प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज से जापान के तीन दिनों के दौरे पर रवाना हो रहे हैं. वह इस दौरान राजधानी टोक्यो में 15वें भारत-जापान शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इसके बाद वह जापान से सीधे चीन जाएंगे. मौजूदा समय में भारत और जापान के समक्ष एक जैसी चुनौतियां हैं. दोनों देशों के दोस्त और दुश्मन भी कमोबेश एक जैसे ही हैं. ऐसे में पीएम मोदी के जापान दौरे को काफी अहम माना जा रहा है.
पीएम मोदी आज रात 8.30 बजे जापान के लिए रवाना हो रहे हैं. जापान के बाद पीएम मोदी 30 अगस्त को चीन जाएंगे. वह 30 अगस्त से एक सितंबर तक SCO की बैठक में हिंस्सा लेंगे. चीन के तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन का आयोजन होगा.
पीएम मोदी की जापान की यह आठवीं और जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के साथ पहली शिखर बैठक होगी. यह दौरा ना केवल भारत-जापान के बीच विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को मजबूत करेगा बल्कि अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापार तनाव, चीन की क्षेत्रीय आक्रामकता और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच भारत की रणनीतिक स्थिति को भी मजबूती देगा.
यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के बीच दुनियाभर में उथल-पुथल मची हुई है. भारत और जापान के बीच 2006 से विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी है, जो रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और लोगों के बीच संबंधों पर आधारित है. यह यात्रा 15वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन का हिस्सा है, जिसमें दोनों देश अपनी साझेदारी की समीक्षा करेंगे.
जापान दरअसल पीएम मोदी के दौरे के दौरान भारत में अगले दस वर्षों के लिए 10 ट्रिलियन येन के निजी निवेश की घोषणा करने की योजना बना रहा है. यह 2022 में घोषित पांच ट्रिलियन येन के पांच वर्षीय लक्ष्य से दोगुना है.
जापान, भारत की मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहलों का प्रमुख समर्थक है. भारत में चार वर्षों से सबसे बड़ा कार निर्यातक मारुति सुजुकी अब इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्यात शुरू कर रहा है. गुजरात में हाल ही में शुरू हुआ हाइब्रिड बैटरी प्लांट इसका उदाहरण है.
इसके साथ ही अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना भारत की सबसे बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में से एक है. दोनों देश एक नए आर्थिक सुरक्षा ढांचे पर सहमत हो सकते हैं, जो सेमीकंडक्टर, दुर्लभ खनिज और स्वच्छ ऊर्जा की सप्लाई को सुनिश्चित करेगा. यह भारत की चीन पर निर्भरता को कम करने की रणनीति का हिस्सा है.
भारत और जापान को चीन से क्या हैं दिक्कतें?
भारत और जापान क्वाड (भारत, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) के सदस्य हैं, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था और स्थिरता को बढ़ावा देना है. यह यात्रा क्वाड के एजेंडे पर चर्चा का अवसर देगी, खासकर जब भारत 2025 के अंत में क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा.
इसके अलावा दोनों देश नियमित रूप से मालाबार नौसैनिक अभ्यास में भाग लेते हैं. भारतीय और जापानी नौसेनाएं जहाज मरम्मत और अन्य रक्षा सहयोग की संभावनाएं तलाश रही हैं.
ट्रंप सरकार ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. जापान पर भी 15 फीसदी टैरिफ का सामना कर रहा है और उसका व्यापार वार्ताकार रयोसेई अकाजावा हाल ही में प्रशासनिक कारणों से अमेरिका की यात्रा रद्द कर चुका है. इस संदर्भ में भारत और जापान का यह गठजोड़ अमेरिकी दबाव का जवाब देने की रणनीति है.
भारत और जापान दोनों ही चीन की क्षेत्रीय आक्रामकता से प्रभावित हैं. भारत को अपनी SCO भागीदारी और जापान के साथ रणनीतिक साझेदारी के बीच संतुलन बनाना होगा. भारत की रेयर अर्थ और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता एक चुनौती है, जिसे जापान के सहयोग से कम करने की जरूरत है.
दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता, जैसे दक्षिण चीन सागर में सैन्य गतिविधियां और भारत को रेयर अर्थ की आपूर्ति रोकने की स्थिति का सामना कर रहे हैं. जापान की 68 अरब डॉलर की निवेश योजना और AI सहयोग पहल भारत को चीन पर निर्भरता कम करने में मदद करेगी.
भारत अपनी मल्टी-अलाइनमेंट नीति के तहत जापान जैसे सहयोगियों के साथ संबंधों को गहरा कर रहा है ताकि अमेरिका और चीन जैसे बड़े खिलाड़ियों के बीच संतुलन बनाए रख सके. यह यात्रा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करने का एक कदम है.
भारत और जापान दोनों स्वतंत्र और खुले हिंद प्रशांत के समर्थक हैं, जो चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ एक रणनीतिक दृष्टिकोण है. यह यात्रा इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता और नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देगी. दोनों देश लोकतंत्र, स्वतंत्रता और आर्थिक सहयोग के साझा मूल्यों पर आधारित हैं.
बता दें कि पीएम मोदी का जापान दौरा चीन की तीन सितंबर को होने वाली सैन्य परेड से ठीक पहले हो रहा है, जो द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ पर आयोजित होगी. जापान ने इस परेड को जापान विरोधी करार दिया है और कई देशों से इसमें शामिल नहीं होने का अनुरोध किया है.
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