अमेरिका फर्स्ट की गूंज के बीच ये कहा गया कि गरीब और आतंकी गतिविधियों वाले देशों के लोग अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकेंगे. एक-एक करके कई फिल्टर लग रहे हैं ताकि यूएस में विदेशियों का आना कम हो सके, या आएं भी तो छंटे हुए लोग. अब एक नई बात सुनाई दे रही है-रेपुटेशन बॉर्डर. एक नई तरह की ग्लोबल सीमा बनाई जा रही है, जो भौगोलिक नहीं, बल्कि रुतबे पर आधारित होगी.
इसके तहत विदेशी वीजा लेने वालों को पांच साल का सोशल मीडिया रिकॉर्ड देना होगा. डिजिटल फुटप्रिंट से तय होगा कि आप कहां जा सकते हैं, कहां नहीं.
किस तरह की होगी जांच
नियम के तहत देखा जाएगा कि आने की इच्छा रखने वाला शख्स ऑनलाइन जिंदगी में कैसा है, वे किस तरह की राजनीतिक सोच रखते हैं, कैसा मजाक करते हैं और किस तरह की जगहों पर आमतौर पर जाते रहे. पहले यात्रा की अनुमति दस्तावेज और इंटरव्यू से तय होती थी, अब यह डिजिटल फुटप्रिंट्स पर निर्भर करेगी.
इस प्रपोजल को हाल ही में फेडरल रजिस्टर में छापा गया. यह पहला मौका है जब किसी देश ने किसी की ऑनलाइन पर्सनेलिटी को ही इमिग्रेशन क्रेडेंशियल मान लिया. 9/11 हमले के बाद से अमेरिका ने इसकी जांच शुरू की थी, लेकिन अब यही चीज सबसे ऊपर रहेगी.

अमेरिकी नियम के तहत सभी वीजा आवेदकों के सोशल मीडिया यूजरनेम लिए जाएंगे. इसमें सारे प्लेटफॉर्म शामिल हैं. चेक किया जाएगा कि किसी संकट के समय आपके कमेंट क्या थे, या चुनाव के दौरान ट्वीट्स क्या थे. आवेदकों को पिछले पांच साल में इस्तेमाल किए गए पुराने ईमेल और फोन नंबर भी बताने होंगे.
अधिकारी इसे नेशनल सिक्योरिटी से जोड़ रहे हैं. उनका तर्क है कि ऑनलाइन गतिविधियों के पता लग सकता है कि किसी का कट्टरपंथ से जुड़ाव या कोई हिंसक रुझान तो नहीं रहा. अब तक होती आई जांच में यह चीज शामिल नहीं थी. यह नियम ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी लागू होने वाला था लेकिन फिर कुछ वजहों से इसपर रोक लग गई.
अभिव्यक्ति की आजादी भी खतरे में
समस्या यहां है कि यूएस का नया प्रस्ताव सिर्फ अपराध रिकॉर्ड या यात्रा इतिहास तक सीमित नहीं, बल्कि लोगों के फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन को देखता है. ऑनलाइन व्यवहार सरकारी दस्तावेज की तरह काम करेगा, जिसे चेक करके तय होगा कि कोई देश में एंट्री के लायक है या नहीं. यहीं आता है रेपुटेशन बॉर्डर का कंसेप्ट.
इस तरह से डिजिटल इतिहास को सेकेंडरी पासपोर्ट की तरह देखा जाएगा. लेकिन यहां कई मुश्किलें आ सकती हैं, जैसे
- एल्गोरिदम व्यंग्य को कैसे समझेगा?
- राजनीतिक असहमति को शत्रुता दिखाया जा सकता है.
- मीम्स को क्रूरता माना जा सकता है.
- किसी विवादित इंसान को फॉलो करना समस्या लाएगा.
असल में एल्गोरिदम अक्सर सटायर, भावनात्मक या राजनीतिक टिप्पणियों को गलत समझते हैं. मामूली मजाकिया पोस्ट भी ऑटोमैटेड फिल्टर की रेड लाइन में आ सकती है, जो दिखाएगी कि फलां शख्स संदिग्ध सोच रखता है या क्रूर है.

भारतीय का डिजिटल फुटप्रिंट रडार पर हो सकता है
हमारे यहां 49 करोड़ से ज्यादा सोशल मीडिया यूजर हैं. लोग रोजाना राजनीतिक और सामाजिक बहस करते हैं. यहां दुनिया का सबसे बड़ा वीजा एप्लिकेंट समूह भी है. लाखों स्टूडेंट अमेरिका जाते हैं. लाखों यात्री जाते हैं. लाखों लोग काम से जाते हैं. सोशल मीडिया के साथ इमिग्रेशन एक्टिविटी मिलकर भारत को वहां खड़ा करती हैं, जहां डिजिटली छोटी सी चूक भी किसी को घेरे में ला सकती है.
लोग अपनी डिजिटल हिस्ट्री मिटा रहे हैं
पॉलिसी लागू होने से पहले ही लोग अपनी ऑनलाइन भूलचूक को गायब कर रहे हैं. यूजर पुराने ट्वीट्स डिलीट कर रहे हैं, प्रोफाइल प्राइवेट कर रहे हैं और राजनीतिक चर्चा या संवेदनशील बातों पर चर्चा टाल रहे हैं.
क्या दूसरे देश अमेरिका की नकल करेंगे
अगर अमेरिका नियम लागू करे, तो हो सकता है कि दूसरे देश भी इसी रास्ते पर चल पड़ें. कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूके और यूरोपियन यूनियन पहले से ही डिजिटल मॉनिटरिंग करते रहे, भले ही यह उतना सख्त नहीं. वे इसके जरिए यह चेक करते हैं कि प्रवेश चाहने वाले व्यक्ति का किसी संदिग्ध गतिविधि से संबंध तो नहीं.
भविष्य में एक ऐसा सिस्टम भी बन सकता है जहां मित्र देशों में डिजिटल पैटर्न साझा किए जाएं ताकि समय बचे और सुरक्षा पक्की हो सके. इसका मतलब यह है कि किसी देश में अगर आपकी कोई पोस्ट फ्लैग हो जाए यानी संदिग्ध या गलत पाई जाए तो वीजा का फैसला कई देशों में अटक सकता है.