उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं. सूबे की सियासत के अतीत के पन्नों को पलटते हैं तो छह दशक के इतिहास में कोई भी मौजूदा सीएम अपनी कुर्सी नहीं बचा सका. चुनाव के बाद लगातार दूसरी बार सीएम नहीं बन सका. ऐसे में सीएम योगी 2022 के चुनाव में क्या तोड़ेंगे 60 साल का ट्रेंड या फिर बरकरार रहेगा इतिहास?
सत्ता काबिज रहने वाला ब्राह्मण समुदाय अब महज वोट बैंक बनकर रह गया है. यूपी में सबसे ज्यादा ब्राह्मण समुदाय से मुख्यमंत्री के बने हैं तो सत्ता की कमान सबसे ज्यादा मायावती ने संभाली है. हालांकि, मंडल की राजनीति के बाद सूबे की सियासत बदली है और सवर्णों की जगह ओबीसी ने ले ली है. यूपी के सियासी इतिहास में अब तक के बनने वाले मुख्यमंत्री के लेकर चर्चा करेंगे और बताएंगे कि किस समाज व राजनीतिक पार्टी कितने सीएम बने हैं?
यूपी में की सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री मायावती बनी हैं. मायावती 4 बार राज्य की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, लेकिन महज एक बार ही पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. वहीं, चंद्रभानु गुप्त, नारायण दत्त तिवारी और मुलायम सिंह तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं, पर पांच साल कुर्सी पर नहीं रहे. डॉ. संपूर्णानंद, चौधरी चरण सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा और कल्याण सिंह दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं.
आजादी के बाद 70 सालों में उत्तर प्रदेश के 33 मुख्यमंत्री बने हैं, जिससे इस बात का संकेत है कि इस शक्ति का उपभोग उच्च जातियों ने किया जिनमें छह ब्राह्मण, पांच ठाकुर, तीन वैश्य (बनिया), एक कायस्थ, एक बंगाली ब्राह्मण महिला जिन्होंने अपने सिंधी पति के नाम का टाइटल अपनाया (सुचेता कृपलानी), जिन्हें ब्राह्मण माना जाता है. इसके अलावा एक जाट और तीन यादव हैं. एक लोधी और एक दलित समुदाय से मुख्यमंत्री बनी हैं.
यपी में सबसे ज्यादा ब्राह्मण सीएम
यूपी की सियासत में 1952 से लेकर 1989 तक ब्राह्मण का वर्चस्व कायम रहा और 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने. गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी बने. ये सभी कांग्रेस से थे. इनमें नारायण दत्त तिवारी तीन बार यूपी के सीएम रहे. अगर इन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को देखें तो करीब 23 साल तक प्रदेश की सत्ता की कमान ब्राह्मण समुदाय के हाथ में रही है. इसके अलावा सूबे में दूसरे दलों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बन सका.
यूपी में पांच ठाकुर मुख्यमंत्री रहे
उत्तर प्रदेश में अभी तक पांच ठाकुर समुदाय से मुख्यमंत्री बने हैं, जिनमें तीन कांग्रेस से और दो बीजेपी से रहे. कांग्रेस से 3 ठाकुर सीएम बनने वालों में त्रिभुवन नारायण सिंह, वीपी सिंह और वीर बहादुर सिंह थे जबकि बीजेपी से राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ हैं. इनमें योगी आदित्यनाथ एकलौते सीएम है, जो पांच साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं.
