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'गांधीजी के विचारों को भी ध्यान में रखकर लेते हैं फैसले', सुप्रीम कोर्ट की डायमंड जुबली पर बोले CJI

सीजेआई ने कहा कि अब कोर्ट पूरी तरह से पेपरलेस की ओर बढ़ रहा है. कागजों के बोझ के बजाए अब एक क्लिक के जरिये आप केस फ़ाइल कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट जल्द ही डिजिटल डाटा को क्लाउड बेस इंफ्रास्ट्रक्चर में ट्रांसफर करने प्लान कर रहा है.

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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट की डायमंड जुबली सेलिब्रेशन के मौके पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आज का इन दिन बेहद महत्वपूर्ण है. 28 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट की शुरुआत हुई थी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि जब कभी कोई फैसला लेना हो, तो समाज के हाशिये पर खड़े व्यक्ति का ख्याल कर करें कि क्या अमुक फैसले से उसे कोई फायदा होने वाला है. SC की स्थापना के बाद से हम गांधीजी की कही गई इस बात को ध्यान में रखकर फैसले लेते रहे हैं. न्यायिक प्रशासनिक क्षेत्र में लिए गए फैसलों से हमने सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि लोगों को इंसाफ मिल सके.

सीजेआई ने कहा कि अब कोर्ट पूरी तरह से पेपरलेस की ओर बढ़ रहा है. कागजों के बोझ के बजाए अब एक क्लिक के जरिये आप केस फ़ाइल कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट जल्द ही डिजिटल डाटा को क्लाउड बेस इंफ्रास्ट्रक्चर में ट्रांसफर करने प्लान कर रहा है. उन्होंने कहा कि e-Filing की सुविधा मई 2023 में लॉन्च हुई . अबतक 1 लाख 28 हज़ार e-Filing हो चुकी हैं.

कोरोना के बाद भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई जारी रखी. आज दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर वकील सुप्रीम कोर्ट  के सामने जिरह कर सकता है. अभी तक हाइब्रिड सुनवाई के जरिए हम 5 लाख केस का निपटारा कर चुके हैं.

सीजेआई ने कहा कि संविधान पीठ की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग होने से लोगों की कोर्ट के काम के तरीके को लेकर उत्सुकता बढ़ी है. हमारा देश अभी सामाजिक और जनसांख्यिक बदलाव से गुजर रहा है. ऑपेरशन थियेटर, बॉर्डर, नेवल कमाण्डर, सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं की तादाद बढ़ रही है. डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशिरी में 36 महिलाओं की भागीदारी है. SC में 41% लॉ क्लर्क महिला हैं. 2024 से पहले पिछले 74 सालों में सिर्फ 12 महिला वकीलों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला, लेकिन पिछले हफ्ते हमने एक साथ 11 महिलाओं को सीनियर वकील का दर्जा दिया.

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उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि लीगल सिस्टम में समाज के हर तबके का प्रतिनिधित्व रहा है. अभी बार और बेंच में SC/ST का प्रतिनिधित्व कम है, प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की ज़रूरत है, उन्होंने कहा कि हमें बेवजह के मामलो की सुनवाई को टालने से बचना चाहिए. इस मसले पर प्रोफेशनल रुख अपनाने की ज़रूरत है. कोशिश करें कि जिरह इतनी बड़ी न हो कि फैसला आने में देरी हो. समाज के वंचित तबके के लोग भी वक़ालत के पेशे में आ सकें, इसकी कोशिश होनी चाहिए. साथ ही कहा कि लंबी छुट्टियों पर चर्चा की ज़रूरत है. ये देखना होगा कि क्या जजों और वकीलों के लिए felxi time जैसी कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है.

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