'H1B वीजा के लिए 89 लाख की फीस जायज', अमेरिकी कोर्ट ने ट्रंप के फैसले पर लगाई मुहर

ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा की फीस 1 लाख डॉलर तक बढ़ाई थी, जिसे लेकर अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया है. इसके बाद यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की है. चैंबर का तर्क है कि फीस बढ़ोतरी फेडरल इमिग्रेशन कानून का उल्लंघन है.

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कोर्ट ने H-1B वीजा को लेकर ट्रंप के फैसले को बरकरार रखा है (File Photo) कोर्ट ने H-1B वीजा को लेकर ट्रंप के फैसले को बरकरार रखा है (File Photo)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST

ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा की फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (89,86,855 रुपये) कर दिया था जिसे लेकर चल रही लड़ाई अब अपील कोर्ट तक पहुंच गई है. एक फेडरल जज ने इस फीस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया जिसके बाद मामला अपील कोर्ट पहुंचा है.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के सबसे बड़ा कारोबारी लॉबी संगठन 'यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स' ने इस हफ्ते डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर की है, जिसमें फीस बढ़ोतरी को बरकरार रखा गया था.

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H-1B वीजा की फीस सितंबर में एक राष्ट्रपति घोषणा के जरिए बढ़ाई गई थी. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फीस बढ़ाने के पीछे तर्क दिया था कि इससे H-1B वीजा प्रोग्राम का दुरुपयोग रोकने में मदद मिलेगी. H-1B वीजा प्रोग्राम के तहत अमेरिकी कंपनियों को खास भूमिकाओं के लिए उच्च शिक्षा वाले विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की इजाजत मिलती है. इस प्रोग्राम का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और हेल्थकेयर कंपनियां करती हैं.

H-1B वीजा की फीस कम करने को लेकर क्या तर्क दिए गए?

ब्लूमबर्ग के अनुसार, अक्टूबर में दायर मुकदमे में चैंबर ऑफ कॉमर्स ने तर्क दिया था कि फीस में की गई भारी बढ़ोतरी फेडरल इमिग्रेशन कानून का उल्लंघन है. चैंबर ने कहा कि कांग्रेस ने कार्यपालिका को जो फीस निर्धारण की लिमिट बताई है, यह उससे बाहर है. संगठन का दावा था कि राष्ट्रपति की यह घोषणा वीजा फीस से जुड़े मौजूदा कानूनों को गैरकानूनी तरीके से दरकिनार करती है.

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हालांकि, वाशिंगटन डीसी की अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की जज बेरिल हॉवेल ने 23 दिसंबर को दिए गए फैसले में इन दलीलों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने स्पष्ट वैधानिक अधिकार के तहत यह कदम उठाया है. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरफ से नियुक्त जज हॉवेल ने अपने फैसले में माना कि ट्रंप के पास यह फीस लगाने का कानूनी अधिकार था.

ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस के लिटिगेशन एनालिस्ट मैथ्यू शेटेनहेल्म ने कहा कि इस फैसले के बाद अपील में चैंबर ऑफ कॉमर्स के सामने कठिन चुनौती होगी. उन्होंने लिखा कि हालांकि जज हॉवेल को ट्रंप प्रशासन के प्रति सख्त रुख के लिए जाना जाता है, फिर भी उन्होंने ट्रंप को बड़ी जीत दिलाई है. उनके मुताबिक, अगर जज हॉवेल को इस नई घोषणा में कोई कानूनी खामी नहीं दिखी, तो डीसी सर्किट या अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा होने की संभावना कम है.

गंभीर संकट में है H-1B वीजा प्रोग्राम

ये घटनाक्रम ऐसे समय सामने आए हैं जब पूरा H-1B वीजा प्रोग्राम नए नियमों के कारण गंभीर संकट से गुजर रहा है. इनमें सोशल मीडिया स्क्रीनिंग से जुड़े नियम और वीजा होल्डर के मूल देश के बाहर वीजा स्टैम्पिंग पर रोक शामिल है. इन नियमों के चलते दुनियाभर में अमेरिकी दूतावासों में वीजा प्रोसेसिंग में भारी देरी हो रही है और इंटरव्यू बार-बार टाले जा रहे हैं. 

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इसका नतीजा यह हुआ है कि कई प्रोफेशनल लोग अपनी नौकरियों और परिवारों से दूर फंसे हुए हैं. वकील और कंपनियां लोगों को नौकरी छोड़ने या अमेरिका से बाहर यात्रा न करने की सलाह दे रहे हैं.

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