'सजा-ए-मौत पाने वाली शेख हसीना को वापस भेजें', बांग्लादेश की भारत से मांग, इस संधि का दिया हवाला

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पत्र लिखकर भारत सरकार से कहा है कि मानवता के खिलाफ अपराध में मौत की सजा पाए फरार दोषियों शेख हसीना और असदुज्जमां खान को पनाह देना न्याय का अपमान और अत्यंत शत्रुतापूर्ण कृत्य होगा.

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बांग्लादेश ने भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने की मांग की. (File Photo: PTI) बांग्लादेश ने भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने की मांग की. (File Photo: PTI)

गीता मोहन

  • ढाका,
  • 17 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:35 PM IST

बांग्लादेश ने सोमवार को औपचारिक रूप से भारत से अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को तुरंत सौंपने का अनुरोध किया और कहा कि द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि के तहत नई दिल्ली ऐसा करने के लिए बाध्य है. यह मांग बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT) द्वारा पिछले साल देशव्यापी छात्र विद्रोह पर हिंसक कार्रवाई में कथित भूमिका के लिए शेख हसीना और कमाल को मौत की सजा सुनाए जाने के कुछ घंटों बाद आई है.

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बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके कहा, 'अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने दोनों को जुलाई नरसंहार के लिए मानवता के खिलाफ अपराध में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है. इन फरार दोषियों को अगर कोई देश पनाह देता है, तो यह अत्यंत शत्रुतापूर्ण कृत्य होगा और न्याय की अवहेलना मानी जाएगी.' बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत के साथ 2013 की प्रत्यर्पण संधि का हवाला दिया है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा, 'दोनों देशों के बीच मौजूदा प्रत्यर्पण संधि के तहत इन दोषियों को बांग्लादेश को सौंपना भारत का अनिवार्य कर्तव्य है. हम भारत सरकार से इन दोनों को तुरंत बांग्लादेशी अधिकारियों के हवाले करने की अपील करते हैं.'

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मंत्रालय ने कहा कि शेख हसीना और असदुज्जमां खान कमाल पर लगे आरोपों की गंभीरता और इस मामले में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों को देखते हुए बांग्लादेश को उम्मीद है कि भारत उसकी कानूनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करेगा. बता दें​ कि शेख हसीना और असदुज्जमां खान कमाल 5 अगस्त 2024 से नई दिल्ली में शरण लिए हुए हैं. आईसीटी ने पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी मौत की सजा सुनाई, जिन पर मानवता के खिलाफ अपराध के मामले में उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया गया था. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि हसीना की तरह कमाल को भी ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई सजा का सामना करने के लिए बिना किसी देरी के स्वदेश भेजा जाना चाहिए.

शेख हसीना की सजा पर क्या बोला भारत?

वहीं भारत के विदेश मंत्रालय ने शेख हसीना को लेकर बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'एक करीबी पड़ोसी होने के नाते हम बांग्लादेश में शांति, लोकतंत्र, समावेशिता और राजनीतिक स्थिरता सहित वहां के लोगों के सर्वोत्तम हितों के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम बांग्लादेश में सभी हितधारकों के साथ रचनात्मक रूप से बातचीत करेंगे.' विदेश मंत्रालय के बयान में शेख हसीना के प्रत्यर्पण की बांग्लादेश की मांग का सीधे तौर पर जिक्र नहीं किया गया.

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भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि में क्या है?

भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) पर 28 जनवरी 2013 को ढाका में दोनों देशों की सरकारों ने हस्ताक्षर किया था. यह संधि दोनों देशों के बीच साझा सीमाओं पर उग्रवाद, आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों से निपटने के उद्देश्य से बनाई गई थी. संधि 23 अक्टूबर 2013 से प्रभावी हुई और 2016 में इसमें संशोधन करके प्रत्यर्पण प्रक्रिया को सरल बनाया गया. संधि में कुल 13 अनुच्छेद हैं, जो अपराधियों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया, अपवादों और केंद्रीय प्राधिकारों को परिभाषित करते हैं.

संधि में उन अपराधों के लिए प्रत्यर्पण का विकल्प उपलब्ध है जिनमें न्यूनतम सजा एक वर्ष से अधिक हो. इसमें हत्या, अपहरण, बम विस्फोट, आतंकवाद, मानव तस्करी आदि शामिल हैं. साथ ही प्रत्यर्पण उन्हीं अपराधों में स्वीकार किया जाएगा, जो दोनों देशों (ड्यूल क्रिमिनलिटी थ्योरी) में दंडनीय हों. अपराध पूर्णतः या आंशिक रूप से दोषी या अपराधी के प्रत्यर्पण की मांग करने वाले देश (रेक्वेस्टिंग स्टेट) में हुआ हो या उस आपराधिक कृत्य के प्रभाव वहां पड़े हों. प्रत्यर्पण के मामलों में भारत के लिए विदेश मंत्रालय (MEA) और बांग्लादेश के लिए गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) जिम्मेदार होगा. प्रत्यर्पण की मांग डिप्लोमेटिक चैनलों से की जाती है. वर्ष 2016 के संशोधन के जरिए प्रत्यर्पण संधि में अपराध के सबूत की जरूरत हटा दी गई; अब केवल सक्षम अदालत का गिरफ्तारी वारंट पर्याप्त है.

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इन मामलों में नहीं हो सकता है प्रत्यर्पण

भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 6 और 7 के मुताबिक राजनीतिक अपराधों या धार्मिक अपराधों के लिए प्रत्यर्पण नहीं हो सकता. यदि मांग राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित हो या अच्छे विश्वास से न हो तो उत्तरदायी देश प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है. यदि व्यक्ति के खिलाफ मांग करने वाले देश में पहले ही मुकदमा चल चुका हो तो भी प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है. इसे कानूनी भाषा में 'Non bis in idem' (नॉन बिस इन इडेम) कहते हैं. यह एक कानूनी सिद्धांत है जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता या उसे दंडित नहीं किया जा सकता. इसके अलावा सैन्य अपराध जो सामान्य आपराधिक कानून के तहत न हों, यदि व्यक्ति भारत में शरणार्थी का दर्जा प्राप्त कर चुका हो, ऐसे मामलों में प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है. संधि को 6 महीने की नोटिस पर रद्द किया जा सकता है. दोनों पक्षों को अपराधी या दोषी करार दिए गए व्यक्ति की आपातकालीन गिरफ्तारी का अधिकार है, लेकिन औपचारिक मांग 60 दिनों में करनी होती है.

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