सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) मंगलवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करने वाले है. इस मुलाकात से ठीक एक दिन पहले अमेरिका के दुश्मन समझे जाने वाले देश ईरान ने सोमवार को एमबीएस को एक पत्र भेजा है. यह पत्र ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान की तरफ से सऊदी क्राउन प्रिंस को भेजा गया है.
सऊदी अरब की सरकारी समाचार एजेंसी सऊदी प्रेस एजेंसी (SPA) ने यह जानकारी दी है. सऊदी की एजेंसी ने हालांकि, यह साफ नहीं किया कि पत्र में क्या लिखा है या फिर उसका संबंध एमबीएस के आगामी दौरे से है या नहीं.
ईरानी राष्ट्रपति के पत्र के कंटेंट की जानकारी सामने नहीं आई लेकिन इसकी टाइमिंग को लेकर पत्र के कंटेंट के बारे में दिलचस्पी बढ़ गई है.
एमबीएस से मिलने से पहले ट्रंप ने सोमवार को बड़ी घोषणा की है. उन्होंने कहा है कि उनका देश सऊदी अरब को F-35s फाइटर जेट्स देगा. पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा, 'हम सऊदी अरब को F-35s फाइटर जेट बेचने जा रहे हैं.' सऊदी अरब ने अमेरिका से 48 फाइटर जेट्स की मांग की है.
अमेरिका का ये फाइटर जेट दुनिया का सबसे शानदार फाइटर जेट माना जाता है. अमेरिका ने अपने करीबी सहयोगी इजरायल से वादा किया था कि वो किसी भी अरब देश को ऐसा कोई रक्षा हथियार नहीं देगा जो उसे इजरायल पर बढ़त देता हो. इन हथियारों में F-35s भी शामिल है. लेकिन सऊदी अरब वो पहला ऐसा अरब देश बनने वाला है जिसे अमेरिका अपना शानदार फाइटर जेट दे रहा है.
हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका ने ऐसा करने से पहले इजरायल को भरोसे में लिया होगा और उसे कोई और एडवांस हथियार दे रहा होगा.
सऊदी क्राउन प्रिंस का यह दौरा 2018 में सऊदी सरकार के आलोचक जमाल खाशोज्जी की हत्या के बाद से पहला अमेरिका दौरा है. खाशोज्जी की हत्या से सऊदी सरकार की कड़ी आलोचना हुई थी. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया था कि एमबीएस ने ही खाशोज्जी को पकड़ने और मारने की मंजूरी दी थी.
क्राउन प्रिंस ने इस ऑपरेशन का आदेश देने से इनकार किया. लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया कि बतौर सऊदी अरब के वास्तविक शासक, इसकी जिम्मेदारी उन पर आती है.
इस विवाद ने तत्कालीन जो बाइडेन सरकार और सऊदी सरकार के बीच भारी तनाव पैदा कर दिया था. हालांकि, जनवरी 2025 में ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद से अमेरिका-सऊदी संबंध पटरी पर आ रहे हैं.
ट्रंप मई में सऊदी अरब पहुंचे थे जहां सऊदी अरब ने अमेरिका में 600 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया. सऊदी दौरे में एमबीएस ने मानवाधिकार के मुद्दों का जिक्र करने से परहेज किया था और इस बार भी ऐसा ही करने की उम्मीद है.
एमबीएस क्षेत्रीय उथल-पुथल के बीच अमेरिका से सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं, साथ ही AI टेक्नोलॉजी और नागरिक परमाणु कार्यक्रम पर एक डील को लेकर भी आगे बढ़ना चाहते हैं.
अमेरिका और सऊदी अरब के बीच लंबे समय से यह व्यवस्था रही है कि सऊदी अरब रियायती कीमतों पर तेल बेचता है और बदले में अमेरिका सुरक्षा सुरक्षा देता है. लेकिन यह समीकरण 2019 में तब हिल गया जब ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने सऊदी के तेल प्रतिष्ठानों पर हमला किया और अमेरिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
सऊदी अरब की चिंताएं इस सितंबर में फिर बढ़ गईं, जब इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा पर हमला किया और कहा कि उसका निशाना फिलिस्तीन के हथियारबंद समूह हमास के सदस्य थे.
इसके बाद, ट्रंप ने एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए कतर के साथ रक्षा समझौता किया. कई विश्लेषकों, राजनयिकों और क्षेत्रीय अधिकारियों का मानना है कि सऊदी अरब को भी अमेरिका से कुछ ऐसा ही डिफेंस डील मिल सकता है.
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