जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठियां समकालीन राजनीति और समाज का जीवंत दस्तावेज हैं. नेहरू के पत्र आज भी जीवंत हैं क्योंकि वे भारत की आधुनिक चुनौतियों, जैसे सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद, भारत की वैश्विक भूमिका और सामाजिक न्याय के सवाल को संबोधित करते हैं. लेकिन ये दस्तावेज वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में विवादास्पद भी हैं, इसलिए ये चिट्ठियां वर्तमान सियासी बहस का हिस्सा बन गईं हैं.
जवाहरलाल नेहरू उम्दा स्टेट्समैन के अलावा प्रखर लेखक और विचारक थे. चिट्ठियां उनके विचारों का प्रवाह थीं. उन्होंने अपने जीवन में हजारों पत्र लिखे. अब बीजेपी सरकार इन चिट्ठियों तक पहुंच चाहती है. लेकिन सवाल है कि क्या नेहरू की चिट्ठियां, जिनमें से दर्जनों उस समय की है जब वे स्वतंत्रता सेनानी थे, गांधी परिवार की हैं या फिर इसके बारे में देश को जानने का हक है. केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि, 'ये निजी पारिवारिक दस्तावेज़ तो बिल्कुल भी नहीं हैं, ये भारत के प्रथम प्रधानमंत्री से जुड़े महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभिलेख हैं. ऐसे दस्तावेज सार्वजनिक अभिलेखागार में होने चाहिए, किसी बंद कमरे में नहीं.'
दरअसल पत्रों के जरिए नेहरू का संवाद न सिर्फ निजी संबंधों के लोगों से होता था बल्कि पीएम होने के नाते वे देश दुनिया की हस्तियों से विचारों का आदान-प्रदान करते थे. याद रहे कि बतौर पीएम नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को बढ़ावा दिया. इस दौरान उनका कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ संवाद होता था. ये दस्तावेज भी नेहरू पेपर्स में शामिल हो सकते हैं.
लगभग 17 सालों तक भारत के प्रधानमंत्री रहने वाले नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा के अलावा राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठियां लिखी. इसके अलावा उनकों उस समय की प्रमुख व्यक्तियों जैसे एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, पद्मजा नायडू, अरुणा आसफ अली, विजया लक्ष्मी पंडित, जीबी पंत, और जगजीवन को पत्र लिखे. ये चिट्ठियां नेहरू की विचारधारा को प्रतिबिंबित करते हैं.
नेहरू-एडविना की चिट्ठियों के बारे में क्या जानकारी है?
नेहरू की ओर से एडविना माउंटबेटेन को लिखी गई चिट्ठियों तक अभी किसी की पहुंच नहीं है. बता दें कि एडविना माउंटबेटेन भारत में आखिरी ब्रिटिश वायसराय लार्ड माउंटबेटेन की पत्नी थीं. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से उनकी गहरी दोस्ती थीं.
एडविना की दो बेटियां थीं- पैट्रिशिया और पामेला.
रिपोर्ट के अनुसार माउंटबेटन परिवार के सदस्यों, जैसे एडविना माउंटबेटन की बेटी पामेला हिक्स ने कुछ पत्र देखे थे. पामेला ने अपनी किताब डॉटर ऑफ एम्पायर: लाइफ एज़ ए माउंटबेटन में इसका ज़िक्र किया है.
PTI की एक रिपोर्ट के अनुसार, पामेला ने लिखा कि उनकी मां और नेहरू के बीच एक "गहरा रिश्ता" था जो तब शुरू हुआ जब वह 1947 में अपने पति और भारत के आखिरी वायसराय, लॉर्ड लुई माउंटबेटन के साथ भारत आईं.
वह बताती हैं कि इस पत्र में उन्हें महसूस हुआ कि "वह और मेरी मां एक-दूसरे से कितना गहरा प्यार और सम्मान करते थे." पामेला ने आगे कहा कि, 'एडविना को पंडितजी में वो साहचर्य और बुद्धि और विचारों की वो समानता मिली जिनकी उन्हें तलाश थी.'
नेहरू की चिट्ठियों में और क्या क्या है?
केंद्र सरकार ने इन चिट्ठियों को देश की धरोहर बताते हुए इसे कांग्रेस की सीनियर नेता सोनिया गांधी से वापस मांगा है. 17 दिसंबर को केंद्र सरकार ने इन चिट्ठियों की मांग करते हुए कहा कि इतिहास को चुनकर नहीं लिखा जा सकता. लोकतंत्र की बुनियाद पारदर्शिता है और अभिलेख उपलब्ध कराना नैतिक दायित्व है जिसे निभाना सोनिया गांधी और उनके “परिवार” की भी जिम्मेदारी है.
केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि नेहरू पेपर्स PMML से 'लापता' नहीं हैं. उन्होंने एक्स पर एक लंबे पोस्ट में कहा कि 'लापता' होने का अर्थ मौजूदगी का स्थान अज्ञात होना है, इस विषय में तो ज्ञात है कि पेपर्स कहां और किसके अधिकार में हैं.
बता दें कि पिछले साल दिसंबर में प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय (PMML) सोसाइटी के सदस्य रिज़वान कादरी ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को चिट्ठी लिखी थी. तब रिजवान कादरी ने कहा था, "जयप्रकाश नारायण, बाबू जगजीवन राम, एडविना माउंटबेटन और भारतीय इतिहास से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण पत्रों सहित कई महत्वपूर्ण पत्र वहां थे. चूंकि उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. मैंने विपक्ष के नेता और उनके बेटे राहुल गांधी से उन्हें वापस लाने में हमारी मदद करने का अनुरोध किया. हमें उम्मीद है कि विपक्ष के नेता के रूप में वे इस पर गौर करेंगे और इसे शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराएंगे."
एक अन्य पत्र में पत्र रिज़वान कादरी ने लिखा था,"इनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और लेडी माउंटबेटन के बीच जरूरी पत्राचार, साथ ही पंडित गोविंद बल्लभ पंत, जयप्रकाश नारायण और अन्य के साथ एक दूसरे को लिखे पत्र शामिल हैं. ये पत्र भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और अभिलेखों के माध्यम से यह साबित हो चुका है कि इन्हें 2008 में सोनिया गांधी के निर्देश पर संग्रहालय से वापस ले लिया गया था."
51 बक्सों में भरकर ले जाए गए नेहरू से जुड़े पत्र
शेखावत ने लिखा, "जवाहरलाल नेहरू जी से जुड़े कागजात वाले 51 बक्सों को गांधी परिवार ने 2008 में PMML (तत्कालीन NMML) से वापस ले लिया था. ये दस्तावेज 2008 में विधिवत प्रक्रिया के तहत परिवार को सौंपे गए थे और PMML में इनके रिकॉर्ड व कैटलॉग मौजूद हैं. लेकिन मूल प्रश्न यह है कि क्यों इन दस्तावेजों को अब तक वापस नहीं किया गया, जबकि PMML की ओर से इस बारे में कई बार पत्र भेजे गए, विशेषकर जनवरी और जुलाई 2025 में!"
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा, "मैं आदरपूर्वक श्रीमती सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं कि क्या छिपाया जा रहा है? वैसे भी दस्तावेज वापस न करने के लिए दिए जा रहे तर्क असंगत और अस्वीकार्य हैं. सवाल यह भी है कि इतने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज सार्वजनिक अभिलेखागार के बाहर क्यों हैं? ये निजी पारिवारिक दस्तावेज तो बिल्कुल भी नहीं हैं, ये भारत के प्रथम प्रधानमंत्री से जुड़े महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभिलेख हैं. ऐसे दस्तावेज सार्वजनिक अभिलेखागार में होने चाहिए, किसी बंद कमरे में नहीं."
"विद्वानों, शोधकर्ताओं, छात्रों और आम नागरिकों को यह अधिकार है कि वे मूल दस्तावेज़ों तक पहुंच पाएं, ताकि जवाहरलाल नेहरू जी के जीवन और दौर को समझने के लिए सत्य पर आधारित संतुलित दृष्टिकोण विकसित हो सके. एक तरफ हमें उस दौर की गलतियों पर चर्चा न करने को कहा जाता है, दूसरी ओर उनसे जुड़े मूल दस्तावेज सार्वजनिक पहुंच से बाहर रखे जा रहे हैं, जबकि उनके माध्यम से तथ्यपरक चर्चा हो सकती है."
पहले कहां थे नेहरू के दस्तावेज
नेहरू के ये दस्तावेज पहले आइकॉनिक तीन मूर्ति भवन में स्थित प्रधानमंत्री संग्रहालय में रखे गए थे. प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (PMML) भारत के राजनीतिक इतिहास को बताने वाली किताबों और दुर्लभ रिकॉर्ड्स का खजाना संभालकर रखता है. तीन मूर्ति भवन जवाहरलाल नेहरू का आधिकारिक निवास स्थान था. नेहरू के निधन के बाद इसे नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया. 2023 में इसका नाम बदलकर PMML सोसाइटी कर दिया गया.
PMML के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उपाध्यक्ष हैं.