
भारतीय रुपया 16 दिसंबर को डॉलर के मुकाबले 91.02 रुपये तक फिसल गया. ये अब तक का सबसे निचला स्तर है. विदेशी निवेशकों के भारतीय शेयर बाजार से पैसे निकालने की वजह से रुपये पर भारी दबाव पड़ा है.
क्यों है ये खबर अहम?
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ता है. आयात महंगे हो जाते हैं, चाहे वो पेट्रोल-डीजल हो, मोबाइल-लैपटॉप हों या फिर विदेश घूमने का खर्च.
आंकड़ों में समझिए
₹91.02- डॉलर के मुकाबले रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर
20%- अप्रैल 2022 से अब तक रुपये की गिरावट
6%- सिर्फ 2025 में गिरावट, एशिया में सबसे ज्यादा
$18 अरब- 2025 में अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों से निकाले
50%- अमेरिका द्वारा कुछ भारतीय उत्पादों पर लगाया गया टैरिफ
क्या है पूरी कहानी?
पूरा साल रुपये के लिए मुश्किलों भरा रहा. सोमवार को ये नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. 2025 में रुपया एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन चुका है. थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया की मुद्राओं से भी ज्यादा गिरावट रुपये में आई है.
गिरावट की शुरुआत अप्रैल 2022 में हुई थी. तब से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 20 फीसदी कमजोर हो चुका है. यूरो के मुकाबले यह 29 फीसदी और ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले 23 फीसदी तक टूट चुका है.

रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?
पहली वजह की बात करें तो अमेरिका ने भारत से आने वाले कई सामानों पर 50 फीसदी तक टैरिफ लगा दिया है. इससे भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजार को झटका लगा है और अमेरिका-भारत व्यापार बातचीत भी अटकी हुई है. वहीं, दूसरी वजह विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं. उन्हें अमेरिका और अन्य बाजारों में बेहतर रिटर्न दिख रहा है.
2025 में अब तक विदेशी निवेशकों ने $18 अरब के भारतीय शेयर बेचे. दिसंबर में ही $50 करोड़ से ज्यादा का बॉन्ड निवेश निकाला गया. इतनी बड़ी रकम के देश से बाहर जाने से रुपये पर जबरदस्त दबाव पड़ा है.
इसका असर आपकी जेब पर कैसे पड़ेगा?
कमजोर रुपया मतलब महंगे आयात. भारत अपनी 80 फीसदी से ज्यादा तेल जरूरतें विदेश से पूरी करता है, इसलिए पेट्रोल-डीजल महंगा हो सकता है. इससे मोबाइल, लैपटॉप, iPhone जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान की कीमतें बढ़ेंगी. साथ ही विदेश घूमना भी महंगा पड़ेगा क्योंकि डॉलर, यूरो और पाउंड के मुकाबले रुपया कमजोर हो चुका है.

किसे होगा फायदा?
इसका फायदा निर्यात करने वाली कंपनियों को जरूर होगा. आईटी कंपनियां और दवा निर्माता ज्यादातर कमाई डॉलर में करते हैं, इसलिए रुपये की कमजोरी से उनकी आय बढ़ जाती है.
95 रुपये प्रति डॉलर तक...
विश्लेषकों का मानना है कि अगर डॉलर मजबूत बना रहा और विदेशी निवेशकों की बिकवाली जारी रही तो रुपया 92 से 95 रुपये प्रति डॉलर तक भी जा सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर बेचकर गिरावट थामने की कोशिश की है, लेकिन उसके पास सीमित गुंजाइश है.
चिंता क्यों बढ़ी?
रुपये की कमजोरी अब सिर्फ मुद्रा का मसला नहीं रह गई है. इससे महंगाई बढ़ने का खतरा है. विदेशी निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है. हालांकि भारत की आर्थिक वृद्धि उम्मीद से बेहतर रही है, लेकिन गिरता रुपया इस पूरी ग्रोथ स्टोरी के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है.