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केमिकल वेपन की श्रेणी में आने वाली आंसू गैस सैनिकों पर छोड़ने की मनाही, तब क्यों भीड़ को डराने के लिए हो रहा इस्तेमाल?

पश्चिम बंगाल में ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर केस के विरोध में मंगलवार को विरोध प्रदर्शन हुआ. प्रोटेस्ट इतना बड़ा था कि कोलकाता पुलिस को भीड़ तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और वॉटर कैनन का सहारा लेना पड़ा. प्रोटेस्ट रोकने के लिए जमकर उपयोग होती इस गैस को केमिकल वेपन का दर्जा मिला हुआ है. ये जंग में भी इस्तेमाल नहीं हो सकती.

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कोलकाता की डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर केस तूल पकड़ रहा है. (Photo- PTI)
कोलकाता की डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर केस तूल पकड़ रहा है. (Photo- PTI)

पश्चिम बंगाल में डॉक्टर के रेप-मर्डर केस पर प्रोटेस्ट हो रहे हैं. सड़कों पर भारी को कंट्रोल करने के लिए कोलकाता पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और वॉटर कैनन चलाई. वैसे भीड़ पर काबू पाने का ये तरीका काफी विवादित रहा. यहां तक कि जेनेवा प्रोटोकॉल 1925 और केमिकल वेपन्स कन्वेंशन जंग में टियर गैस के उपयोग पर बैन लगा चुके. फिर क्या कारण है जो प्रदर्शनकारियों पर इसका उपयोग होता रहा?

क्या होता है आंसू गैस से

आंसू गैस केमिकल इरिटेंट्स में आती है. इसमें वे केमिकल होते हैं, जिससे म्यूकस मेंब्रेन में दिक्कत होती है, आंख-नाक से पानी आता है. छींक और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. लेकिन ये असर थोड़ी देर रहता है. वहीं अगर कोई इसके सीधे संपर्क में आया या फिर भारी मात्रा आंखों के भीतर चली गई तो स्थिति बिगड़ जाएगी. इससे अंधापन से लेकर लंग्स काम करना भी बंद कर सकते हैं. 

युद्ध के बाद लग गई पाबंदी

पहले वर्ल्ड वॉर के बाद ही जेनेवा प्रोटोकॉल 1925 में यह फैसला हुआ कि सभी तरह के केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों पर बैन लग जाए. इसके बाद साल 1997 में केमिकल वेपन्स कन्वेंशन आया, जिसने और बड़ी लिस्ट तैयार की. इसमें एक बार फिर जंग में टियर गैस के उपयोग पर पाबंदी लग गई. 

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हालांकि अमेरिका ने लंबे समय तक जेनेवा कन्वेंशन की अनदेखी की. यहां तक कि वियतनाम युद्ध के दौरान भी उसने रायट कंट्रोल वेपन से विरोधी सैनिकों को नुकसान पहुंचाया. उसका तर्क था कि जिन केमिकल्स से हल्का-फुल्का नुकसान हो, जंग में उसे लिया जा सकता है. सत्तर के दशक के आखिर में उसने भी इसपर बैन लगाया. 

tear gas on protesters in west bengal kolkata doctor rape murder case  photo AFP

फिर प्रोटेस्टर्स पर क्यों आजमाया जा रहा

घरेलू स्तर पर क्राउड कंट्रोल के लिए देश क्या उपयोग करते हैं, इसपर कहीं कोई बात नहीं हुई. यही वजह है कि आंसू गैस युद्ध में भले बैन हो, लेकिन क्राउड कंट्रोल वेपन की तरह खूब काम आने लगे. दंगे-फसाद या सड़कें रोकने वाले प्रोटेस्ट को रोकने के लिए ये हथियार चलन में आए. इनका मकसद है कि बिना लॉन्ग-टर्म नुकसान के भी लोग बिखर जाएं. चाहे तेज धार वाला पानी हो, या आंसू गैस, इसका शॉर्ट-टर्म असर ही रहता है. लेकिन कुछ समय में दिखा कि नॉन-लीथल श्रेणी के ये हथियार भी परमानेंट नुकसान कर सकते हैं.

क्या कहता है सर्वे

ब्रिटिश शोध संस्थान ओमेगा रिसर्च फाउंडेशन ने साल 2023 में एक अध्ययन किया, जिसका डेटा डराने वाला है. इसके अनुसार, पिछले एक दशक में लगभग सवा लाख लोग आंसू गैस और दूसरे केमिकल इरिटेंट्स से गंभीर रूप से घायल हुए.

