
Heat Wave In India: जलवायु परिवर्तन और बढ़ते हुए तापमान ने दुनिया भर की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. ये बातें कई अध्ययनों में साबित भी हो चुकी हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च (Mahamana Centre of Excellence in Climate Change Research) ने भारत में पिछले 7 दशकों के हीट वेव और सीवियर हीट वेव के रूझानों का अध्ययन किया है. इस अध्ययन में कई चौंका देने वाले नतीजे सामने आए हैं.
हीट वेव से स्वास्थ्य पर पड़ रहा है असर
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च के अध्ययन के मुताबिक भारत के उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य क्षेत्र नए सीवियर हीट वेव की घटनाओं के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं. इससे न केवल यहां के लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है, बल्कि मौतें भी पहले के मुकाबले ज्यादा सामने आ रही हैं.
पिछले 7 दशकों के मौैसम संबंधी उपखंडों का किया गया अध्ययन
हीट वेव और सीवियर हीट वेव अध्ययन के बारे में और जानकारी देते हुए महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च के कोऑर्डिनेटर प्रोफेसर राजेश कुमार मल्ल ने बताया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार की ओर से उनकी टीम की सौम्या सिंह और निधि सिंह ने मिलकर सात दशकों में भारत के विभिन्न मौसम संबंधी उपखंडों में हीट वेव के परिवर्तन का अध्ययन किया.

पिछले वर्षों में हीट वेव के मामले में लगातार इजाफा
इस अध्ययन में पाया गया गंगा के पश्चिम बंगाल, बिहार के पूर्वी क्षेत्र से उत्तर-पश्चिमी, मध्य भारत और दक्षिण-मध्य क्षेत्र में हीट वेव में भारी इजाफा हुआ है. अनुसंधान ने पिछले कुछ दशकों में दक्षिण में भी सीवियर हीट वेव के मामलों में वृद्धि दर्ज की.
दक्षिण में भी बढ़ा हीट वेव का आसार
प्रोफेसर राजेश कुमार मल्ल के मुताबिक दक्षिण के हिस्सों में पहले हीट वेव नहीं हुआ करता था, लेकिन अब खासकर साउथ सेंट्रल रीजन हीट वेव का नया क्षेत्र बन गया है. हीट वेव और सीवियर हीट वेव की जद में वाराणसी सहित देश के ज्यादातर महानगर आ चुके हैं.

बढ़ते हीट वेव की वजह और बचाव के उपाय
देश में लगातार बढ़ते हीटवेव के पीछे प्रोफेसर राजेश कुमार मल्ल ने महानगरों मे बढ़ते एसी के उपयोग को एक बड़ी वजह बताया है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज, प्रदूषण, इंफ्रास्ट्रकचर गतिविधियां और बेहिसाब पेड़ों का काटा जाना भी इसके प्रमुख कारण हैं. प्रो राजेश कुमार मल्ल मुताबिक अगर ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम किया जा सके, इलेक्ट्रीकल, सोलर वाहनों और एलईडी लाइट्स का ज्यादा प्रयोग किया जाए तो ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता है.