
देश ने अनमोल रतन टाटा को खो दिया. 86 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 21 साल पहले जब उन्होंने इंडिया टुडे को इंटरव्यू दिया तो कई मुद्दों पर खुलकर बात की और तमाम सवालों के बेबाकी से जवाब दिए.
23 फरवरी 2003 को प्रकाशित 'इंडिया टुडे' हिंदी में छपे इंटरव्यू में उन्होंने अपने ग्रुप, देश की अर्थव्यवस्था और राष्ट्र निर्माण पर खुलकर बातें की थीं, जिससे उनके व्यक्तित्व का जुझारू रूप सामने आया. जानिए उस इंटरव्यू में रतन टाटा से किन-किन मुद्दों पर बात हुई थी और उन्होंने कैसे बेबाकी से जवाब दिए थे.
सवाल- टाटा ग्रुप का प्रबंधन काफी कठिन काम रहा होगा. पीछे मुड़कर देखने पर आपको कोई बड़ी तस्वीर नजर आती है या छोटे-छोटे खंडों से बनी वृहद तस्वीर?
जवाब- पिछले 56 साल से टाटा ग्रुप ने अलग-अलग इकाइयों को देखा, समग्र तस्वीर पर शायद ही नजर डाली. नतीजतन, कई कंपनियां एक ही व्यवसाय में उतर आईं और एक-दूसरे की प्रतियोगी बन गई. ये अलग-अलग दिशा में जा रही थीं. ग्रुप के बुनियादी लक्ष्यों को समेकित करना जरूरी हो गया था.
सवाल- क्या आपके ग्रुप की तुलना 24 पार्टियों वाली राजग सरकार से की जा सकती है?
जवाब- कुछ मामलों में यह तुलना कर सकते हैं.
सवाल- इसे ठीक करना क्या आपकी पहली चुनौती रही?
जवाब- सभी कंपनियों को एक ही फ्रेमवर्क में लाने की जरूरत थी ताकि वे एक ही दिशा में बढ़ें. पहले मैंने यही करने की कोशिश की. पहले कंपनी के बाद ग्रुप की अहमियत थी, बाद में रणनीति उलटी गई. पहले ग्रुप, फिर कंपनी.
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सवाल- सो, उन लोगों से छुटकारा पाया जो ग्रुप से ज्यादा कंपनी को महत्व दे रहे थे?
जवाब- नहीं, इसकी वजह उम्र थी. हमारे यहां 70 पार की उम्र के मुख्य अधिकारी थे जिन्होंने अपनी कुर्सी कभी छोड़ी ही नहीं थी. बाजार से उनका संपर्क नहीं था और मेरा ख्याल था कि इसके चलते हम अपनी धार खो रहे थे.
सवाल- यानी, आप अटल बिहारी वाजपेयी की तरह हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने की इजाजत भी दे रहे हैं. साथ ही बोर्ड स्तर पर स्वीकृत रणनीति का अनुसरण भी कर रहे हैं?
जवाब- पहली उपमा को छोड़ दें तो हां.
सवाल- आपका ग्रुप कंपनियों का गठबंधन है?
जवाब- हमें हमेशा कई कंपनियों का लचीला संघ कहा जाता था.
सवाल- अब ऐसा नहीं है?
जवाब- नहीं. अब कंपनियों पर ग्रुप का मजबूत नियंत्रण है.
सवाल- यानी यह एकदलीय कॉर्पोरेट है?
जवाब- आप कह सकते हैं. लेकिन महत्वपूर्ण बात यह कि हमने कंपनी को बहुत स्वायत्तता देने की कोशिश की है. यदि कोई कंपनी किसी विशेष व्यवसाय में उतरना चाहती है, मसलन हथियारों के व्यवसाय में और ग्रुप का मानना है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए तो वह एक शेयरधारक की हैसियत से आपत्ति उठाएगा. फिर भी कंपनी उस व्यवसाय में उतरने पर अड़ी ही है तो हम उस कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेच देंगे.
सवाल- आप आम सहमति में यकीन रखते हें?