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गंभीर नुकसान से लेकर मौत भी 

क्राउड कंट्रोल वेपन के इस्तेमाल के बाद की मेडिकल रिपोर्ट्स को देखने पर ये पता लगा. रिपोर्ट में इनसे हुई मौतों के डेटा का जिक्र नहीं है, लेकिन दावा है कि अगर लंबा ट्रैक रखा जाए तो ये डेटा जरूर दिखेगा.

माना जा रहा है कि केमिकल इरिटेंट्स या रबर बुलेट को जितना हल्का या नॉन-फेटल माना जाता है, असल में ऐसा है नहीं. कई बार इससे बड़ा नुकसान होता है, यहां तक कि मौत भी हो सकती है. प्रेग्नेंट महिलाएं, बुजुर्ग या बच्चे भी अगर प्रदर्शन का हिस्सा हों तो बात और बिगड़ सकती है. इसके खतरों को देखते हुए कई देश और राज्य अपने यहां कम घातक क्राउड-कंट्रोल वेपन के विकल्प देख रहे हैं.

tear gas on protesters in west bengal kolkata doctor rape murder case  photo PTI

वॉटर कैनन आजमाया हुआ हथियार 

इसमें पानी की तेज धार एक खास दिशा में छोड़ी जाती है, जो प्रदर्शन को बिखरा दे. वैसे वॉटर कैनन ज्यादातर आग को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल होते रहे, लेकिन दंगा या प्रोटेस्ट कंट्रोल में भी इसका जमकर उपयोग होता है. ये अपेक्षाकृत सुरक्षित माने जाते हैं. 

तेज रोशनी और शोर का अटैक 

एक और तरीका है, जिसे डिसओरिएंटेशन डिवाइस कहते हैं. ये पायरोटेक्निक ग्रेनेड हैं, जिसमें आवाज और रोशनी से ऐसा असर पैदा किया जाता है कि लोगों का फोकस चला जाए. इसमें कानों को फाड़ने वाली और आंखों को चौंधियाने वाला बम फेंका जाता है. ये भीड़ को परेशान कर देता है, लेकिन इसमें भी कोई परमानेंट नुकसान नहीं होता.

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क्या है काइनेटिक इंपैक्ट प्रोजेक्टाइल

रबर और प्लास्टिक बुलेट की बात अक्सर होती है. ये काइनेटिक इंपैक्ट प्रोजेक्टाइल की श्रेणी के हथियार हैं. इसमें प्लास्टिक की गोलियों को तेजी से प्रदर्शनकारियों की तरफ भेजा जाता है. वैसे ये मैथड अक्सर दंगा-फसाद रोकने में उपयोग होता आया. इसमें कई बार गंभीर नुकसान भी देखा गया है. 

tear gas on protesters in west bengal kolkata doctor rape murder case photo- PTI

अकॉस्टिक वेपन भी हैं 

ये पश्चिम में खूब इस्तेमाल होते रहे. इसमें ऐसी आवाज पैदा की जाती है, जो काफी दूर तक जाए और जमीन से लेकर इमारतों में भी झनझनाहट जैसा असर दिखाए. इससे लोग घबराकर भागने लगते हैं और प्रदर्शन रुक जाता है. कई बार इससे सुनाई देने में समस्या जैसी परमानेंट दिक्कत भी आ जाती है, खासकर अगर इसे चलाने वाले लोग प्रशिक्षित न हों. 

एक और श्रेणी हैं- ब्लंट फोर्स वेपन 

प्रदर्शनकारी जब हिंसक हो जाते हैं, तो उन्हें रोकने वाले सुरक्षा बल डंडों का इस्तेमाल करते हैं. यही डंडा ब्लंट फोर्स वेपन के तहत आता है. ये पुलिस की सख्ती और कायदों का प्रतीक भी बन चुका है. लेकिन इससे गंभीर नुकसान या मौत भी हो सकती है, जो इसपर तय करता है कि इसका उपयोग कितनी जोर से और किस अंग पर किया गया. 

झटका देने वाली डिवाइस 

हॉलीवुड फिल्मों में एक पिस्टल की तरह चीज अक्सर दिखती है, जिसे छुआते ही टारगेट को बिजली का झटका लगने जैसा अहसास होता है. ये इलेक्ट्रोशॉक वेपन है. शुरुआत में इनसे बिगड़ैल पशुओं को साधा जाता था, लेकिन फिर पश्चिम में सुरक्षाबल भी इसे काम में लेने लगे.

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