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बिहार में शराबबंदी के 10 साल... जानें- फायदा ज्यादा हुआ या नुकसान?

बिहार में शराबबंदी के 10 साल पूरे हो गए हैं, इसके चलते राजस्व में भले ही भारी गिरावट आई हो, लेकिन सामाजिक और स्वास्थ्य लाभ के आंकड़े राहत भरे हैं. पुरुषों में शराब सेवन घटा, मोटापा कम हुआ और महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी आई. जबकि विवाहित महिलाओं की सुरक्षा बढ़ी. पड़ोसी राज्यों से तुलना करने पर भी बिहार का प्रदर्शन बेहतर रहा. यह साबित करता है कि आर्थिक नुकसान के बावजूद शराबबंदी का सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव सकारात्मक रहा.

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बिहार में शराबबंदी के कई सामाजिक फायदे हुए हैं (Photo: PTI)
बिहार में शराबबंदी के कई सामाजिक फायदे हुए हैं (Photo: PTI)

बिहार में शराबबंदी अपने दसवें साल में प्रवेश कर चुकी है. 2016 में जब बिहार सरकार ने ये नीति लागू की थी, तब बहुत से लोगों को चिंता थी कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जो कि पहले से ही संकटग्रस्त थी. हालांकि उस समय सरकार का तर्क था कि इस कदम से होने वाले सामाजिक फायदे आर्थिक नुकसान से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होंगे. अब, एक दशक बाद बड़ा सवाल ये है कि क्या शराबबंदी ने बिहार को सच में कोई फायदा पहुंचाया है?


शराब पर राज्य को मिलने वाली एक्साइज ड्यूटी बिहार सरकार की आय का बड़ा हिस्सा थी. लेकिन शराबबंदी लागू होने के बाद राज्य को अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का लगभग 1 प्रतिशत नुकसान झेलना पड़ा.  जो उसके कुल टैक्स रेवेन्यू के 15 प्रतिशत के बराबर था.

2012-13 से 2015-16 के बीच स्टेट एक्साइज ड्यूटी से आय GSDP के 0.8 से 1 प्रतिशत के बीच रही. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक बजट विश्लेषण के मुताबिक 2015-16 में सरकार ने 3,142 करोड़ रुपये एक्साइज ड्यूटी से कमाए थे, जो 2016-17 में घटकर सिर्फ 30 करोड़ रुपये रह गया. इसके बाद से यह आंकड़ा लगभग नगण्य हो गया है. इसके विपरीत, 2022–23 में अन्य राज्यों ने औसतन अपने GSDP का लगभग 1 प्रतिशत रेवेन्यू शराब से ही अर्जित किया.

 

हालांकि शराबबंदी के कारण बिहार को कुछ समय के लिए राजस्व की कमी का सामना करना पड़ा, लेकिन स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवहार के स्तर पर इसके स्पष्ट सकारात्मक परिणाम सामने आए. प्रतिबंध लागू होने के बाद पुरुषों के स्वास्थ्य में सुधार देखा गया और महिलाओं के खिलाफ भावनात्मक और यौन हिंसा के मामलों में गिरावट दर्ज की गई.

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अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा द लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार शराबबंदी से पुरुषों में नियमित शराब पीने की प्रवृत्ति घटी, मोटापा कम हुआ, और महिलाओं के खिलाफ मानसिक और यौन हिंसा के मामलों में भी कमी आई. इन निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि बिहार की शराबबंदी नीति ने आर्थिक नुकसान के बावजूद सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डाले.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद पुरुषों में दैनिक या साप्ताहिक शराब सेवन के लगभग 24 लाख मामले, मोटापे के करीब 18 लाख मामले, और महिलाओं में घरेलू हिंसा के लगभग 21 लाख मामलों में कमी आई.

रिसर्च के मुताबिक शराब का सेवन वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता पर गहरा असर डालता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 83 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने बताया कि जब उनके पति अक्सर शराब पीते थे, तब उन्हें शारीरिक या भावनात्मक हिंसा का सामना करना पड़ता था. वहीं, जिनके पति शराब नहीं पीते थे, उनमें यह प्रतिशत सिर्फ 34 प्रतिशत था- यानी अंतर लगभग ढाई गुना से ज़्यादा का है. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि शराबबंदी ने महिलाओं की सुरक्षा और पारिवारिक स्थिरता पर ठोस सकारात्मक प्रभाव डाला है.

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बिहार में शराबबंदी के चलते घरेलू हिंसा और पुरुषों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ा है, जो पड़ोसी राज्यों की तुलना में बेहतर रहा. 2015-16 से 2019-21 तक गर्भावस्था के दौरान महिलाओं पर होने वाली हिंसा में बिहार में 2 प्रतिशत की कमी आई. इसके मुकाबले उत्तर प्रदेश में यह सिर्फ 0.7 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 1.5 प्रतिशत कम हुई. 

पुरुषों के स्वास्थ्य की बात करें तो 15-49 साल के हाई ब्लड प्रेशर वाले पुरुषों में बिहार में केवल 1.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि उत्तर प्रदेश में यह 10.9 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 4 प्रतिशत बढ़ा. डायबिटीज की शिकायत वाले पुरुषों में बिहार में 0.1 प्रतिशत की कमी आई, जबकि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में क्रमशः 0.4 और 0.7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई. इन आंकड़ों से साफ़ होता है कि शराबबंदी ने बिहार में पुरुषों के स्वास्थ्य और महिलाओं की सुरक्षा पर सकारात्मक असर डाला.

यह उदाहरण ये दिखाता है कि अत्यधिक शराब पीने को नियंत्रित करने वाली नीतियां जरूरी हैं, हालांकि शराबबंदी से आर्थिक नुकसान हो सकता है, फिर भी इसके असर का मूल्यांकन करते समय इसके सामाजिक और स्वास्थ्य लाभ को ध्यान में रखना बहुत महत्वपूर्ण है.

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