जवाब- काफी हद तक. लेकिन जब इसके चलते हर कोई अपनी अलग दिशा तय करने लगे तो मेरा ख्याल है, नेतृत्व को संकेत दे देना चाहिए कि किस दिशा में जाना है. लेकिन यह आम सहमति की कोशिश के बाद ही करना चाहिए.
सवाल- लोगों का कहना है कि आप बहुत नरम स्वभाव के हैं?
जवाब- प्रधानमंत्री की तरह. हां, लोग ऐसा कहते हैं, फिर भी मुझ पर पुराने लोगों को निकाल बाहर करने, कंपनियां बेच देने और वह सब करने के आरोप लगते रहे हैं जिन्हें किसी भी तरह से नरम नहीं कहा जा सकता.
सवाल- दूरसंचार क्षेत्र में आपकी भूमिका उलझन भरी लगती है. आप बेसिक टेलीफोन और सेलुलर दोनों में शामिल हैं.
जवाब- नहीं, कोई टकराव नहीं है. क्या शुरू से हम दोनों में नहीं थे? मेरा तो यही नजरिया रहा है कि अंततः: वायरलेस और वायरलाइन को एक हो जाना चाहिए. हम आंध्र प्रदेश में डब्लूआइएलएल में थे और सीडीएमए का तब से इस्तेमाल कर रहे थे जब यह कोई मुद्दा नहीं था. सेलुलर में मेरा यह दृष्टिकोण है कि निजी ऑपरेटर टिक नहीं पाएंगे. मैंने बिरला से पूछा, क्यों न हम दोनों मिलकर आगे बढ़ें.
सवाल- धारणा है कि आप दूरसंचार क्षेत्र में सब कुछ करते रहे लेकिन विकास न कर पाए?
जवाब- हमने शोर नहीं मचाया लेकिन आंध्र में अपनी सफलता पर हम खुश हैं. हमने छह राज्यों में व्यावसायिक संभावनाओं के चलते बने रहने का फैसला किया है. हमने लंबी दूरी की कॉल का देशव्यापी नेटवर्क नहीं तैयार किया क्योंकि हमारा मानना है कि एक क्षेत्र में क्षमता विकसित करना और बाकी लीज पर लेना बेहतर होगा. हमारा जाल पूरे भारत में होना चाहिए लेकिन इसके लिए पूरे पर कब्जा होना या उसे बनाना जरूरी नहीं.

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सवाल- आप मानते हैं कि दूरसंचार नीतियां कंपनियों की लॉबी तय करती है?
जवाब- सभी तरह के लोग पैरवी करते हैं. लगता है, भारत निहित स्वार्थी तत्वों का शिकार हो गया है. कहीं भी देखिए, ज्यादातर उद्योगों के निहित स्वार्थ हैं. ज्यादातर नीतियां निहित स्वार्थों वाले वर्ग ही चला रहे हैं. उससे ऊपर उठकर कोई यह नहीं सोचता कि भारत के लिए अच्छा क्या है.
सवाल- माना जाता है कि असली विरोध जनता से नहीं बल्कि लामबंद गुटों से है?
जवाब- जिस तरह से आप सवाल पूछ रहे हैं, उसका जवाब मैं नहीं देना चाहता. लेकिन पहले अक्सर आप देखते थे कि संबंधित सरकारी एजेंसियां विकास में बाधा डालती थीं. अब कई क्षेत्रों में व्यावसायिक इकायां प्रतिस्पर्धा समाप्त करने और नए खिलाड़ियों का प्रवेश रोकने की कोशिश करती हैं. यह राष्ट्रीय ध्येय-खुले बाजार की अर्थन्यवस्था के विपरीत है.
सवाल- टाटा घराना आर्थिक विकास में देश का नेतृत्व क्यों नहीं कर पाया?
जवाब- बाद में उभरे ओद्योगिक घराने आप से बड़े बन यए. मैं इस सब में नहीं पड़ना चाहता. मुद्दा सिर्फ यह नहीं है कि कौन बड़ा है.
सवाल- आप हवाई अड्डा या घरेलू एअरलाइंस परियोजना से पीछे क्यों हट गए? या आपको पीछे हटने को मजबूर किया गया ?
