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कैश कांड केस: ‘क्या कानून बनाने वालों को ये भी नहीं पता?’ जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर SC का नोटिस

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया पर अब सुप्रीम कोर्ट की नजर है. लोकसभा स्पीकर द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति को चुनौती देते हुए जस्टिस वर्मा ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जनवरी में इस संवैधानिक विवाद की सुनवाई होगी.

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Supreme Court
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सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने संसद में उनके खिलाफ शुरू की गई महाभियोग (इम्पीचमेंट) प्रक्रिया को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की है. जस्टिस वर्मा का कहना है कि उनके मामले में जजेज इन्क्वायरी एक्ट 1968 में तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा और राज्यसभा के सचिवालयों को नोटिस जारी किया है और उनसे जवाब मांगा है.

क्यों दायर की याच‍िका, ये है मामला 

बता दें कि नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास से जला कैश मिलने के मामले में फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने लोकसभा स्पीकर की ओर से तीन सदस्यीय जांच कमेटी को गठन को चुनौती दी है. जस्टिस वर्मा ने कमेटी को अवैध बताया. याच‍िका पर नोटिस जारी करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता ने मौखिक टिप्पणी की, 'क्या कानून बनाने वालों को ये भी नहीं पता कि ऐसा नहीं किया जा सकता?'

क्या है तर्क 

याचिका में ये भी कहा गया है कि महाभियोग प्रस्ताव को दोनों सदनों से एक ही दिन में पारित किया जाना अनिवार्य था, जबकि इस संवैधानिक शर्त का भी पालन नहीं किया गया. जस्टिस वर्मा ने विशेष रूप से उस तीन सदस्यीय समिति की वैधता पर सवाल उठाया है, जिसका गठन जजेज इन्क्वायरी एक्ट के तहत केवल लोकसभा द्वारा किया गया. उनका तर्क है कि ये प्रक्रिया कानून और संविधान दोनों के खिलाफ है.  कानून के मुताबिक, जब किसी जज को हटाने का प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया जाता है तो जांच समिति का गठन भी लोकसभा और राज्यसभा मिलकर संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए, न कि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा एकतरफा तरीके से.

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जस्टिस वर्मा की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव आने की स्थिति में जांच समिति का गठन भी दोनों सदनों की साझा प्रक्रिया से होना चाहिए था. ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अकेले समिति बनाना कानूनन सही नहीं ठहराया जा सकता. अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा सचिवालयों के जवाब के बाद अगली सुनवाई में ये तय करेगा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ शुरू की गई महाभियोग प्रक्रिया कानून के अनुरूप है या नहीं. 

सात जनवरी तक देना होगा जवाब 

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की कार्रवाई के लिए लोकसभा के द्वारा गठित की गई कमेटी को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी क‍िया है. जस्टिस दीपंकर दत्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटिस जारी कर दोनों सदनों के सेक्रेटरी को सात जनवरी तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. 

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