बिहार के बेगूसराय जिले के मटिहानी प्रखंड में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक रैली कर रहे थे. इस रैली में हुजूम उमड़ा था. इस हुजूम में पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक संख्या थी महिलाओं की. बड़ी तादाद ऐसी महिलाओं की भी थी, जो अपने बच्चों को भी साथ लेकर आई थीं. दावा यह भी है कि जीविका दीदियां, महिला स्वयं सहायता समूहों की सदस्य बड़ी संख्या में जुटी थीं. सीएम नीतीश जब मंच पर पहुंचे, उनके स्वागत की गर्मजोशी और ऊर्जा ने कोई शक नहीं छोड़ा कि ये उनका वोटर वर्ग है.
राजनीतिक रैलियों में महिलाओं की भारी तादाद अब भी सामान्य नहीं, खासकर उत्तर भारत में. यह नीतीश की रैली से ठीक एक दिन पहले कटिहार में हुई राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त रैली दिखा भी, जहां मुट्ठीभर महिलाएं ही पहुंची थीं. तेजस्वी यादव के संबोधन के बाद महिलाएं उठकर जाने भी लगीं, जिन्हें राहुल गांधी के संबोधन तक रुकने के लिए आयोजकों को मनाना पड़ा. दरअसल, बिहार चुनाव में महिलाएं डिसाइडिंग वोटर मानी जा रही हैं. खासकर तब, जब पिछले बिहार चुनाव में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन के बीच महज 12 हजार वोट का अंतर रहा था.
सीएसडीएस की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 2020 के बिहार चुनाव में ज्यादातर पुरुषों का समर्थन महागठबंधन को मिला था, जबकि महिला मतदाताओं ने ज्यादातर एनडीए को वोट किया था. आंकड़ों के आइने में देखें तो प्रदेश के प्रत्येक सौ मतदाताओं में पुरुषों की संख्या 53 और महिलाओं की 47 है. महिलाओं का मतदान प्रतिशत 2010 के विधानसभा चुनाव से ही हर बार पुरुषों के मुकाबले अधिक रहा है. इसके पीछे एक कारण यह भी बताया जाता है कि रोजी-रोजगार के चक्कर में पुरुष मतदाता बड़ी संख्या में अन्य राज्यों-शहरों का रुख किए हुए हैं.
महिला मतदाताओं के बीच एनडीए की यही छोटी दिखने वाली बढ़त उसे जीत की ओर धकेल सत्ता तक पहुंचा देती है. सीएम नीतीश भी इसे समझते हुए महिला मतदाताओं के बीच अपनी जमीन और मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. बिहार की वोटर लिस्ट में 3.6 करोड़ महिलाओं में से 1 करोड़ 21 लाख महिलाओं को नीतीश कुमार सरकार ने मुख्यमंत्री रोजगार योजना के तहत 10-10 हजार रुपये दिए हैं. वादा दो लाख रुपये तक देने का भी है. विपक्षी महागठबंधन ने भी महिलाओं को माई-बहिन योजना शुरू कर हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया है.
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तेजस्वी ने लगाया वादे कॉपी करने का आरोप
महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने एनडीए पर अपने वादे कॉपी करने, नकदी देकर वोट खरीदने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. तेजस्वी यादव का दावा है कि यह तरीका काम नहीं करेगा. महागठबंधन के ही घटक सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का कहना है कि नीतीश कुमार ने यह योजना महिलाओं के बीच अपना वोट बनाए रखने के लिए शुरू किया है. उन्होंने यह भी दावा किया कि कई महिलाएं माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्जजाल में फंसी हुई हैं और सरकार की ओर से दी गई धनराशि का ज्यादातर हिस्सा रोजगार सृजन की बजाय कर्ज चुकाने में ही चला जाएगा.
नीतीश की रैली में महिलाओं ने जताई नाराजगी
मोतिहारी के रचैया गांव में एक छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाली दयावती देवी ने साफ शब्दों में कहा कि इन 10 हजार रुपयों से महिलाएं कपड़े खरीदेंगी या बच्चों को पढ़ाएंगी. उन्होंने आगे जोड़ा कि सरकार ने दिया रोजगार के नाम पर है, लेकिन जरूरी नहीं कि हम सब इसका इस्तेमाल इसी काम में करें. नीतीश कुमार की रैली में पहुंची महिलाओं ने भी बढ़ती महंगाई को लेकर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की थी. महिलाओं की चिंता केवल खाने-पीने की वस्तुओं के महंगे होने तक ही सीमित नहीं, सोने को लेकर भी है.
