20 साल में दोगुनी आबादी और भारत से ज्यादा सांसद, कनाडा में सिखों का इतना दबदबा क्यों?

निज्जर हत्याकांड को लेकर जस्टिन ट्रूडो की टिप्पणी के बाद भारत और कनाडा के बीच तनाव चरम पर है. ट्रूडो ने आरोप लगाया कि निज्जर हत्याकांड में भारत का हाथ है, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया. आइए जानते हैं कि कनाडा में सिखों का इतना दबदबा क्यों है, जो कनाडा के प्रधानमंत्री एक आतंकवादी की हत्या को लेकर भारत से रिश्ते खराब करने पर तुले हुए हैं.

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कनाडा के ओटावा स्थित गुरुद्वारा साहिब में बैठे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (फोटो- रॉयटर्स) कनाडा के ओटावा स्थित गुरुद्वारा साहिब में बैठे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (फोटो- रॉयटर्स)

सुदीप कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 29 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:52 PM IST

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की ओर से भारत पर लगाए गए संगीन आरोप के बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव चरम पर है. जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में बोलते हुए भारत पर आरोप लगाया है कि कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ हो सकता है. भारत ने कनाडा के इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है.

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ट्रूडो के आरोप के बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं. कनाडा ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने का आरोप लगाते हुए भारत के एक वरिष्ठ राजनयिक को निष्कासित कर दिया. जिसके बाद 'जैसे को तैसा' की नीति के तहत भारत ने भी अगले कुछ घंटे में कनाडा के एक वरिष्ठ डिप्लोमैट को पांच दिन के अंदर भारत छोड़ने का आदेश दे दिया. 

इसके अलावा भारत ने कनाडाई नागरिकों के लिए भारतीय वीजा सेवाओं को अगले आदेश तक बंद कर दिया. साथ ही भारत ने ट्रूडो सरकार से नई दिल्ली में कनाडाई डिप्लोमैट की संख्या को कम करने के लिए कहा. ऐसे में आइए जानते हैं कि कनाडा में सिखों का इतना दबदबा क्यों है, जो कनाडा के पीएम ट्रूडो एक आतंकवादी के लिए भारत से रिश्ते खराब करने पर तुले हुए हैं.

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यह पहली बार नहीं है जब किसी खालिस्तानी आतंकी को लेकर दोनों देश आमने-सामने हैं. इससे पहले भी कनाडा ने कई बार खालिस्तानियों का बचाव किया है. साल 1982 में जस्टिन ट्रूडो के पिता और तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से किए गए खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था.

कनाडा में सिखों की आबादी 

2021 की जनगणना के मुताबिक, कनाडा की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 70 लाख है. कुल आबादी का चार प्रतिशत यानी लगभग 16 लाख कनाडाई भारतीय मूल के हैं. वहीं, लगभग 7 लाख 70 हजार सिर्फ सिख हैं. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि पिछले 20 साल में कनाडा में सिखों की आबादी दोगुनी हो गई है. इनमें से ज्यादातर सिख पंजाब से माइग्रेट हुए हैं, जिनका मकसद उच्च शिक्षा प्राप्त करना या जॉब करना था. 

कनाडा में सिखों का वर्चस्व

कनाडा में सिखों की आबादी काफी तेजी से बढ़ी है. ईसाई, मुस्लिम और हिंदू के बाद सिख कनाडा का चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है. यही नहीं, अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद पंजाबी कनाडा में तीसरी सबसे लोकप्रिय भाषा है. कनाडा में सबसे ज्यादा सिख ओंटारियो, ब्रिटिश कोलंबिया और अल्बर्टा में रहते हैं. कनाडा के निर्माण, परिवहन और बैंकिंग क्षेत्र में सिखों का बहुत बड़ा योगदान है. कई सिख होटल-रेस्टोरेंट और गैस स्टेशन जैसे सफल बिजनेस हाउसेज के मालिक हैं.