जवाब- हम पीछे नहीं हटे. तीन साल तक हमें लटकाए रखा गया. आप मानव और आर्थिक संसाधनों को इतने साल तक अधर में लटकाए रखें तो दूसरी गतिविधियां बाधित होंगी ही.
सवाल- आप मानते हैं कि देश का वातावरण बड़ी योजनाओं के उपयुक्त नहीं है?
जवाब- कार के मामले में हमारे रास्ते में कोई नहीं आया. हमारे जो भी व्यवसाय हैं उनमें से किसी में भी सरकार ने अड़ंगा नहीं लगाया. लेकिन जिन कुछ बड़ी परियोजनाओं में हम थे, कुछ निहित स्वार्थ नियंत्रण छोड़ना नहीं चाहते थे.
सवाल- रिलायंस वहां पहुंच सकता है जहां आज है और आदर्श बन सकता है तो...
जवाब- ओह आप तो नाम ले रहे हैं.
सवाल- टाटा देश में आदर्श क्यों नहीं बना?
जवाब- क्योंकि मीडिया ने उन्हें उभारने का फैसला कर लिया है.
सवाल- आपकी राय में यह सब कोरा प्रचार है?
जवाब- मैंने ऐसा तो नहीं कहा. मीडिया ने उन्हें विकास का अग्रदूत बताया और वे बन गए.
सवाल- टाटा कुछ और बड़ा काम कर सकते थे. आप मानते हैं कि आप असफल रहे?
जवाब- हम कई क्षेत्रों में असफल रहे हैं और मुझे भरोसा है कि वे भी रहे होंगे.
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सवाल- आप विश्व स्तर के खिलाड़ी है?
जवाब- क्या हम सॉफ्टवेयर, चाय के क्षेत्र में नहीं हैं...
सवाल- लेकिन सॉफ्टवेयर के मामले में आप सार्वजनिक निर्गम नहीं ला रहे हैं?
जवाब- नहीं, क्या विश्व व्यापार का खिलाड़ी बनने के लिए यह जरूरी है?
सवाल- मूल्यांकन के मामले में इससे आत्मविश्वास आता है. यह मुद्दा कैसे बन गया?
जवाब- मेरी दिलचस्पी तो उसी में है जो मैं कमाता हूं.
सवाल- कहा जाता है कि आपने निर्गम इसलिए जारी नहीं किए क्योंकि आप पैसे का इस्तेमाल ग्रुप कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए करना चाहते थे?
जवाब- यह सही नहीं है. यदि हो तब भी यह मेरी रणनीति हो सकती है, खासकर तब तक जब तक कंपनी की वृद्धि प्रभावित नहीं होती.
सवाल- आपको किसी बात का पछतावा है?
जवाब- मुझे इस बात का पछतावा है कि बदलाव का विरोध हुआ और उस बाधा को पार करना पड़ा.
सवाल- हमारी धारणा बन रही है कि आप किसी सरकारी कंपनी में हाथ नहीं लगाएंगे?
जवाब- मैं विनिवेश के पक्ष में हूं. लेकिन यदि विनिवेश के बाद अगर उस कंपनी को सरकारी कंपनी से गठबंधन करना पड़े तब समस्या पैदा हो जाती है. वीएसएनएल को काफी हद तक दो सार्वजनिक उपक्रमों पर निर्भर होना पड़ रहा है. इससे मुश्किल हो जाती है क्योंकि उन कंपनियों को अपनी स्थिति देखनी पड़ती है और बीएसएनएल बीच में फंस जाती है.
सवाल- क्या वीएसएनएल में निवेश का अफसोस है आपको?
जवाब- नहीं, कोई अफसोस नहीं है लेकिन व्यवसाय एकदम अलग हो गया है.
सवाल- क्या इसे बेच देंगे?
जवाब- मैंने ऐसा तो नहीं कहा. मेरा ख्याल है आप जानते हैं कि टाटा मैदान छोड़ कर भागते नहीं हैं.
