किम जोंग के कॉल इंटरसेप्ट की कोशिश और ट्रंप से मुलाकात... नॉर्थ कोरिया की जमीं पर US के नाकाम ऑपरेशन की कहानी

2019 की शुरुआत में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, अमेरिका ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन के कॉल्स और अन्य कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट करने के लिए एक गुप्त मिशन चलाया था.

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अमेरिका का किम जोंग उन के खिलाफ 2019 का सीक्रेट ऑपरेशन क्या था (File Photo: Reuters) अमेरिका का किम जोंग उन के खिलाफ 2019 का सीक्रेट ऑपरेशन क्या था (File Photo: Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:42 PM IST

डोनाल्ड ट्रंप 2019 में जब उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन से परमाणु वार्ता करने की तैयारी कर रहे थे, तब उनकी टीम ने उत्तर कोरिया पर रणनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश की. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने किम जोंग की कॉल्स को इंटरसेप्ट करने का प्रयास किया था, जिससे अमेरिका किम जोंग की संचार व्यवस्था में सेंध लगा सके. लेकिन अमेरिका का यह मिशन बुरी तरह फेल साबित हुआ.

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2019 की शुरुआत में डोनाल्ड ट्रंप की अनुमति से अमेरिकी नेवी सील टीम 6 ने उत्तर कोरिया की जमीन पर एक गुप्त मिशन शुरू किया. इस मिशन का उद्देश्य एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण स्थापित करना था, जिसके जरिए नेता किम जोंग उन की संचार प्रणाली को इंटरसेप्ट किया जा सके.

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मिशन के लिए महीनों तक तैयारियां की गईं. लेकिन कई जटिलताओं की वजह से यह योजना उस समय ध्वस्त हो गई, जब उपकरण इंस्टॉल भी नहीं हो पाया. इसके असफल होने के पीछे तीन प्रमुख कारण थे. पहला, सबमरीन तैनाती के दौरान नेविगेशन संबंधी गलतियां, रियल टाइम खुफिया जानकारी और निगरानी कमी और उत्तर कोरिया के दल के साथ एनकाउंटर. इन जटिलताओं ने मिलकर इस ऑपरेशन का बेड़ा गर्क कर दिया.

मिशन फेल कैसे हुआ?

इस मिशन की शुरुआत में SEALs दो छोटी मिनी सबमरीनों में सवार होकर आगे बढ़े और उत्तर कोरिया के तट के पास पहुंचे. दो घंटे तक पानी के भीतर गुप्त रूप से बढ़ने के बाद टीमें उत्तर कोरियाई तट के पास निर्धारित क्षेत्र में पहुंचीं.

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न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस योजना के तहत दोनों मिनी-सबमरीनों को एक सीध में खड़ा होना था, ताकि तट पर उतरने वाली टीम कुशलतापूर्वक उतर सके और डिवाइस लगाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके. हालांकि, पहली गड़बड़ उस समय हुई, जब एक मिनी-सबमरीन अपने निर्धारित स्थान से आगे निकल गई.

इस वजह से उसे यू-टर्न लेकर वापस आना पड़ा. इससे तालमेल गड़बड़ हुआ और टीम को समय से पहुंचने में देरी हुई. हालांकि उस समय इसे एक छोटी समस्या माना गया, लेकिन इस गलती ने भ्रम पैदा किया और बाद में इसका बड़ा असर देखने को मिला.

दूसरी बड़ी चुनौती सर्विलांस की सीमाओं की वजह से हुई. अन्य अभियानों की तरह यहां न तो लाइव ड्रोन फीड उपलब्ध थी और न ही नजदीकी हवाई सहायता. इसके बजाय यह मिशन केवल उपग्रहों और ऊंचाई से की गई टोही पर निर्भर था, जो कम गुणवत्ता वाली तस्वीरें मुहैया कर पा रही थी. 

रियल टाइम कम्युनिकेशन नहीं होने और हालात की जानकारी न मिल पाने का मतलब था कि SEALs को अपने लक्ष्य क्षेत्र के आसपास संभावित खतरों की बहुत सीमित जानकारी के साथ आगे बढ़ना पड़ा. चिह्नित स्थान पर उतरने के बाद SEALs अंधेरे में तट की ओर तैरते हुए बढ़े. इस दौरान उन्होंने ये माना कि यह क्षेत्र सुनसान है.

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लेकिन पास ही एक मछली पकड़ने वाली नाव मौजूद थी, जिस पर उत्तर कोरिया का एक छोटा सा दल सवार था जिसे नजरअंदाज कर दिया गया था. क्रू द्वारा पहने गए वेटसूट्स के कारण वह नाव SEALs द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे नाइट विजन उपकरणों से आसानी से दिखाई नहीं दी. यह गलत आकलन बेहद निर्णायक साबित हुआ.  इस बीच, मिनी-सबमरीन के पायलटों ने पहले के गलत तालमेल को ठीक करने की कोशिश की.

बेहतर दृश्यता के लिए कॉकपिट हैच खुले रहने से इलेक्ट्रिक मोटरों ने आवाज और हल्की सी चमक पैदा की, जिसने संभवतः उत्तर कोरियाई नाव का ध्यान उस ओर गया. इसके बाद वह नाव नजदीक आने लगी और उसका दल टॉर्च की रोशनी से सतह को टटोलने लगा. घटनाओं की इस कड़ी में तट पर मौजूद SEALs की नजर से देखा जाए तो वह नाव मिनी-सब्स को खोज निकालने के बेहद खतरनाक ढंग से करीब पहुंच चुकी थी. 

इस घटना ने मिशन को तुरंत रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया. नियमों के अनुसार, यदि इस तरह की कोई स्थिति आती तो तुरंत पीछे हटना जरूरी था. इस दौरान सुरक्षाबलों द्वारा पकड़े जाने की संभावना अत्यधिक बढ़ गई थी.

SEALs मिनी सबमरीनों की ओर लौटे, जिन्होंने इमरजेंसी की स्थिति में वापस लौटने का संकेत दिया. बड़ी सबमरीन ने टीम को निकालने के लिए जोखिम उठाया और फिर वापस लौट गई. इस तरह मिशन अपने उद्देश्य को पूरा किए बिना समाप्त हो गया.

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2019 में किम जोंग और ट्रंप की वार्ता

इसके बाद जून 2019 में किम जोंग उन और ट्रंप की मुलाकात हुई, जिससे उम्मीदें थी कि बातचीत के जरिए किम जोंग के परमाणु कार्यक्रमों को खत्म करने का रास्ता निकलेगा.

ट्रंप के पहले कार्यकाल 2017 से 2021 के दौरान किम के साथ तीन वार्ताएं हुईं. इस दौरान दोनों के बीच कई खतों का आदान-प्रदान हुआ. लेकिन यह कूटनीतिक प्रयास उस समय टूट गया जब अमेरिका ने किम जोंग से उनके परमाणु हथियार छोड़ने की मांग की.

2019 में ट्रंप की कूटनीति के असफल होने के बाद उत्तर कोरिया ने बातचीत की मेज पर लौटने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
 

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