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इसके अलावा लगभग 4.15 लाख सिखों के पास रहने के लिए स्थायी घर है. जबकि 1980 तक केवल 35 हजार सिखों के पास रहने के लिए कनाडा में स्थायी घर था. वहीं, लगभग 1.19 लाख सिख बिना स्थायी घर के कनाडा में रह रहे हैं. जस्टिन ट्रूडो 2015 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बनें तो उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में सिख समुदाय से चार मंत्रियों को चुना. जो केंद्रीय स्तर पर सिख समुदाय का अब तक का सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व था. 

कनाडा में सिखों का दबदबा कैसे?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कनाडा में सिख समुदाय का दबदबा का एक प्रमुख कारण गुरुद्वारों के माध्यम से उनकी तगड़ी नेटवर्किंग है. वे सिख फंड के रूप में अनुदान के तहत पैसा इकट्ठा करते हैं. इस फंड का एक बड़ा हिस्सा चुनाव प्रचार में खर्च किया जाता है. वर्तमान में कनाडा के 388 सांसदों में से 18 सिख हैं. इनमें से आठ सीटों पर पूरी तरह से सिखों का दबदबा है. इसके अलावा 15 अन्य सीटों पर सिख महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि कोई भी राजनीतिक दल इस समुदाय को नाराज नहीं करना चाहता है.

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की ओर से बार-बार इस मुद्दे को उठाने के बावजूद कार्रवाई करने के बजाय खालिस्तानियों को बढ़ावा देना सिख वोटों पर उनकी निर्भरता है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कनाडा पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि कनाडा खालिस्तान से कैसे निपट रहा है, यह लंबे समय से हमारे लिए चिंता का विषय रहा है. वे (जस्टिन ट्रूडो) वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित प्रतीत होते हैं.

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कनाडा में सिखों का राजनीतिक दबदबा कितना ज्यादा है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2018 में कनाडा की खुफिया रिपोर्ट ने खालिस्तानियों को देश के शीर्ष पांच आतंकवादियों के रूप में सूचीबद्ध किया था. लेकिन ट्रूडो सरकार के भीतर सिख समुदाय के नेताओं ने इतनी गंभीर प्रतिक्रिया दी थी कि बाद में सरकार ने खालिस्तानी आतंकवाद के दावों से किनारा कर लिया था. 

खालिस्तान समर्थक ट्रूडो सरकार में सहयोगी

खालिस्तानी समर्थक और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के नेता जगमीत सिंह की पार्टी भी टूडो सरकार में गठबंधन सहयोगी है. यह भी एक कारण है जिसके कारण जस्टिन ट्रुडो खालिस्तानियों के खिलाफ कार्रवाई करने का जोखिम नहीं उठाते हैं.

जगमीत सिंह का जन्म 1979 में कनाडा के ओंटारियों प्रांत में पंजाबी परिवार में हुआ था. प्रधानमंत्री ट्रूडो की लिबरल पार्टी जब 2019 के चुनाव में बहुमत हासिल करने में विफल रही तो जगमीत सिंह किंगमेकर के रूप में उभर के सामने आए.

कम आबादी और कम सीटें फिर भी भारत से ज्यादा सिख सांसद

कनाडाई जनगणना 2021 के मुताबिक, कनाडा में लगभग 7 लाख 70 हजार सिर्फ सिख हैं. कनाडा के 338 सीटों वाली हाउस ऑफ कॉमन्स में 18 सिख सांसद हैं. 

वहीं, भारत में 543 सीटों वाली लोकसभा में केवल 13 सिख सांसद हैं. जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में 2 करोड़ से ज्यादा सिख रहते हैं, जो देश की कुल आबादी का 1.7 प्रतिशत है. इसमें से लगभग 1.6 करोड़ सिख पंजाब में रहते हैं. पंजाब की कुल जनसंख्या में सिखों की संख्या लगभग 58 प्रतिशत है.

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कौन था हरदीप निज्जर?

भारत सरकार ने 2020 में निज्जर को आतंकवादी घोषित किया था. सरकार की ओर से कहा गया था कि इसके पर्याप्त सबूत हैं कि निज्जर देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने में शामिल था. साथ ही भारत में विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने की कोशिश कर रहा था. जून 2023 में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के सर्रे शहर में निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 

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