सवाल- लेकिन हवाई अड्डा परियोजना या सिंगापुर एअरलाइंस का क्या हुआ? आप उतरे लेकिन पानी बहुत गरम लगा शायद.
जवाब- यह सही नहीं है. में किसी क्षेत्र में नहीं उतरा और इसलिए वहां से हाथ भी नहीं खींचा.
सवाल- शायद राजनीति से नहीं निबट सके?
जवाब- घरेलू एयरलाइंस के मामले में तीन सरकारों ने हमें बाहर रखने के लिए काननू बदले. उन्होंने इक्विटी हिस्सेदारी का प्रतिशत बदल दिया और जब सफल नहीं हुए तो यह फैसला किया कि कोई विदेशी एअरलाइंस साझीदार नहीं हो सकती.
सवाल- यानी आप राजनैतिक जोड़-तोड़ को संभाल नहीं पाए?
जवाब- मुझे इस बात का गर्व है कि मैं राजनैतिक जोड़-तोड़ नहीं कर सकता.
सवाल- आप सरकार के मुखिया होते तो किन पांच चीजों पर ध्यान केंद्रित करते ?
जवाब- बुनियादी ढांचे में सुधार और पर्यटन पर भी काफी जोर दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा आएगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. मैं तो पांच चीजें भी नहीं कहूंगा. बस इतना कहूंगा कि नीतियों को सरल बनाइए.
सवाल- सरकार का आकार नहीं घटाना चाहिए?
जवाब- नहीं, सरकार का आकार कोई मुद्दा नहीं है. जरूरत इस बात की है कि सभी मंत्रालय काम को ज्यादा आगे बढ़ाएं.
सवाल- ज्यादातर कॉर्पोरेट अधिकारियों का नेताओं से मेलजोल रहता है, लेकिन आप ऐसा नहीं करते. आप उन्हें पसंद नहीं करते या मानते हैं कि वे अप्रासंगिक हैं?
जवाब- न मैं उन्हें नापसंद करता हूं, न ही उन्हें अप्रासंगिक मानता हूं. आपको उन लोगों से पूछना चाहिए कि वे आखिर मंत्रियों के पास क्यों जाते हैं? जब मुझे उनसे काम पड़ा तो मैं जरूर जाऊंगा, जब कोई काम ही नहीं तो क्यों जाऊं? उन्हें अपना काम करना है और हमें अपना.
सवाल- भारत के लिए आपका सपना क्या है?
जवाब- मैं भारत को इस क्षेत्र की महाशक्ति के रूप में देखना चाहता हूं. यदि हम स्वनिर्मित सीमाओं से निकल आएं तो भारत दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन सकता है. लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि हम खुद को भारतीय के रूप में नहीं बल्कि एक पंजाबी या पारसी के रूप में देखते हैं. लेकिन अमेरिकियों के साथ ऐसा नहीं है. एकीकृत राष्ट्रीय भावना का विकास कीजिए और स्पष्ट दिशा तय कीजिए,
सवाल- टाटा घराना राजनीति में शामिल रहा है. आप भी राजनीति में जाएंगे?
जवाब- नहीं, मेरे पिता चुनाव में खड़े हुए थे. लेकिन मैं एकांतप्रिय व्यक्ति हूं. राजनीति में कुछ भी गोपनीय नहीं रह जाता. जीवन में मजा नहीं रहेगा.
सवाल- आप अगले रतन टाटा को किस रूप में परिभाषित करेंगे?
जवाब- मैं किसी ऐसे व्यक्ति को चाहूंगा जिसके नैतिक मूल्य वैसे ही हों जैसे मेरे हैं. और वह युवा हो, स्वप्नदर्शी हो, बदलती दुनिया को देखे, संरक्षणवादी न हो.
सवाल- क्या यह टाटा कंपनी ही रहेगी?
जवाब- बिल्कुल, ऐसा न रहने की कोई वजह नहीं.
सवाल- उसका अध्यक्ष कोई टाटा ही हो?
जवाब- मैंने कहा, कोई नाम नहीं लूंगा. लेकिन वह वही व्यक्ति होगा जो अपेक्षाओं पर खरा उतरे.