SCO समिट में मोदी-जिनपिंग के बीच होंगी दो-दो मुलाकातें... क्या भारत-चीन के बीच तनाव होंगे खत्म?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के दौरे पर हैं. तियांजिन में पीएम मोदी का भव्य स्वागत किया गया. मौका है SCO समिट का, लेकिन मायने कहीं बड़े हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के 50 फीसदी टैरिफ के बाद पीएम मोदी के इस दौरे से भारत ने कूटनीति की नई बिसात बिछाई है. चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ वन-टू-वन मीटिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता से तय होगा कि दुनिया की धुरी क्या होगी. अमेरिका और यूरोप इस ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात होगी. (File Photo) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात होगी. (File Photo)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 8:14 AM IST

चीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट होने जा रहा है और इसे लेकर अमेरिका की टेंशन बढ़ गई है. इस मंच पर हमेशा चीन का दबदबा रहा है और पाकिस्तान के आतंकवाद पर आलोचना करने से SCO बचता आया है. लेकिन इस बार चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसे अपनी ताकत दिखाने के मंच के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को BRICS और SCO जैसे मंचों से खतरा महसूस हो रहा है. वजह है- रेयर अर्थ पर इन देशों का कब्जा. ट्रंप को चीन पर झुकना पड़ा, क्योंकि दुनिया के आधे रेयर अर्थ रिजर्व चीन के पास हैं. दूसरे नंबर पर ब्राजील है, जिस पर अमेरिका ने 50% टैरिफ लगा रखा है. दरअसल, रेयर अर्थ 17 धात्विक रासायनिक तत्वों का समूह है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा सप्लायर है और लगभग 60-65% वैश्विक उत्पादन उसी के पास है.

भारत के लिए क्या फायदा?

भारत के लिए बड़ा सवाल है- क्या चीन के दबदबे वाले SCO से उसे फायदा मिलेगा? खासकर तब, जब शी जिनपिंग इस समिट को शक्ति प्रदर्शन का मंच बना रहे हैं. 3 सितंबर को तियांजिन में 26 देशों के नेता जुटेंगे. इनमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन, कंबोडिया के राजा नोरोदम सिहामोनी, वियतनाम के राष्ट्रपति लुओंग कुओंग, लाओस के राष्ट्रपति थोंग्लौन सिसोउलिथ, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो, मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और पाकिस्तान के पीएम भी शामिल होंगे.

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भारत में चीन के दूतावास ने हाल ही में सोशल मीडिया पर भगवान गणेश की छवि साझा की और लिखा कि तांग राजवंश और मोगाओ गुफाओं में गणेश जी की छवि पाई जाती है. इसे चीन-भारत की सांस्कृतिक साझेदारी का उदाहरण बताया गया. जानकारों का मानना है कि यह संदेश मोदी-जिनपिंग मुलाकात से पहले रिश्तों का माहौल बनाने की कोशिश है.

मोदी-जिनपिंग और मोदी-पुतिन की अहम बैठकें

पीएम मोदी का मकसद ट्रंप के टैरिफ से भारत पर पड़ने वाले असर को कम करना और चीन-जापान जैसे देशों से रिश्ते मजबूत करना है. सूत्रों के मुताबिक, मोदी और शी जिनपिंग की 2 बार द्विपक्षीय बैठक हो सकती हैं. पहली मुलाकात रविवार दोपहर होगी, दूसरी SCO शिखर सम्मेलन के भोज से पहले. सोमवार को मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिलेंगे.

लेकिन सवाल यह भी है कि चीन, जो अमेरिका के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने की बात कर रहा है, क्या वो अपने बाजार भारतीय माल के लिए खोलेगा? चीन अपने बाजार में भारतीय माल को रोकता है. कई तरह के सीमा नियम, चेकिंग के नाम पर प्रोडक्ट को हफ्तों तक बंदरगाहों पर रोकना और फिर खराब क्वालिटी का हवाला देकर जहाजों को बैरंग वापस लौटाना उसकी हरकतों में शामिल रहा है. इसीलिए सवाल ये है कि क्या चीन, भारतीय सामान को अपने बाजार में आसानी से जाने देने के लिए सहमत होगा? क्या चीन से करीबी बढ़ाने से फायदा होगा?

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भारत के लिए SCO क्यों अहम?

भारत SCO का इस्तेमाल आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने के लिए करता है. रूस भारत का पारंपरिक सहयोगी है और यह मंच भारत-रूस रिश्तों को मजबूत करता है. वहीं, चीन के साथ भारत के संबंध जटिल हैं. लेकिन इस मंच पर दोनों देश आमने-सामने बैठकर क्षेत्रीय और वैश्विक मसलों पर बातचीत कर सकते हैं.

विशेषज्ञ मानते हैं कि SCO भारत के लिए रणनीतिक संतुलन बनाने का मौका है. अगर भारत इसमें सक्रिय नहीं रहेगा तो पाकिस्तान को खुला मैदान मिल जाएगा. यही वजह है कि भारत इस मंच से दूरी नहीं बना सकता.

डोकलाम से अरुणाचल तक… क्या बदलेगा समीकरण?

पीएम मोदी का यह दौरा सिर्फ बहुपक्षीय बैठक नहीं बल्कि कूटनीति का नया अध्याय है. ट्रंप का टैरिफ और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यह समिट भारत के लिए अहम है. सात साल बाद मोदी और शी जिनपिंग चीनी धरती पर आमने-सामने होंगे. क्या इससे डोकलाम और अरुणाचल विवाद जैसे तनाव कम होंगे? क्या पुतिन के साथ मुलाकात एशिया की धुरी तय करेगी? जैसे तमाम सवालों पर हर किसी की नजर टिकी है.

भविष्य की वैश्विक बिसात तियांजिन से

रूस-भारत-चीन अगर साथ आए तो यह अमेरिका और यूरोप को बड़ा संदेश होगा. सवाल ये है कि क्या भारत चीन-रूस खेमे में जाएगा या फिर अपनी पुरानी नीति- न किसी के खिलाफ, न किसी के साथ, बल्कि सबके साथ को ही अपनाएगा.

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SCO समिट में 20 से ज्यादा देशों के नेता शामिल होंगे, लेकिन असली सुर्खियां मोदी-जिनपिंग और मोदी-पुतिन की मुलाकात से निकलेंगी. यही मुलाकातें तय करेंगी कि एशिया अब वैश्विक राजनीति का नया केंद्र कैसे बन रहा है.

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