुशल श्रमिकों से पेड़ों की सफाई
- सही खाद और उर्वरक
-वैज्ञानिक लाइनिंग
- निर्माण कार्यों पर नियंत्रण
संतोष कुमार बताते हैं कि एक सकारात्मक पहलू यह है कि कई रबर किसान अब नारियल की खेती की ओर लौट रहे हैं। वैज्ञानिक तरीके अपनाए तो उत्पादन बढ़ सकता है. यह संकट सिर्फ फसल का नहीं- पहचान का भी है.
मलयाली समाज में नारियल हर चीज में इस्तेमाल होता है- खाना, तेल, पूजा, औषधि और रोजमर्रा की जरूरतें. इसलिए यह संकट सिर्फ एक कृषि समस्या नहीं, बल्कि उस पहचान का संकट है जो केरल को ‘नारियल की धरती’ बनाती है.