सऊदी अरब और रूस ने तेल को लेकर फिर दिखाई जिद, क्या होगा असर?

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद बाजार की अनिश्चितता देखते हुए तेल की कीमतें अचानक रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी थीं लेकिन बाद में कम होने लगी जिसे देखते हुए ओपेक प्लस देशों ने तेल उत्पादन में कटौती का फैसला किया था. सऊदी अरब और रूस ने मिलकर तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए उत्पादन घटा दिया और अब उसे साल 2024 के मध्य तक जारी रखने का फैसला किया है.

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सऊदी अरब और रूस ने तेल उत्पादन में कटौती को जारी रखने का फैसला किया है (Photo- Reuters) सऊदी अरब और रूस ने तेल उत्पादन में कटौती को जारी रखने का फैसला किया है (Photo- Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 9:08 PM IST

रूस, सऊदी अरब और ओपेक प्लस (OPEC+) के कई अहम सदस्यों ने घोषणा की है कि 2023 में तेल उत्पादन को लेकर जो कटौती की गई थी वो आने वाले महीनों में भी जारी रहने वाली है. तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक प्लस का कहना है कि तेल उत्पादन में कटौती 2023 में किए गए समझौते का हिस्सा है जिसका मकसद आर्थिक अनिश्चितता के मद्देनजर तेल की कीमतों को बढ़ाना है. तेल उत्पादन में कटौती से पहले ही इसके कयास लगाए जाने लगे थे जिससे कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई.

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घोषणा के मुताबिक, तेल उत्पादन में कटौती 2024 के मध्य तक जारी रहने वाली है. सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री ने कहा कि सऊदी अप्रैल से जून के बीच प्रतिदिन 10 लाख बैरल की कटौती करेगा. वहीं रूस ने कहा है कि वो 471,000 बैरल प्रतिदिन की कटौती करेगा.

सऊदी के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने कहा, 'बाजार में स्थिरता बनाए रखने के लिए, बाजार की हालत को देखते हुए ये अतिरिक्त तेल कटौती धीरे-धीरे हटा दी जाएगी.'

ओपेक प्लस के अन्य देशों ने भी की कटौती की घोषणा

सऊदी अरब और रूस की ये कटौती दोनों देशों की तरफ से अप्रैल 2023 में घोषित 5 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती में अतिरिक्त कटौती है. अप्रैल 2023 की 5 लाख बैरल की कटौती 2024 के अंत तक चलेगी.
सऊदी और रूस को देखते हुए अन्य ओपेक प्लस देशों संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कुवैत, इराक और कजाकिस्तान ने कहा है कि वे मौजूदा स्वैच्छिक कटौती को जून के अंत तक बढ़ा देंगे.

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22 देशों के संगठन ओपेक+ ने 2022 के अंत में पांच लाख बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति में कटौती की घोषणा की थी. 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से तेल की कीमतें अचानक 140 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ गई थीं जिससे तेल बाजार को खूब फायदा हुआ था. अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा दिए जिसके बाद उसे तेल बेचने के लिए भारत और चीन जैसे मित्र देशों की तरफ रुख करना पड़ा. रूस अब दोनों ही देशों की शीर्ष कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है.

घोषणा से पहले ही बढ़ गईं तेल कीमतें

कच्चे तेल में कटौती की घोषणा से पहले ही 3 मार्च को तेल की कीमतें बढ़ गईं. बाजार को पहले ही तेल उत्पादन में कटौती का आभास था इसलिए यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) कच्चा तेल नवंबर के बाद पहली बार 80 डॉलर को पार कर गया, जबकि नॉर्थ सी ब्रेंट क्रूड बैरल एक महीने के उच्चतम 83.55 डॉलर पर पहुंच गया.

ओपेक प्लस देशों की एकता पर उठते सवाल

साल 2016 में तेल उत्पादक ओपेक देशों ने अमेरिकी तेल से मिल रही प्रतिस्पर्धा के बाद तेल की कीमतों को कम करने के लिए 13 अन्य देशों के साथ मिलकर ओपेक प्लस का गठन किया था जिसका एक सदस्य रूस भी था.

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रिस्टैड एनर्जी के अर्थशास्त्री जॉर्ज लियोन ने समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए कहा, 'ओपेक+ का उद्देश्य एक बड़े समूह का एक साथ आना था ताकि स्वैच्छिक कटौती की कोई जरूरत न पड़े. इस में हर किसी को योगदान देना था और कोई भी देश अकेले स्वैच्छिक कटौती नहीं करने वाला था. लेकिन अब लगभग एक साल से सऊदी अरब सदस्य देशों के बीच सहमति की कमी के कारण सर्वसम्मति के बिना ही काम कर रहा है.'

लियोन ने चेतावनी दी कि स्वैच्छिक कटौती एक स्पष्ट संकेत है कि ओपेक+ के देशों के बीच सामंजस्य अच्छा नहीं है.

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