बांग्लादेश की सत्ता से बेदखल की जा चुकीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए 17 नवंबर हमेशा एक गहरी याद छोड़ते आया है. 17 नवंबर को उनका मैरिज एनिवर्सरी होता है. इसी दिन उन्होंने प्रतिष्ठित भौतिक विज्ञानी एमए वाजेद मियां से हुई थी. इसी खास मौके के दिन शेख हसीना को बांग्लादेश की अदालत ने मौत की सजा सुनाई है. अब इसको लेकर चर्चा तेज है कि क्या बांग्लादेशी कोर्ट ने यह तारीख सोची-समझी रणनीति के तहत तय किया?
सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है कि क्या 17 नवंबर को जान-बूझकर फेसले के लिए चुना गया. शुरुआत में ट्रायल पूरा होने के बाद ICT ने फैसला 14 नवंबर को सुनाने का एलान किया था. लेकिन 13 नवंबर को अचानक इसकी तारीख बदलकर 17 नवंबर कर दी गई. इसी बदलाव ने बहस को हवा दे दी कि क्या यह सब राजनीतिक मकसद से किया गया.
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फेसबुक और X पर बांग्लादेशी यूज़र्स दो खेमों में बंट गए. कुछ का कहना है कि यह "कोई संयोग नहीं" बल्कि जानबूझकर हसीना को निजी तौर पर अपमानित करने की रणनीति थी. वहीं द डेली स्टार और देश रुपांतोर जैसे मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट किया कि लोग इस तारीख को लेकर बड़े पैमाने पर चर्चा कर रहे हैं - कई इसे "दुर्भाग्यपूर्ण संयोग" बता रहे हैं, तो कुछ इसे "राजनीतिक बदला" मानते हैं.
17 नवंबर शादी से मौत की सजा की कहानी बन गई
कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस, जो अंतरिम सरकार के प्रमुख हैं, ने "कपटपूर्वक" तारीख बदलवाई ताकि हसीना को उनकी सालगिरह के दिन सजा मिले. कई पोस्ट में यह भी लिखा गया, "17 नवंबर, हसीना की शादी से मौत की सजा तक की कहानी बन गया."
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फैसले के बाद अवामी लीग और शेख हसीना ने पूरी प्रक्रिया को "राजनीतिक प्रतिशोध" बताया. उन्होंने ICT को एक "रिग्ड ट्रिब्यूनल" कहा जिसका उद्देश्य अवामी लीग को राजनीतिक रूप से खत्म करना है. हसीना का कहना है कि उन्हें निष्पक्ष बचाव का मौका नहीं मिला और फैसला पहले से तय था.
कौन थे शेख हसीना के पति वाजेद मियां
शेख हसीना के पति एम ए वाजेद मियां का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा. 1963 में उन्होंने पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन में काम शुरू किया था, लेकिन उनकी नौकरी "अन्यायपूर्ण तरीके से" खत्म कर दी गई. बाद में 1971 की आजादी के बाद वे बांग्लादेश एटॉमिक एनर्जी कमीशन से जुड़े. उन्होंने विज्ञान और राजनीति पर कई महत्वपूर्ण किताबें भी लिखीं.
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