तीन वैश्य समाज के मुख्यमंत्री
यूपी की सत्ता पर वैश्य (बनिया) समाज का भी कब्जा रहा है, जिनमें एक कांग्रेस, एक जनता पार्टी और एक बीजेपी से सीएम बने हैं. कांग्रेस से चंद्रभानु गुप्त सीएम बने तो जनता पार्टी से बाबू बनारसी दास और बीजेपी से रामप्रकाश गुप्ता मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, चंद्रभानु गुप्ता तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे हैं और तीन बार कांग्रेस से. चंद्रभानु गुप्त पहली बार 1960 से लेकर साल 1962 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. दूसरी बार वह 19 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने थे. तीसरी बार चंद्रभानु गुप्त साल 1967 में मुख्यमंत्री बने लेकिन इस बार उनका कार्यकाल केवल 19 दिन का था. इसके अलावा बाकी दोनों सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
यूपी में चार ओबीसी सीएम बने
उत्तर प्रदेश की राजनीति अब भले ही ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी रही हो, लेकिन सूबे के मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबे समय तक उन्हें इंतजार करना पड़ा है. ओबीसी समाज में तीन यादव जाति से मुख्यमंत्री बने हैं जबकि एक लोधी जाति से. यूपी में पहला ओबीसी मुख्यमंत्री जनता पार्टी से राम नरेश यादव बने थे, लेकिन बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए. इसके अलावा सपा के मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सीएम बने. मुलायम सिंह एक बार जनता दल से सीएम बने और दो बार सपा से. वहीं, अखिलेश महज एक बार सीएम बने, लेकिन पांच साल तक कुर्सी पर रहे.
बीजेपी ने पहला सीएम ओबीसी दिया
बीजेपी ने यूपी में अपना पहला सीएम ओबीसी समुदाय से दिया. लोधी समुदाय से आने वाले कल्याण सिंह बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने थे. कल्याण सिंह दो बार सीएम रहे. पहली बार कल्याण सिंह 24-06-1991 से 06-12-1992 तक और दूसरी बार वो 21-09-1997 से 12-11-1999 तक रहे. कल्याण सिंह को हटाकर बीजेपी ने रामप्रकाश गुप्त को सीएम बनाया था.
जाट समुदाय से चौधरी चरण सिंह
उत्तर प्रदेश में पहले गैर-कांग्रेस मुख्यमंत्री बनने वाले में चौधरी चरण सिंह का नाम आता है, जो पश्चिमी यूपी के जाट समाज से आते हैं. चौधरी चरण सिंह दो बार मुख्यमंत्री बने. पहली बार 1967 से 1968 तक रहे और दूसरी बार 2 फरवरी 1970 से 1 अक्टूबर 1970 तक रहे.
कांग्रेस राज में कायस्थ मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस से सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड डॉ. संपूर्णानंद के नाम है, जो कायस्थ समुदाय से थे. डॉ. संपूर्णानंद दो बार सीएम बने हैं. पहली बार डॉ सम्पूर्णानन्द दिंसबर 1954 से अप्रैल 1957 तक. इसके बाद दूसरी बार अप्रैल 1957 से दिंसबर 1960 तक सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहे.
मायावती यूपी की पहली दलित सीएम
उत्तर प्रदेश में दलित मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती का नाम दर्ज है. वो यूपी की एकलौती दलित सीएम हैं और बसपा से चार बार सीएम बनीं. मायावती पहली बार जून साल 1995 में मुलायम सिंह की पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ कर बीजेपी और अन्य दलों के समर्थन से पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद दूसरी बार 1997 में मुख्यमंत्री बनी इस बार उनका कार्यकाल 6 महीने का था. तीसरी बार 2002 में बाजेपी के साथ गठबंधन करके सत्ता में आईं और सवा साल तक रहीं. इसके बाद 2007 में मायावती ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
क्या टूटेगा छह दशक का इतिहास
उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच शह-मात का खेल चल रहा है. अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा चुनावी मैदान में उतरी है तो बीजेपी सीएम योगी आदित्यनाथ को आगे कर चुनाव लड़ रही है. बसपा से मायावती सीएम का चेहरा है तो कांग्रेस प्रियंका गांधी के अगुवाई में जरूर चुनाव लड़ रही है, लेकिन सीएम कैंडिडेट किसी को घोषित नहीं किया है. यूपी की छह दशक के इतिहास में मौजूदा सीएम अपनी कुर्सी नहीं बचा सका है. ऐसे में देखना होगा कि यूपी के चुनाव में इस बार योगी आदित्यनाथ यह मिथक तोड़ पाते हैं या फिर इतिहास रहेगा बरकार?