जेएसएससी परीक्षा के दौरान इंटरनेट बंद करने के मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन सरकार से जवाब मांगा है. अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि इंटरनेट बंद करने के लिए क्या पॉलिसी है और क्या सभी परीक्षाओं के दौरान इसी तरह इंटरनेट बंद कर दीजिएगा.
परीक्षा के कारण राज्य में इंटरनेट सुविधा बंद किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी. याचिका पर शनिवार को हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस अनुधा रावत चौधरी की बेंच ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि इंटरनेट बंद करने के लिए क्या पॉलिसी है. क्या सभी परीक्षाओं में इसी तरह इंटरनेट बंद कर दीजिएगा. कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को चार हफ्ते में एफिडेविट के माध्यम से सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. हालांकि, कोर्ट ने सरकार के इंटरनेट बंद करने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
अदालत में राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि परीक्षा में किसी तरह की गड़बड़ी न हो, इसलिए एतिहात के तौर पर सिर्फ मोबाइल का इंटरनेट बंद किया गया. बाकि इंटरनेट की सुविधाएं पूर्व की तरह ही चल रही है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि इंटरनेट सुविधा बंद किए जाने से रोजमर्रा के कई काम प्रभावित हो रहे हैं और इसका सीधा असर लोगों के कामकाज पर पड़ रहा है.
वहीं, सरकार के 21 और 22 सितंबर की सुबह आठ बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद करने के फैसले पर भाजपा ने जमकर आलोचना की है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि हेमंत सरकार परीक्षा में कदाचार रोकने के लिए फूल प्रूफ सिस्टम नहीं बना पाई तो पूरे प्रदेश के साढ़े तीन करोड़ लोगों का इंटरनेट बंद कर दिया. यह तो अंग्रेजों के जमाने में होता था कि जब ट्रेन में डकैती होती थी तो अगल-बगल के सारे गांवों पर सामूहिक फाइन लगा दिया जाता था.
प्रतुल ने कहा कि अब दो दिन तक पहले हाफ में इंटरनेट बंद करने से कितना भारी नुकसान होगा, इसका आकलन लगाना भी मुश्किल है. प्रतुल ने आरोप लगाया कि अपनी नाकाम व्यवस्था को छुपाने के लिए राज्य सरकार ने साढे तीन करोड़ लोगों को परेशान कर दिया. इस बार तो सारी हद पार कर दिया हेमंत सरकार ने.