महिलाओं का कहना था कि 10 ग्राम सोने की कीमतें 1 लाख 30 हजार रुपये तक हो गई हैं. बेटियों की शादी के लिए सोना खरीदने की सोचना भी मुश्किल हो गया है. हालांकि, इन सबके बावजूद ज्यादातर महिलाओं ने कहा कि नीतीश कुमार को ही वोट देंगे. इसके पीछे महिलाओं का तर्क था कि नीतीश कुमार ने महिलाओं को आजादी के साथ जीने का हक दिया है. एक महिला ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा कि पहले महिलाएं रात में बाहर नहीं निकल सकती थीं. अब ऐसा नहीं है और हमारी बात भी सुनी जाती है.
महिला का यह भी कहना था कि अगर कोई परेशानी हो, तो भी हमें पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. हम खुद उसका सामना करने में सक्षम हैं. नीतीश कुमार ने हमें अधिकार, सुरक्षा और आत्मविश्वास दिया है. एक अन्य महिला ने कहा कि सोने की कीमतें बहुत ज्यादा है. अमीरों के लिए कोई परेशानी नहीं, लेकिन हम जैसे लोगों के लिए दिक्कतें हैं. हम चाहते हैं कि इसकी कीमतें थोड़ी कम की जाएं. एक अन्य महिला ने कहा कि हम हर रोज तीन से चार सौ रुपये कमाते हैं. हम सोना कैसे खरीदेंगे?
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महिला ने यह भी दावा किया कि जिन्हें जरूरत है, उन्हें घर नहीं मिलते. पानी नहीं मिलता. जबकि ऐसे लोगों को घर मिल जा रहे, जिनके पास दो मंजिल का, तीन मंजिल का घर पहले से ही है. हम उसे वोट देंगे, जो हमें घर देगा. सरकार की ओर से दी गई 10-10 हजार की सहायता राशि को लेकर महिला ने कहा कि मुझे अभी तक एक भी पैसा नहीं मिला है. गौर करने वाली बात यह भी है कि बिहार में 94 लाख परिवार ऐसे हैं, जिनकी आमदनी 6 हजार रुपये प्रति माह से भी कम है. यह आंकड़े बिहार में हुए जातिगत-आर्थिक सर्वेक्षण के हैं. ऐसे परिवारों के लिए एकमुश्त 10 हजार रुपये कोई छोटी रकम नहीं.
महिला मतदाताओं का नीतीश से गहरा जुड़ाव
अब अतीत की बात करें, तो सीएम नीतीश ने पिछले दो दशक में महिलाओं मतदाताओं के साथ गहरा जुड़ाव स्थापित किया है और वह बार-बार इसे याद दिलाना भी नहीं भूलते. उनके लगभग हर भाषण में पंचायत और शहरी निकायों में महिलाओं के लिए 50%, पुलिस में 35% आरक्षण की बात होती है. सीएम नीतीश की रैलियों में भी हर जगह महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती दिखती है. बिहार अब देश में महिला पुलिस अधिकारियों के सर्वाधिक अनुपात वाला राज्य भी बन गया है.
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नीतीश कुमार खुद भी विरोधियों पर वार करते हुए बार-बार दोहराते हैं कि लालू यादव के समय महिलाएं शाम को बाहर नहीं निकल सकती थीं. महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया, बस अपनी पत्नी को मु्ख्यमंत्री बना दिया. इंडियन एक्सप्रेस की कॉन्ट्रिब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने हाल ही में आजतक के सहयोगी 'न्यूज़ तक' के साप्ताहिक कार्यक्रम में कहा था कि पुलिस में भर्ती होने से महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है. पहले लड़कियां घर से बाहर निकलने से भी डरती थीं, अब वे ही कानून-व्यवस्था बनाए रखने का काम कर रही हैं.
20 साल से सीएम हैं नीतीश
साल 2014 के आम चुनाव के बाद कुछ महीनों के जीतनराम मांझी के कार्यकाल को हटा दें, तो करीब 20 साल से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं. वह बारी-बारी बीजेपी और आरजेडी, दोनों के ही साथ गठबंधन करते रहे हैं. वह 2005 के चुनाव से ही हर बार विजयी गठबंधन में शामिल रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के सीनियर असिस्टेंट एडिटर संतोष सिंह ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि महाभारत में जिस तरह भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था, उसी तरह नीतीश कुमार को भी शासन के मामले में वरदान प्राप्त है.
अब सवाल यह है कि 2025 के बिहार चुनाव में क्या होगा?
(रिपोर्ट- मिलिंद खांडेकर)